लोकसभा में पेश संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट, 9 पिघलते ग्लेशियरों का अध्ययन, 76 पर नजर
हिमालयी क्षेत्र में अध्ययन किए गए अधिकांश ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इसकी जानकारी केंद्र सरकार ने एक संसदीय समिति को दी है। उन्होंने बताया कि विभिन्न क्षेत्रों में इनके पिघलने की दर अलग-अलग है। ग्लेशियर के पिछलने से प्राकृतिक आपदाएं बढ़ेंगी।
नई दिल्ली, एजेंसी। हिमालयी क्षेत्र में अध्ययन किए गए अधिकांश ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इसकी जानकारी केंद्र सरकार ने एक संसदीय समिति को दी है।
उन्होंने बताया कि विभिन्न क्षेत्रों में इनके पिघलने की दर अलग-अलग है। पिघले हुए ग्लेशियरों ने ना सिर्फ हिमालय की नदी प्रणालियों के प्रवाह को बुरी तरह से प्रभावित किया है बल्कि इससे प्राकृतिक आपदाओं की घटना भी बढ़ सकती है।
बुधवार को लोकसभा में पेश संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में बताया गया है कि हिमालय के ग्लेशियरों के बड़े पैमाने पर पिघलने और अपना स्थान छोड़ने की घटनाएं सालों में बढ़ी हैं।
जल संसाधन विभाग, नदी विकास और गंगा पुनरोद्धार विभाग का कहना है कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने 9 पिघलते ग्लेशियरों पर अपना गहन अध्ययन कराया है। इसके अलावा अपने स्थान से पीछे हटने या आगे बढ़ने वाले 76 ग्लेशियरों की भी निगरानी की जा रही है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि विभिन्न क्षेत्रों में हिमालय के ग्लेशियरों में अधिकांश विभिन्न दरों से या तो पिघलते जा रहे हैं या फिर अपने स्थान से पीछे खिसकते जा रहे हैं।
विभाग ने इस बात पर भी ध्यान केंद्रित कराया है कि पर्यावरण में बदलाव के कारण ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से हिमालयी नदी प्रणालियों के प्रवाह में तो बदलाव आएगा ही बल्कि ग्लेशियर की झीलों के फटने से बाढ़, ग्लेशियरों के कारण बर्फीले तूफान और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ जाएंगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लेशियरों के पिघलने से पहाड़ों पर और तलहटी में रहने वाली आबादी की आजीविका भी खतरे में पड़ जाएगी। ऐसे बदलावों से हिमालय के जैवविविधता संरक्षण और इकोसिस्टम पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा।
संसद की स्थायी समिति ने जल विज्ञान संबंधी सूचनाओं को पड़ोसी देशों से साझा करने में कमी पर भी सवाल उठाए हैं। समिति का कहना है कि इस संबंध में पड़ोसी देशों से कोई विशेष समझौता या संधि नहीं है।