Reservation: भारत में आरक्षण का इतिहास; अमेरिका-कनाडा समेत कई देशों में भी ऐसी विशेष व्यवस्था
संविधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई। बाद में पिछड़ा वर्ग के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई। हालांकि भारत में स्वतंत्रता से पहले ही आने लगा था विचार। दुनिया के कई देशों में आरक्षण की व्यवस्था देखने को मिलती है।

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भारत में आरक्षण बेहद संवेदनशील मुद्दा रहा है। इस पर जमकर राजनीति होती है। भारत में स्वतंत्रता के बाद आरक्षण की नीति आई। हालांकि, स्वतंत्रता से पहले ही इसका विचार आने लगा था। वैसे, बता दें कि दुनिया के कुछ अन्य देशों में भी अलग-अलग नाम एवं प्रविधानों के साथ आरक्षण से मिलती-जुलती व्यवस्था देखने को मिलती है। आइए आपको बताते हैं आरक्षण व्यवस्था का इतिहास...!
संविधान में किए गए 103वें संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर
सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संविधान में किए गए 103वें संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि इस व्यवस्था से संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं होता है। इस निर्णय के दौरान न्यायाधीशों की टिप्पणियां बहुत अहम हैं। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा कि आरक्षण की व्यवस्था का उद्देश्य ऐतिहासिक भूलों को सुधारना एवं समाज में सभी को समान अवसर देना था। सात दशक में भी यदि उद्देश्य पूरा नहीं हुआ, तो इसकी समीक्षा होनी चाहिए। जस्टिस जेबी पार्डीवाला ने भी कहा कि आरक्षण को अनंतकाल तक चलने वाली व्यवस्था नहीं बनाया जा सकता है। न्यायाधीशों की इन टिप्पणियों ने एक बार फिर आरक्षण के औचित्य एवं इसकी समीक्षा पर चर्चा को बल दिया है।
आरक्षण लाभार्थी जातियों के बीच भी अगड़े और पिछड़े?
यह प्रश्न कई बार अलग-अलग मंचों से उठता रहा है कि आरक्षण की व्यवस्था से समाज के लक्षित वर्ग को कितना लाभ मिला है? क्या यह व्यवस्था अपना उद्देश्य पूरा करने में सफल रही है? लाभार्थी जातियों के बीच भी अगड़े और पिछड़े जैसी स्थितियां बनने की बातें सामने आती हैं। कई मामलों में देखा गया है कि आरक्षण का लाभ लंबे समय से कुछ निश्चित लोग ही उठा रहे हैं। यह सवाल भी आता है कि जो अभी तक उपेक्षित है, उस तक लाभ कैसे पहुंचाया जाए? ध्यान देने की बात है कि आरक्षण पर विमर्श के समय संविधान सभा में भी इसकी समयसीमा तय करने और समीक्षा को लेकर तर्क रखे गए थे। आरक्षण व्यवस्था को लेकर अनुभवों का आकलन करते हुए अब इसके स्वरूप पर चर्चा की आवश्यकता है। आरक्षण की व्यवस्था को वर्तमान स्वरूप में ही जारी रखना श्रेयस्कर है या इसमें समयानुकूल बदलाव किए जाने की आवश्यकता है, इसकी पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
स्वतंत्रता से पहले ही आने लगा था विचार
- 1882 में प्राथमिक शिक्षा को लेकर हंटर कमीशन गठित हुआ। तब ज्योतिराव फुले ने वंचित तबके के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा की वकालत की थी।
- 1891 में त्रावणकोर रियासत में सिविल नौकरियों में बाहर के लोगों को प्राथमिकता देने के विरुद्ध सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग हुई।
- 1901-02 में कोल्हापुर रियासत के छत्रपति शाहूजी महाराज ने आरक्षण व्यवस्था शुरू की। वंचित तबके के लिए मुफ्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही हास्टल भी खोले गए। ऐसे प्रविधान किए गए, जिससे सभी को समान आधार मिले। वह वर्ग विहीन समाज के पक्षधर थे। 1902 की अधिसूचना में पिछड़े/वंचित समुदाय के लिए नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई।
- 1908 में अंग्रेजों ने भी जिन जातियों की प्रशासन में कम हिस्सेदारी थी, उनकी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था में कुछ प्रविधान किए थे।
स्वतंत्र भारत में बनी सुदृढ़ व्यवस्था
संविधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई। बाद में पिछड़ा वर्ग के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई।
मंडल कमीशन ने बदली तस्वीर
- मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ों की पहचान के लिए 1979 में संसद सदस्य बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में आयोग गठित किया। सीटों का आरक्षण और कोटे का निर्धारण भी आयोग का उद्देश्य था।
- आयोग के पास अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) में शामिल उप-जातियों का वास्तविक आंकड़ा नहीं था। आयोग ने 1930 के जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर 1,257 समुदायों को पिछड़ा घोषित करते हुए उनकी जनसंख्या 52 प्रतिशत निर्धारित की। 1980 में कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में पिछड़ी जातियों की हिस्सेदारी शामिल करते हुए कोटे की व्यवस्था को 22 प्रतिशत से 49.5 प्रतिशत तक करने का सुझाव दिया। इसमें ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत का प्रविधान किया गया। 1990 में वीपी सिंह की सरकार ने इसके सुझावों को लागू किया।
- सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को वैधानिक ठहराते हुए व्यवस्था दी कि किसी भी स्थिति में आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
जीवन स्तर में आ रहा सुधार
2014 में तत्कालीन योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2004-05 से 2011-12 के बीच एससी, एसटी और अन्य ओबीसी वर्ग में गरीबों की संख्या में तेज गिरावट आई दर्ज की गई।
दुनिया के कई देशों में आरक्षण की व्यवस्था
दुनिया के कुछ अन्य देशों में भी अलग-अलग नाम एवं प्रविधानों के साथ आरक्षण से मिलती-जुलती व्यवस्था देखने को मिलती है। समाज में हाशिए पर जी रहे और पीछे रह गए वर्गों को आगे लाने के लिए स्वतंत्रता के पहले से प्रयास शुरू कर दिए गए थे। विश्लेषण किया जाए तो इन प्रविधानों से समाज में व्यापक बदलाव भी देखने को मिला है।
विकसित देश
अमेरिका: अफरर्मेटिव एक्शन के तहत नस्लीय भेदभाव झेलने वाले अश्वेतों को बराबर प्रतिनिधित्व के लिए कुछ स्थानों पर अतिरिक्त नंबर दिए जाते हैं। वहां की मीडिया, फिल्मों में भी अश्वेत कलाकारों का आरक्षण निर्धारित है।
कनाडा: यहां समान रोजगार का प्रविधान है। इसके तहत लाभ वहां के सामान्य तथा अल्पसंख्यकों को भी होता है। भारत से गए सिख इसके उदाहरण हैं। स्वीडन: यहां जनरल अफर्मेटिव एक्शन के तहत आरक्षण जैसी व्यवस्था की गई है।
विकासशील देश
ब्राजील: यहां आरक्षण को वेस्टीबुलर के नाम से जाना जाता है। इसके तहत ब्राजील के संघीय विश्वविद्यालयों में 50 प्रतिशत सीटें उन छात्रों के लिए आरक्षित हैं, जो अफ्रीकी या मूल निवासी गरीब परिवारों से हैं। हर राज्य में काले, मिश्रित नस्लीय और मूल निवासी छात्रों के लिए आरक्षित सीटें उस राज्य की नस्लीय जनसंख्या के आधार पर होती हैं।
दक्षिण अफ्रीका: काले और गोरे के लिए समान रोजगार की व्यवस्था है। अफ्रीका की राष्ट्रीय टीम में गोरे खिलाड़ियों की संख्या पांच से अधिक नहीं होने की व्यवस्था है।
मलेशिया: यहां राष्ट्रीय नीतियों के तहत स्थानीय भूमिपुत्र आबादी को सस्ते घर और सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता मिलती है।
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