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    भविष्य में आरक्षण का लाभ आर्थिक आधार पर ओबीसी के साथ ऊंची जातियों को भी मिले

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Mon, 05 Sep 2022 02:10 PM (IST)

    Reservation News कोर्ट ने कहा कि गरीबी और आर्थिक पिछड़ापन सबसे बड़ी सामाजिक बुराइयां हैं। अब मुक्त प्रतिस्पर्धा का समय है। पिछड़ी जातियों को भी विचार करना होगा कि सरकारी सुविधाओं के भरोसे रहने से उनका ही विकास बाधित होगा।

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    Reservation News: आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात

    नई दिल्‍ली, जेएनएन। सदियों के उत्पीड़न और भेदभाव के कारण पिछड़े वर्गों का समाज में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त प्रविधान की आवश्यकता का अनुभव आजादी से पहले ही होने लगा था। समय-समय पर इस दिशा में कुछ कदम भी उठाए गए थे, जिनसे आजादी के बाद आरक्षण व्यवस्था की नींव पड़ी।

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    • 1882 भारत में शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए हंटर आयोग का गठन हुआ था। उसी दौरान महात्मा ज्योतिबा फुले ने गरीब एवं वंचित तबके के लिए अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा की वकालत करते हुए सरकारी नौकरियों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की मांग की थी।
    • 1891 त्रावणकोर रियासत में सिविल नौकरियों में स्थानीय के बजाय बाहरी लोगों को मौका देने के विरुद्ध आरक्षण की मांग को लेकर आवाज उठाई गई थी।
    • 1901-02 कोल्हापुर रियासत के छत्रपति साहूजी महाराज (यशवंतराव) को आरक्षण व्यवस्था का जनक माना जाता है। उन्होंने वंचित तबके के लिए आरक्षण की व्यवस्था की थी। सभी को समान अवसर देने के लिए विशेष प्रविधान किए गए। वर्गविहीन समाज की वकालत करते हुए छुआछूत को खत्म करने पर उनका जोर रहा। 1902 में कोल्हापुर रियासत में अधिसूचना जारी करते हुए पिछड़े/वंचित समुदाय के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई। वंचित समुदाय के आरक्षण के लिए इसे देश में आधिकारिक रूप से पहला राजकीय आदेश माना जाता है। 1908 प्रशासन में कम हिस्सेदारी वाली जातियों की भागीदारी बढ़ाने के लिए अंग्रेजों ने भी 1908 में प्रविधान किया था।

    आजादी के बाद किया गया संविधान में प्रविधान

    स्वतंत्रता मिलने के बाद संविधान निर्माताओं ने अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को प्रतिनिधित्व का समान अवसर देने के लिए आरक्षण का प्रविधान किया था। 10 वर्ष में इसकी समीक्षा की बात कही गई थी, लेकिन तब से इसे लगातार बढ़ाया जाता रहा है।

    मंडल कमीशन ने बदली तस्वीर

    मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी सरकार ने सांसद बंदेश्वरी प्रसाद मंडल के नेतृत्व में 1979 में आयोग का गठन किया था। आयोग ने 1930 की जनगणना को आधार मानते हुए 1,257 समुदायों को पिछड़ा माना और उनकी आबादी 52 प्रतिशत बताई। 1980 में कमीशन ने अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें आरक्षण को 22 से बढ़ाकर 49.5 प्रतिशत करने का सुझाव दिया गया, जिसमें 27 प्रतिशत आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के लिए था। 1990 में वीपी सिंह सरकार ने मंडल की सिफारिशों को लागू किया। इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी गई, लेकिन शीर्ष न्यायालय ने इसे वैधानिक मानते हुए व्यवस्था दी कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।

    संवैधानिक प्रविधान

    • संविधान के भाग तीन में समानता के अधिकार की भावना निहित है। इसके तहत अनुच्छेद 15 में प्रविधान है कि जाति, प्रजातिर्, ंलग, धर्म या जन्मस्थान के आधार पर किसी व्यक्ति से भेदभाव नहीं किया जाएगा। 15 (4) के तहत राज्य को सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लिए आवश्यकता के अनुसार विशेष प्रविधान की शक्ति दी गई है।
    • अनुच्छेद 16 में अवसरों की समानता की बात है। 16 (4) के अनुसार यदि राज्य को लगता है कि सरकारी सेवाओं में पिछड़े वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, तो उनके लिए पद आरक्षित हो सकते है।
    • अनुच्छेद 330 के तहत संसद एवं 332 के तहत राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं।

    आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात

    आरक्षण नीति की समीक्षा: एक अप्रैल, 2012 को हरियाणा से कांग्रेस नेता अजय सिंह यादव ने जाट आरक्षण को लेकर चल रहे गतिरोध के बीच कहा था कि अब वक्त आ गया है कि सरकार आरक्षण नीति की समीक्षा करे। सामाजिक न्याय देने के लिए आदर्श स्थिति यह हो सकती है कि भविष्य में आरक्षण का लाभ आर्थिक आधार पर ओबीसी के साथ ऊंची जातियों को भी मिले।

    अहम है केरल हाई कोर्ट का फैसला

    केरल में राज्य सरकार ने ऊंची जातियों के गरीब छात्रों के लिए सितंबर, 2008 में सरकारी कालेजों में 10 प्रतिशत और विश्वविद्यालय स्तर पर 7.5 प्रतिशत सीटें आरक्षित कीं। इस फैसले की संवैधानिकता पर सवाल खड़े करते हुए मुस्लिम जमात ने केरल हाई कोर्ट में याचिका दायर की। 2010 में कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए आर्थिक आधार पर की गई व्यवस्था को उचित ठहराया। अदालत ने कहा कि अब समय आ गया है कि धीरे-धीरे धर्म और जाति आधारित आरक्षण के तंत्र से निकलते हुए योग्यता आधारित प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा या जाए। अगड़ी जातियों के प्रतिभाशाली गरीब छात्रों को भी उचित मौका मिलना चाहिए। प्रतिकूल आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें परेशानी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि गरीबी और आर्थिक पिछड़ापन सबसे बड़ी सामाजिक बुराइयां हैं। अब मुक्त प्रतिस्पर्धा का समय है। पिछड़ी जातियों को भी विचार करना होगा कि सरकारी सुविधाओं के भरोसे रहने से उनका ही विकास बाधित होगा।