Revised Criminal Law Bills: औपनिवेशिक कानूनों से मुक्ति से जुड़े विधेयक लोकसभा से पारित, दंड की जगह न्याय देने पर जोर
अंग्रेजों के जमाने में बने आईपीसी सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय न्याय संहिता भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम से जुड़े तीनों विधेयक लोकसभा से पारित हो गए। विधेयकों पर चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इनके लागू होने के बाद दुनिया में सबसे अधिक आधुनिक आपराधिक न्याय प्रणाली भारत की होगी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अंग्रेजों के जमाने में बने आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम से जुड़े तीनों विधेयक लोकसभा से पारित हो गए। विधेयकों पर चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इनके लागू होने के बाद दुनिया में सबसे अधिक आधुनिक आपराधिक न्याय प्रणाली भारत की होगी।
गुरुवार को राज्यसभा में पारित होने की उम्मीद
गुरुवार को इन विधेयकों पर राज्यसभा में भी मुहर लग सकती है। अधिकांश विपक्षी नेताओं की अनुपस्थिति में हुई चर्चा का जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा कि पहली बार आपराधिक न्याय प्रणाली का आत्मा भारतीय होगा। उन्होंने दोनों कानूनों का फर्क बताते हुए कहा कि अंग्रेजों के जमाने में बने कानून का मूल उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के हितों का रक्षा करना था। इसलिए इसमें दंड को मूल में रखा गया था।
औपनिवेशिक हितों से जुड़े सरकारी खजाने से लूट, रेलवे की संपत्ति को नुकसान और ब्रिटिश राज के खिलाफ अपराधों को प्राथमिकता दी गई थी। वहीं, नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध, हत्या व हत्या के प्रयास, देश की सीमाओं की सुरक्षा जैसे मुद्दे को सबसे पहले रखा गया है।
कांग्रेस नेताओं पर अमित शाह का कटाक्ष
कानून बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ने का दावा करने वाले कांग्रेसी नेताओं पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि यदि मन भारतीय रखोगे तो अंतर समझ में आएगा। मन यदि इटली का रखोगे तो नहीं समझ में आएगा। उन्होंने कहा कि भारत में न्याय की अवधारणा बहुत पुरानी है और ये कानून उसी पर आधारित हैं। अमित शाह ने कहा कि पहली बार आतंकवाद को परिभाषित करते हुए इसे सामान्य कानून का हिस्सा बना दिया गया है।
आतंकवाद के खिलाफ विशेष गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) के होते नए कानूनों में इसे जगह देने के विपक्ष के सवालों के जवाब देते हुए शाह ने कहा कि कुछ राज्य सरकारें जानबूझ कर यूएपीए नहीं लगाकर सामान्य धाराओं में केस दर्ज करती थीं। अब उन्हें आतंकवाद से जुड़े मामलों में नई धाराओं के तहत कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी। इसी तरह से राजद्रोह के कानून को खत्म कर देशद्रोह के कानून को लाया गया है।
विभिन्न अपराधों के लिए विधेयक में नए प्रावधान
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों को इसी राजद्रोह कानून के तहत अंग्रेज जेल में रखते थे। लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने आजादी के बाद भी इसे बदलने का प्रयास नहीं किया। मॉब लिंचिंग के लिए मोदी सरकार पर विपक्षी नेताओं के हमलों पर पलटवार करते हुए अमित शाह ने कहा कि वे सिर्फ इसका राजनीतिक इस्तेमाल करते रहे, इसके खिलाफ कोई कानून नहीं बनाया।
उन्होंने मॉब लिंचिंग को घृणित अपराध बताते हुए कहा कि हमने पहली बार इसके खिलाफ कानून बनाकर कड़ी सजा का प्रविधान किया है। नए कानून बनाने के लिए व्यापक परामर्श की जानकारी देते हुए अमित शाह ने कहा कि 2019 में ही सभी राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों और उपराज्यपालों से इस पर राय मांगी गई थी।
इसके बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के साथ-साथ बार काउंसिल और विधि विश्वविद्यालयों से भी सुझाव लिए गए। सभी सांसदों और आइपीएस अधिकारियों के सुझाव भी आमंत्रित किये गए। कुल 3,200 सुझावों पर गहन विचार विमर्श के बाद नए कानूनों को तैयार किया गया।
अमित शाह ने कहा कि एक-एक शब्द पर विचार करने के लिए उन्होंने खुद 150 से अधिक बैठकें की। शाह ने कहा कि इन कानूनों का उद्देश्य देश में सजा की दर को 90 प्रतिशत से ऊपर ले जाना है, जो अभी काफी कम है। इसीलिए इसमें फारेंसिक और डिजिटल सुबूतों को अहम स्थान दिया गया है। उन्होंने कहा कि ये कानून अगले 100 वर्षों तक तकनीक के विकास को समायोजित करने में सफल साबित होंगे।
विधेयक से जुड़ी खास बातेंः
- पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया।
- राजद्रोह की जगह देशद्रोह बना अपराध।
- मॉब लिंचिंग के मामले में आजीवन कारावास या मौत की सजा।
- पीड़ित के अधिकारों की पूरी गारंटी, कहीं भी दर्ज करा सकेंगे एफआईआर, जांच की प्रगति रिपोर्ट भी मिलेगी।
- पीड़ित की मर्जी के बगैर राज्य को केस वापस लेने का अधिकार नहीं।
- ऑनलाइन शिकायत पर भी तीन दिन के भीतर दर्ज होगी एफआईआर।
- एफआईआर से लेकर ट्रायल और फैसला सुनाने तक की समय सीमा तय।
- तकनीक के इस्तेमाल पर जोर, एफआईआर, केस डायरी, चार्जशीट, जजमेंट सभी होंगे डिजिटल।
- तलाशी और जब्ती में आडियो-वीडियो रिकार्डिंग अनिवार्य
- गवाहों के लिए ऑडियो-वीडियो से बयान रिकार्ड कराने का विकल्प-सात साल या उससे अधिक सजा के मामलों में फारेंसिक विशेषज्ञ द्वारा सुबूत जुटाना अनिवार्य।
- छोटे-मोटे अपराधों के जल्द निपटारे के लिए समरी ट्रायल (तेजी से न्याय देने) का प्रविधान।
- पहली बार के अपराधी के ट्रायल के दौरान एक तिहाई सजा काटने पर मिलेगी जमानत।
- 10 साल या उससे अधिक की सजा वाले भगोड़े अपराधियों की संपत्ति होगी जब्त
- इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल रिकॉर्ड माने जाएंगे साक्ष्य, स्मार्टफोन, लैपटाप के मैसेज, वेबसाइट व लोकेशन भी साक्ष्य।
- भगोड़े अपराधियों की अनुपस्थिति में भी चलेगा मुकदमा।
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