Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बेहतर बुनियादी ढांचा न केवल सुगमता बढ़ाता है, अपितु कई अन्य क्षेत्रों के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है

    वर्ष 2047 में भारत अपनी स्वतंत्रता के 100 साल का जश्न मना रहा होगा। उस समय तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी लक्ष्य के लिए जुटने का आह्वान किया है।

    By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 19 Aug 2022 11:56 AM (IST)
    Hero Image
    बुनियादी ढांचा न केवल सुगमता बढ़ाता है, अपितु कई अन्य क्षेत्रों के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रतीकात्मक

    डा. संजय वर्मा। किसी देश को देखने के मोटे तौर पर दो नजरिए हो सकते हैं। बाहर से देखें तो एक देश ताकतवर नजर आ सकता है। अंदरूनी हालात का जायजा लें, तो हो सकता है कि हमें वहां समस्याओं का अंबार दिखाई पड़ सकता है। योग, आयुर्वेद से लेकर स्टार्टअप तक ऐसा बहुत कुछ है, जो भारत को एक तेज तरक्की करते देश के तौर पर स्थापित करते हैं। कई ऐसे क्षेत्रों में भी भारत ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है, जिसमें लंबे समय तक दूसरे देशों का दबदबा रहा है। जैसे आइटी और रक्षा हथियारों की खरीद का मामला। हमारी युवा प्रतिभाएं जिस तरह विदेश में अपनी प्रतिभा के झंडे गाड़ती रही हैं, उनसे भारतीय ब्रांड मजबूत होता रहा है। लेकिन जब आधुनिक दुनिया में किसी देश की छवि की बात आती है, तो ऐसी चीजों की जरूरत महसूस होती है जो देश को असीम प्रतिष्ठा दिला सकें।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    भारत के संदर्भ में बात करें तो मामला असल में इसे विकसित देशों की कतार में शामिल कराना है, जिसका उल्लेख प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक संकल्प के तौर पर किया। इस संदर्भ में उन्होंने पांच प्रण के माध्यम से जुटने के लिए कहा है। कम से कम देश के उद्योग संगठनों में इसे लेकर संशय नहीं है कि यह संकल्प अवश्य पूरा हो सकता है। उद्योग जगत ने साफ किया कि प्रधानमंत्री ने भारत को 25 साल में विकसित देश बनाने का जो आह्वान किया है वह प्रेरक व सुसाध्य है। आयात निर्भरता कम करने और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देकर ऐसा किया जा सकता है, यह आश्वासन उद्योग संगठनों ने अपनी ओर से दिया है। नवीकरणीय ऊर्जा समेत ज्यादातर क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हासिल करके ऐसा हो सकता है, यह भरोसा भी जताया गया। अगर देश आगे बढ़ने की दिशा तय कर ले और राजनीतिक सोच को लेकर कायम दुविधाओं व संकटों का कोई समाधान खोज ले, तो भारत को विकसित राष्ट्र बनने से रोका नहीं जा सकता। यह असल में नजरिए की बात है, जिसे ठोस नीतियां बनाकर और भारतीय पहचानों-उपलब्धियों को एक व्यवस्थित ब्रांड के रूप से स्थापित करके बदला जा सकता है।

    75 वर्षो में बदला नजरिया 

    ऐसा नहीं है कि बीते 75 वर्षो में भारत ने कुछ ठोस हासिल न किया हो। पूरी दुनिया भारत को अभी ही नए नजरिए से देखती है। जैसे सदियों पहले भारत एक चमकदार ब्रांड हुआ करता था। तब यहां के सूती कपड़े, मसाले और दूसरी चीजें दुनिया भर में बिकती थीं। यह ब्रांड इतना ताकतवर था कि मौका मिलते ही विदेशियों ने इसे कब्जाने में देर नहीं की थी। गुलामी के दौर में हमने बहुत कुछ गंवा दिया, लेकिन आज भारत के पास उसकी पहचान स्थापित करने वाली तमाम चीजें हैं। भारतीय योग से लेकर दार्जिलिंग चाय, बासमती चावल, अलफांसो आम आज के भारत की पहचान हैं। आइटी क्षेत्र में नजर दौड़ाएं तो बौद्धिक पूंजी भारत की सबसे नई पहचान है, जो पूरी दुनिया में भारत को सबसे प्रतिष्ठित संसाधन के रूप में दर्ज कराती है। कह सकते हैं कि आइटी से मिली पहचान और इस कारण अर्थव्यवस्था में जगे नए आत्मविश्वास ने भारत को एक चमकदार ब्रांड में तब्दील कर दिया है।

    अगर 2047 तक भारत को एक नई महाशक्ति बनना है, तो यह बिना नई ब्रांड इमेज के संभव नहीं होगा। ऐसी कुछ और बातें हैं, जो हमें अपने पड़ोसी देशों से बेहतर साबित करती हैं। एक नई महाशक्ति के तौर पर भारत को स्थापित करने या भारतीय ब्रांडों को कामयाबी दिलाने के लिए मार्केटिंग, प्रचार, इमेज मैनेजमेंट और उत्पादों की गुणवत्ता तो जरूरी शर्त है ही, लेकिन इस लक्ष्य को हमें इससे भी बड़े-राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक स्तर पर भी साधना होगा जिसकी फिलहाल भारी कमी दिखती है। जैसे हर अमेरिकी को अपने अमेरिकी होने पर गर्व होता है, चाहे किसी भी मंच पर अमेरिकी मौजूद हों, वे यह बात कहने से नहीं चूकते। लेकिन भारतीयों में यह बात नहीं। इस स्तर पर हम गुजराती हैं, बंगाली या मराठी आदि हैं। यह एक तथ्य है जिसने हमारे गर्व और जुझारूपन की ताकत को नुकसान पहुंचाया है। इसीलिए विकसित भारत के सपने को साकार करने का सबसे बेहतरीन तरीका यही है कि 135 करोड़ भारतीयों में इस देश और इसके उत्पादों की गुणवत्ता का भरोसा पैदा किया जाए और सभी भारतीय इस देश के ब्रांड अंबेसडर बन जाएं। ऐसा करके ही भारत, दुनिया का विनिर्माण ‘पावरहाउस’ बन सकता है और ‘मेक इन इंडिया’ को सच्चे अर्थो में साकार किया जा सकता है। विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में ये नीतिगत पहलें हैं, जिनका पालन अनिवार्य है। लेकिन कुछ मोर्चे और हैं जिन पर जीत हासिल किए बगैर विकसित देशों की पांत में शामिल होने का लक्ष्य पाना लगभग असंभव है।

    विकास के मार्ग की अड़चनें 

    ये मोर्चे उन खामियों को दूर करने से संबंधित हैं जो विकास की राह में अड़चन डालते हैं। जैसे भ्रष्टाचार और परिवारवाद की समस्या। भ्रष्टाचार की रैंकिंग करने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक (सीपीआइ) 2021 में भारत को 180 देशों में 85वां स्थान दिया है, जो एक बड़ी समस्या की ओर संकेत है। हालांकि पिछली रैंकिंग के मुकाबले इसमें एक अंक का सुधार हुआ है, लेकिन यह संतोष की बात नहीं है। कहने को तो केंद्र सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नीति अपनाए हुए है, लेकिन हर दूसरे दिन किसी इंजीनियर, बाबू या नेता के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की खबर साबित करती है कि कोढ़ बन चुके इस मर्ज का इलाज केवल बातों से मुमकिन नहीं है। भ्रष्टाचार इसलिए बना हुआ है, क्योंकि आम जनता में भी अभी तक यह संदेश कायम है कि किसी भी सरकारी विभाग में बिना रिश्वत के कोई काम आसानी से नहीं हो सकता। बंगाल का शिक्षक भर्ती घोटाला इसकी गवाही भी देता है कि भ्रष्टाचार को राजनीतिक प्रश्रय हासिल है। दूसरी बड़ी चुनौती परिवार या भाई-भतीजावाद है। परिवारवाद की वजह से विकास के फायदे चंद परिवारों तक सिमटे हुए हैं। ऐसे में कोई राष्ट्र विकसित कैसे हो सकता है। प्रधानमंत्री ने इसी चिंता को रेखांकित करते हुए राजनीति के शुद्धिकरण का आह्वान किया और परिवारवाद के विरुद्ध परिवेश बनाने को कहा, ताकि देश को आगे ले जाने वाले योग्य लोगों को बढ़ावा मिल सके।

    शिक्षित युवा और स्त्री भागीदारी 

    युवाओं और विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी के बिना विकसित राष्ट्र की कल्पना करना संभव नहीं है। युवा जनसंख्या के मामले में हमारा देश खुद को सौभाग्यशाली मान सकता है। दुनिया की सबसे ज्यादा युवा आबादी यदि शिक्षित और स्किल्ड हो, सही दिशा में आग बढ़ रही हो और उसे आगे बढ़ने के मौके बराबरी के साथ मिल रहे हों, तो ऐसे विकासशील देश को विकसित मुल्क बनाना कोई कठिन नहीं है। यह अच्छा है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इन सारी समस्याओं को ध्यान में रखा गया है और देश की जमीन से जुड़ी शिक्षा नीति बनाई गई है, तो इससे 2047 का लक्ष्य साकार होने में कोई बड़ी समस्या नजर नहीं आती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि लैंगिक समानता विकसित राष्ट्र बनने के हमारे संकल्प को एक मजबूत जमीन दे सकती है, इसलिए इस दिशा में पूरी ताकत के साथ काम करना होगा।

    देश की स्वतंत्रता के 75 वर्षो बाद इस बार 15 अगस्त को पहली बार लाल किले पर तिरंगे को सलामी देने के लिए ‘मेड इन इंडिया’ तोप का इस्तेमाल किया गया। ‘आत्मनिर्भर भारत’ यानी देश को अपने दम पर चमकाने का एक महान दायित्व हर भारतवासी के माथे आता है। सवाल है कि उस दायित्व का निवर्हन कितना हो पाया है। कभी-कभी यह लगता है कि तमाम जड़ताओं और कठिनाइयों के बावजूद एक देश के रूप में भारत ने दुनिया में अपनी चमक कायम रखी है। ब्रांड फाइनेंस नामक संगठन वैश्विक स्तर पर जो आकलन करता है, उसके मुताबिक मूल्यवान देशों की पिछली सूची में भारत दुनिया में सातवें स्थान पर था। व्यावसायिक नजरिये से देखें तो हमारे देश की कारोबारी कीमत (ब्रांड वैल्यू) करीब 137 अरब रुपये (2.1 अरब डालर) थी। इस सूची में अमेरिका शीर्ष पर (19.7 अरब डालर) और फिर क्रमश: चीन, जर्मनी, ब्रिटेन, जापान और फ्रांस हैं, जिनके बाद भारत का स्थान था। वैश्विक पैमाने पर इस सूची को लेकर यह बहस हो सकती है कि क्या इससे देश के अंदरूनी मसलों का कोई समाधान निकलता है या नहीं। लेकिन ध्यान रखना होगा कि यह सूची दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों के प्रदर्शन के आधार पर उनसे संबंधित देशों की ताकत और उनकी छवि के मूल्य के पैमाने पर तैयार होती है। इस मूल्य में उन देशों के साजोसामान के ब्रांड की वैश्विक बिक्री की ताकत का अंदाजा लिया जाता है और उसके आधार पर देश की विकास दर (जीडीपी) पर पड़ने वाले असर का आकलन किया जाता है।

    अर्थव्यवस्था की अनेक चुनौतियों (कोरोना काल में मंद पड़े कारोबार और डालर की तुलना में रुपये की कीमत में गिरावट) के बीच ब्रांड इंडिया रूपी भारत की छवि पर क्या असर पड़ा है, इसे लेकर ज्यादातर विश्लेषकों का मत यह है कि विकास दर, मुद्रास्फीति और व्यापार घाटा जैसे बुनियादी आर्थिक आंकड़ों का कमजोर पड़ना, रेटिंग एजेंसियों द्वारा देश की क्रेडिट रेटिंग घटाने की चेतावनी समस्याएं पैदा कर रही हैं। लेकिन भारत की ब्रांड वैल्यू पर इन बातों का कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा है। इसकी एक वजह राजनीतिक इच्छाशक्ति और दृढ़ता हो सकती है। जिस प्रकार अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने जनता के हित में रूस से तेल सौदे किए और कई अंतरराष्ट्रीय मसलों में अपनी राय स्पष्ट रखी, उससे यह संदेश गया है कि भारत में फैसले राष्ट्रहित और जनहित में लिए जाते हैं, न कि किसी अन्य देश के दबाव में। यह भी ध्यान में रखना होगा कि किसी अन्य चीज की तरह देशों की वैश्विक छवि भी अंतत: उनकी भीतरी गुणवत्ता से ही तय होती है। इसलिए सरकारों को बाहरी छवि की चिंता अवश्य करनी चाहिए, लेकिन देश के आम लोगों की खुशहाली सुनिश्चित किए बगैर नहीं।

    [असोसिएट प्रोफेसर, बेनेट यूनिवर्सिटी, गेट्रर नोएडा]