यौन शिक्षा से ही मिलेगी बच्चों और युवाओं को जानकारी, प्रतिबंध लगाना नहीं बचाव
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के अनुसार व्यापक स्तर पर यौन शिक्षा का उद्देश्य बच्चों व युवाओं में जानकारी को बढ़ाना है।
नई दिल्ली, दिव्या वैष्णव। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के मुताबिक व्यापक स्तर पर यौन शिक्षा (सीएसई) का उद्देश्य बच्चों व युवाओं में जानकारी, कौशल, व्यवहार और जीवन-मूल्य को बढ़ाना है, जिससे उनकी एक सकारात्मक सोच अपने मानसिक और सामाजिक विकास के संदर्भ में तैयार हो सके। सीएसई युवाओं को उनकी गरिमा, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए जरूरी जानकारी मुहैया कराती है। इसमें लैंगिक समानता, मर्दानगी, स्त्रीत्व, यौन, प्रजनन स्वास्थ्य, यौन पहचान के बारे में चर्चा होती है।
इसमें हिंसा के विभिन्न रूपों और अभिव्यक्तियों के पहचानने पर जोर दिया जाता है। हमारे युवा जिन्हें इस तरह की शिक्षा से वंचित रखा जाता है, अक्सर गलत तरीकों से अपने सवालों के जवाब ढूंढते हैं, इसमें गलती उनकी नहीं है, परिवारों में सेक्स, शारीरिक बदलाव या रिश्तों के बारे में बिल्कुल बात नहीं की जाती है। आज भी आप महिलाओं को माहवारी के बारे में खुल कर बात करते हुए नहीं पाते हैं। उम्र के जिस पड़ाव पर बच्चों को एक संतुलित मार्गदर्शन व सही जानकारी की जरूरत है, उस वक्त अगर उन्हें पोर्नोग्राफिक वेबसाइट के जरिए जानकारी मिलती है, जिससे यौनिकता, सहमति व यौन संबंधों के बारे में उनकी समझ पर गलत प्रभाव पड़ता है। इन वेबसाइट्स पर आत्मीय रिश्तों में अक्सर यौनिक हिंसा दिखायी जाती है, जिससे देखने वाले सहमति, स्वस्थ और अस्वस्थ रिश्तों के बारे में एक विकृत सोच बना लेते हैं।
सटीक जानकारी से खुलकर बात करने की आजादी
अगर उनके पास पहले से सटीक जानकारी होगी और इन विषयों के बारे में खुलकर बात करने की आजादी होगी, तो वे अपने मन में उठने वाले सवालों व शंकाओं को दूर कर पाएंगे। इस पितृ सत्तात्मक समाज में बच्चे एक छोटी उम्र से ही घर और आसपास के मर्दों को असंवेदनशील, हिंसक और सदस्यों पर हावी होते हुए देखते हैं, इस तरह के माहौल में बच्चों की सोच पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। किस तरह से हम अपने युवाओं को संवेदनशील बना सकते हैं- इसके लिए हमें विषाक्त पुरुषत्व के विचारों को बदलना होगा, परिवारों में लैंगिक समानता लानी होगी, हर तरह की हिंसा पर शुरू से ही रोक लगानी होगी।
लिंग का आधार पर भेदभाव एक तरह की हिंसा
किसी परिवार में अगर बच्चों के साथ उनके लिंग के आधार पर भेदभाव होता है यह एक तरह की हिंसा ही है। इसके बारे में सबको जागरूक होना है और रोकना है। अगर परिवार में एक महिला अकेली ही घर के सारे काम करती है, यह भी एक तरह की हिंसा है, उसके अधिकारों का हनन है। हम कितने मर्दों को घर के काम ख़ुशी से करते हुए देखते हैं? घर में बुज़ुर्ग महिलाओं को भी अपनी सोच में बदलाव लाते हुए लड़का लड़की का पालन पोषण एक समान
करना चाहिए।
वेबसाइट को प्रतिबंधित करना हल नहीं
किसी भी वेबसाइट को प्रतिबंधित करना इस समस्या का हल कतई नहीं है। न ही मैं यह मानती हूं कि डाटा महंगा करना चाहिए क्योंकि पोर्नोग्राफी के अलावा बहुत सारे सकारात्मक उद्देश्यों के लिए युवा इसका लाभ उठाते हैं। आवश्यकता है एक ऐसे जागरूकता अभियान की, जिसमें बच्चों व युवाओं को सटीक जानकारी दी जाए। समुदायों में वर्जित समझे जाने वाले विषयों पर खुलकर चर्चा की जाए। स्कूलों, कॉलेजों के नियमित पाठ्यक्रमों की व्यापक यौनिकता शिक्षा अनिवार्य हिस्सा होनी चाहिए। डाटा की आसान उपलब्धता आज शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर तमाम क्षेत्रों में लोगों के जीवन को आसान करने का काम कर रही है। इसके महंगा होने की स्थिति में इन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। बड़ी संख्या में लोग इसके सकारात्मक लाभ से वंचित रह जाएंगे।
हम सबको मिलकर समाज के पुरुषों को संवेदनशील बनाने में उनकी मदद करनी है, एक भावुक पुरुष का मजाक उड़ाने की बजाय उसको प्रोत्साहन मिलना चाहिए। सुरक्षित खुशहाल समाज समानता पर ही आधारित हो सकता है। किसी पर हावी होने से या कुछ बैन करने से डर का माहौल बनता है। लिहाजा जरूरी है कि लोगों को जागरूक किया जाए।
लेखिका दिव्या वैष्णव बड फाउंडेशन की सह संस्थापक और निदेशक
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।