मशहूर साहित्यकार राजेंद्र यादव का निधन
नई दिल्ली [जासं]। मशहूर साहित्यकार राजेंद्र यादव का सोमवार देर रात निधन हो गया। 85 वर्षीय यादव को सांस लेने में तकलीफ के चलते रात 11 बजे अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। लोधी रोड स्थित शवदाह गृह में मंगलवार शाम उनका अंतिम संस्कार किया गया। पुत्री रचना व दामाद ने उन्हें मुखाग्नि दी। मीडिया, साहित्य व राजनीति से जुड़े लोगों ने उन्हें अंतिम विदाई दी।
नई दिल्ली [जासं]। मशहूर साहित्यकार राजेंद्र यादव का सोमवार देर रात निधन हो गया। 85 वर्षीय यादव को सांस लेने में तकलीफ के चलते रात 11 बजे अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। लोधी रोड स्थित शवदाह गृह में मंगलवार शाम उनका अंतिम संस्कार किया गया। पुत्री रचना व दामाद ने उन्हें मुखाग्नि दी। मीडिया, साहित्य व राजनीति से जुड़े लोगों ने उन्हें अंतिम विदाई दी।
राजेंद्र यादव को साहित्य जगत में मोहन राकेश और कमलेश्वर के बाद नई कहानी विधा का अंतिम हस्ताक्षर माना जाता है। उन्होंने वर्ष 1986 में कालजयी रचनाकार मुंशी प्रेमचंद की पत्रिका हंस का फिर से प्रकाशन किया और निरंतर विचारोत्तेजक लेख प्रकाशित किए। उनके कई लेख विवादित भी रहे। हिंदी साहित्य में उनकी पहचान लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षण, मानवाधिकारों, दलित और महिला विमर्श पर बेबाक राय रखने वाले साहित्यकार के रूप में थी।
राजेंद्र यादव ने उपन्यास, कहानी, निबंध सहित कई विधाओं में लेखन किया। उनकी प्रसिद्ध कृति उपन्यास सारा आकाश, अनदेखे अनजान पुल, कुल्टा है। सारा आकाश पर फिल्म भी बनी है। 28 अगस्त, 1929 को आगरा में जन्मे राजेंद्र यादव ने वर्ष 1951 में आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए किया था। पूरे विश्वविद्यालय में उन्होंने पहला स्थान पाया था।
लेखिका मन्नू भंडारी के साथ राजेंद्र यादव का विवाह हुआ पर उनका वैवाहिक जीवन बहुत लंबा नहीं रहा। बाद में दोनों ने अलग-अलग रहने का फैसला किया। मन्नू भंडारी के साथ उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कृति एक इंच मुस्कान लिखी। राजेंद्र यादव ने चेखव समेत रूसी भाषा के कई बड़े साहित्यकारों की पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया। वर्ष 1999 से 2001 के दौरान वह प्रसार भारती बोर्ड के नामित सदस्य भी रहे।
वरिष्ठ आलोचक नामवर सिंह ने कहा कि राजेंद्र यादव ने हंस पत्रिका निकालकर बहुत बड़ा काम किया। यदि वह कुछ और न करते तो भी अमर हो जाते। उन्होंने हंस को सांस्कृतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। सवाल यह है कि उनके जाने के बाद पत्रिका का क्या होगा, क्योंकि साहित्य जगत में कौवों की भीड़ है।
वहीं, साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा, राजेंद्र की साहित्यिक सक्रियता जीवन-पर्यत बनी रही। हंस के द्वारा उन्होंने दलित और स्त्री विमर्श को साहित्य की मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया। उनके दो टूक बयान कई बार विवाद का विषय बने, लेकिन उन्होंने अपनी पराजय स्वीकार नहीं की। वह एक सूरमा की तरह साहित्य के मोर्चे पर लड़ते रहे।
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक चक्रधर ने कहा, वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र जी ने 60 साल पहले नई कहानी और नए सिनेमा के लिए जो किया वह आज भी नया है। मानवीय संबंधों को लेकर उन्होंने हमेशा पारदर्शिता बरती, जो बहुत से लोगों को नागवार गुजरा। वह निर्भीक और सजग साहित्यकार थे।
वरिष्ठ साहित्यकार असगर वजाहत ने कहा, यादव जैसा विलक्षण व्यक्ति होना मुश्किल है। वह अपनी कमियों, बुराइयों को भी साधारण तरीके से व्यक्त करते थे। उनके विचारों से कुछ लोगों को परेशानी हुई, लेकिन उन्होंने खुद को नहीं बदला। उनका निधन साहित्य जगत में बहुत बड़ी रिक्तता है।
वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा, राजेंद्र यादव नई कहानी विधा की त्रयी के अंतिम लेखक थे। पत्नी मन्नू भंडारी के साथ मिलकर उन्होंने जिस तरह एक इंच मुस्कान लिखी, वैसा प्रयोग साहित्य जगत में कम है। नारी चेतना और दलित चेतना को लेकर वह आंदोलनकारी की तरह सामने आए।
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