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    गणतंत्र@75: यूं ही नहीं विश्व गुरु बन रहा देश, 75 साल के लंबे सफर में बहुत कुछ बदला, पढ़ें विकासशील भारत की कहानी

    Updated: Sun, 26 Jan 2025 06:27 PM (IST)

    Republic day 2025 देश में 26 जनवरी 1950 को संविधान के लागू होने के बाद से राष्ट्र निर्माण के लिए जो ऊर्जा दिखी वह पिछले साढ़े सात दशक से लगातार मजबूत होती जा रही है। उपलब्धियों की बढ़ती श्रृंखला के पीछे हमारा संविधान ही है जो हमें अनुशासित लगनशील और मेहनतकश बनाता है। आइए जानते हैं पिछले 75 सालों में देश में क्या कुछ हुआ।

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    Republic day 2025 विकसित भारत की ओर जाने की कहानी पढ़िए। (फोटो- जागरण ग्राफिक्स)

    जेएनएन, नई दिल्ली। Republic day 2025  अंग्रेजों से आजादी तो हमें 1947 में ही मिल गई थी, लेकिन स्वतंत्रता के सही मायनों को हमने 1950 में जीना शुरू किया। 26 जनवरी 1950 को संविधान के लागू होने के बाद से अपने तौर-तरीकों से राष्ट्र निर्माण के लिए जो ऊर्जा दिखी, वह पिछले साढ़े सात दशक से लगातार मजबूत होती जा रही है।

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    अपने अपार मानव संसाधन के बलबूते आत्मनिर्भरता की राह पर विकासशील से विकसित देश बनने की ओर अग्रसर हो चला है। दुनिया हमारी तरफ देख रही है। हर वैश्विक मंच पर हमारी आवाज का मतलब निकाला जाने लगा है।

    उपलब्धियों की बढ़ती श्रृंखला के पीछे हमारा संविधान ही है जो हमें अनुशासित, लगनशील और मेहनतकश बनाता है।

    इसने हमें अधिकार दिए जो कर्तव्यों की भी याद दिलाई है। इन्हीं संविधान प्रदत्त अधिकारों के दम पर ही आज फिर से भारत विश्व गुरु की अपनी पुरातन छवि के रूप में देखा जाने लगा है। नागरिक कल्याण और देश निर्माण से जुड़े ऐसे ही मील के पत्थरों को याद कर रहे हैं महेंद्र प्रताप सिंह...

    सबको मतदान का अधिकार

    • संविधान लागू होने से ठीक एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को चुनाव आयोग गठित किया गया था। यह कोई संयोग नहीं है कि भारतीय गणराज्य का पहला बड़ा विधायी उपाय सबको मतदान का अधिकार देने की संवैधानिक प्रतिबद्धता को लागू करना था।
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और 1951 के जरिये ऐसा किया गया। 1950 के अधिनियम ने मतदाता सूची तैयार करने और निर्वाचन क्षेत्रों का सीमांकन करने की प्रक्रिया और मशीनरी निर्धारित की, वहीं 1951 के अधिनियम ने चुनाव कराने के लिए अधिसूचना से लेकर परिणामों की घोषणा तक का प्रविधान किया।
    • इन अधिनियमों में अब तक कई संशोधन किए गए हैं। जैसे प्रचार की अवधि को एक महीने से घटाकर 15 दिन कर दिया गया है। 

    यही नहीं देश में कृषि सुधार कानून भी लाया गया

    हिंदू कोड बिल 

    डा. भीमराव आंबेडकर ने फरवरी 1951 में हिंदू कोड बिल संसद में पेश किया। इस बिल का इतना विरोध हुआ कि उन्होंने सात महीने के भीतर ही कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। 1952 में पहला लोकसभा चुनाव जीतने के बाद ही नेहरू सरकार ने हिंदू सुधार एजेंडे को आगे बढ़ाया। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 क्रांतिकारी था। इसने बहुविवाह को गैरकानूनी घोषित कर दिया और एक ऐसे समुदाय में तलाक की अवधारणा पेश की, जो मानता था कि विवाह एक संस्कार है जो एक जोड़े को जन्म-जन्मांतर तक एक साथ बांधता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 ने महिलाओं को पारंपरिक रूप से दिए गए सीमित अधिकारों के बजाय पारिवारिक संपत्ति में उनके हिस्से के लिए पूर्ण स्वामित्व प्रदान किया।

    अस्पृश्यता पर प्रहार 

    संविधान ने पहली बार अस्पृश्यता को समाप्त किया। अस्पृश्यता के विभिन्न रूपों को दंडित करने वाला कानून, नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 लागू किया गया। यह कानून जातिगत पूर्वाग्रह और भेदभाव के मामलों तक ही सीमित था, इसलिए राजीव गांधी सरकार ने जाति के आधार पर की जाने वाली हिंसा से निपटने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 बनाया। 

    राज्यों का पुनर्गठन 

    • 1956 में लागू किए गए सातवें संविधान संशोधन ने भाषाई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की अवधारणाएं पेश कीं।
    • भाषा के आधार पर राज्य बनाने की मांग पूरे देश में हो रही थी, लेकिन 1952 में पोट्टी श्रीरामुलु की भूख हड़ताल से इसमें तेजी आई मिली थी। उनकी भूख हड़ताल मद्रास राज्य के तेलुगु भाषी जिलों को मिला कर आंध्र राज्य बनाने के लिए थी।
    • 1953 में आंध्र राज्य के गठन के बाद राज्य पुनर्गठन आयोग (एसआरसी) की नियुक्ति की गई। आयोग शुद्ध रूप से भाषाई आधार पर सीमाओं को फिर से निर्धारित करने के विचार से सहमत नहीं था।
    • हालांकि, एसआरसी ने हैदराबाद को राजधानी बनाकर एक अलग तेलंगाना राज्य के गठन की सिफारिश की थी, लेकिन सरकार ने आंध्र के नेताओं के दबाव में झुकते हुए 1956 में दो तेलुगु भाषी क्षेत्रों को मिलाकर आंध्र प्रदेश बना दिया।
    • एसआरसी ने सिफारिश की कि बांबे गुजराती और मराठी भाषी जिलों को शामिल करते हुए एक संयुक्त राज्य बना रहे, लेकिन सरकार ने 1960 में सभी मराठी भाषी जिलों को मिलाकर महाराष्ट्र बनाने की मांग मान ली।

    दल बदल विरोधी कानून

    राजीव गांधी की सरकार 1985 में 52वें संविधान संशोधन के रूप में लंबे समय से लंबित दलबदल विरोधी कानून लेकर आई। इसने दलबदल को मुश्किल बनाया लेकिन इसकी गुंजाइश अब भी थी। राजनेताओं ने एक खामी का फायदा उठाया, जिसके तहत विधायक दल के कम से कम एक तिहाई सदस्यों के दलबदल को विभाजन माना जाता था। वाजपेयी सरकार ने 2003 में 91वें संविधान संशोधन के साथ इस खामी को दूर कर दिया। अब दलबदल केवल विलय के रास्ते से ही हो सकता है। इसके लिए जरूरी है कि विधायक दल के कम से कम दो तिहाई सदस्य दूसरे के साथ विलय के लिए सहमत हों।

    पंचायती राज कानून

    ग्राम स्वराज (ग्राम स्वशासन) का गांधीवादी सपना 1992 में साकार हुआ। केंद्र सरकार ने सरकार ने 73वें संविधान संशोधन को आगे बढ़ाया। लोकतंत्र को जमीनी स्तर पर ले जाने के अलावा, पंचायती राज कानून ने महिलाओं के लिए एक तिहाई निर्वाचन क्षेत्रों को आरक्षित किया। यह एक ऐसा प्रविधान था जिसे शासन के स्तर पर बार बार रोका गया था। इसके बाद 74 वें संविधान संशोधन के जरिये शहरी क्षेत्रों में नगर पालिकाओं को संस्थागत बनाया गया।

    सूचना का अधिकार

    2005 में भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआइ) लागू हुआ। इसने शासन-प्रशासन की तस्वीर बदलकर रख दी। यह कानून आम जनता के लिए एक ऐसा हथियार साबित हुआ, जिसने पारदर्शिता और जवाबदेही की नई इबारत लिखी। आरटीआइ ने हर नागरिक को यह अधिकार दिया कि वे सरकारी प्राधिकरणों से किसी भी तरह की जानकारी मांग सकें।