Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कर्नाटक के बाद तेलंगाना में क्यों उठा मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा, पढ़ें कब हुई इसकी शुरुआत?

    By Manish NegiEdited By: Manish Negi
    Updated: Tue, 09 May 2023 03:10 PM (IST)

    कर्नाटक के बाद अब तेलंगाना में भी मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा जोर पकड़ने लगा है। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि तेलंगाना में बीजेपी सरकार बनने पर मुस्लिम ...और पढ़ें

    Hero Image
    कर्नाटक के बाद तेलंगाना में क्यों उठा मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीख का एलान होने ही मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा जोर पकड़ने लगा। सिर्फ कर्नाटक में ही नहीं, अब यह मुद्दा तेलंगाना में भी गूंजने लगा है। दरअसल, तेलंगाना में भी इसी साल चुनाव है, इसलिए माना जा रहा है कि तेलंगाना में यह मुद्दा ज्यादा चर्चा में रहेगा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    क्यों चर्चा में मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा?

    दरअसल, कर्नाटक की बोम्मई सरकार ने कुछ ही महीने पहले राज्य में मुस्लिमों को दिया जाने वाला चार फीसदी अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) आरक्षण खत्म कर दिया है। आरक्षण को वोक्कालिगा और लिंगायत में दो-दो प्रतिशत बांटने का एलान किया गया है। राज्य सरकार के इसी फैसले से विवाद की शुरुआत हुई।

    मुस्लिम आरक्षण के खिलाफ बीजेपी नेता

    बीजेपी नेता मुस्लिम आरक्षण के खिलाफ मुखर हो रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने बीते दिनों एक रैली में कहा था कि अगर तेलंगाना में बीजेपी की सरकार बनी तो राज्य में मुसलमानों को मिलने वाला आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा। बीजेपी नेताओं का कहना है कि धर्म के आधार पर आरक्षण देना संविधान के खिलाफ है। यही वजह है कि कर्नाटक में इसे खत्म किया गया।

    कर्नाटक में कैसे मिला मुस्लिमों को आरक्षण?

    साल 1994 में कर्नाटक में मंडल कमीशन की सिफारिशों के तहत मुस्लिमों की कुछ जातियों को ओबीसी की कैटेगरी में एक सब कैटेगरी बनाकर शामिल किया गया था। इसके जरिए उन्हें चार फीसदी आरक्षण दिया गया। कर्नाटक में 1986 में चिनप्पा रेड्डी आयोग बनाया गया था। आयोग का काम राज्य में आरक्षण के लिए योग्य जातियों-समुदायों की लिस्ट तैयार करना था। चिनप्पा रेड्डी आयोग की ही सलाह पर ओबीसी के 32 फीसदी कोटे में से चार फीसदी आरक्षण मुसलमानों को दिया गया।

    अब तेलंगाना में भी बना मुद्दा

    मुस्लिम आरक्षण अब तेलंगाना में भी मुद्दा बन गया है। शाह ने 23 अप्रैल को हैदराबाद के पास एक रैली में तेलंगाना के 4% मुस्लिम कोटे को असंवैधानिक बताया था। उन्होंने कहा कि अगर राज्य में हमारी सरकार आएगी तो इसे खत्म किया जाएगा। उन्होंने सवाल किया कि राज्य की सत्ताधारी बीआरएस, कांग्रेस और एआईएमआईएम मुसलमानों को आरक्षण सूची में कब और किस आधार पर लेकर आई? क्या आरक्षण धर्म पर आधारित है? क्या इससे सभी मुसलमानों को फायदा होता है? क्या इन आरक्षणों से तेलंगाना के पिछड़े मुसलमानों का उत्थान हुआ? राजनीतिक दल इससे कैसे निपट रहे हैं?

    तेलंगाना में कब शुरू हुआ मुस्लिम आरक्षण?

    तेलंगाना के अस्तित्व में आने के कई साल पहले 1960 में मुस्लिमों को आरक्षण के दायरे में लाने का पहला प्रस्ताव आया, तब संयुक्त आंध्र प्रदेश में ओबीसी के पिछड़ेपन को लेकर अध्ययन किया जा रहा था। अध्ययन में पाया गया कि कुछ वर्ग जैसे धोबी और बुनकर शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चों पर अनुसूचित जाति (एससी) की तुलना में अधिक पिछड़े थे। इसलिए सरकार ने उसी समय से उन्हें पिछड़े वर्गों में शामिल करना शुरू कर दिया।

    हालांकि, आरक्षण के लिए मुस्लिमों को लंबा इंतजार करना पड़ा। साल 1994 में मुख्यमंत्री कोटला विजया भास्कर रेड्डी के नेतृत्व वाली आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने एक सरकारी आदेश जारी किया, जिसमें मुस्लिमों की दो श्रेणियों जैसे धोबी और बुनकर को ओबीसी सूची में शामिल किया गया। कांग्रेस की सरकार गिर गई और टीडीपी की सरकार बनी। टीडीपी लगभग नौ सालों तक पुट्टास्वामी आयोग की शर्तों का विस्तार करती रही। फिर 2004 में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में आई और मुसलमानों को ओबीसी मानकर पांचवीं श्रेणी बनाकर उन्हें 5 प्रतिशत कोटा देने का आदेश जारी किया गया।