रिनीवेबल परियोजनाओं को ट्रांसमिशन शुल्क में मिली छूट बढ़ाने का दबाव, Solar Energy कंपनियों ने लगाई गुहार
नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं से बनी बिजली की कीमतों में वृद्धि की आशंका है क्योंकि ट्रांसमिशन शुल्क में छूट की अवधि समाप्त हो रही है। सौर ऊर्जा कंपनियों का दावा है कि कीमतें 40 पैसे से 1.80 रुपये प्रति यूनिट तक बढ़ सकती हैं। ऊर्जा महासंघ सरकार से छूट को जारी रखने का दबाव बना रहा है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। क्या रिनीवेबल ऊर्जा क्षेत्र की परियोजनाओं से बनी बिजली की कीमत 30 जून, 2025 के बाद 40 पैसे प्रति यूनिट से लेकर 1.80 रुपये प्रति यूनिट तक बढ़ जाएंगी? सौर ऊर्जा कंपनियां तो यही दावा कर रही हैं। दरअसल रिनीवेबल ऊर्जा परियोजनाओं की बिजली को एक राज्य से दूसरे राज्य भेजने पर लगने वाली ट्रांसमिशन शुल्क में अभी छूट मिली हुई है।
केंद्र सरकार की तरफ से दी जाने वाली इस छूट की अवधि इस महीने के अंत तक है और अभी तक बिजली मंत्रालय की तरफ से यह स्थिति साफ नहीं की गई है कि इस छूट को आगे जारी रखा जाएगा या नहीं। ऐसे में उर्जा महासंघ की ओर से दबाव है कि इसे बढ़ाया जाए।
लटक सकता है बिजली खरीद समझौते का मामला
विगत हफ्ते सौर ऊर्जा महासंघ की तरफ से पीएमओ और बिजली मंत्रालय को पत्र लिख कर कहा है कि अगर बिजली की लागत बढ़ती है तो 40 हजार मेगावाट की रिनीवेबल सेक्टर की परियोजनाओं के लिए बिजली खरीद समझौते (पीपीए) का मामला लटक सकता है। साथ ही इस क्षेत्र में पांच लाख करोड़ रुपये के निवेश पर उल्टा असर पड़ सकता है।
बिजली मंत्री मनोहर लाल खट्टर को लिखे पत्र में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक देश में पांच लाख मेगावाट की बिजली रिनीवेबल सेक्टर से बनाने के लिए ट्रांसमिशन शुल्क में मिली छूट को कम से कम जून, 2026 तक बढ़ाया जाना चाहिए। पत्र में कहा गया है कि सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा कंपनियों ने पिछले तीन-चार वर्षों में जो प्रगति हासिल की है उसके पीछे ट्रांसमिशन फीस से मिली छूट का काफी हद तक योगदान रहा है। इसकी वजह से आम जनता को काफी सस्ती दर पर सौर ऊर्जा से बनी पर्यावरण अनुकूल बिजली मिल पा रही है।
कई ट्रांसमिशन लाइन समय पर पूरे भी नहीं हुए
पीएमओ को लिखे पत्र में यह भी कहा गया है कि ट्रांसमिशन शुल्क में रिनीवेबल ऊर्जा कंपनियों को छूट देने की घोषणा वर्ष 2021 में की गई थी लेकिन इसके बारे में केंद्रीय बिजली नियामक आयोग ने वर्ष 2023 में आवश्यक दिशानिर्देश जारी किया था। इस तरह से इस सेक्टर को सिर्फ दो-ढ़ाई वर्ष का ही समय मिला है।
इस बीच भूमि अधिग्रहण, राज्यों की तरफ से समय पर अनुमति नहीं मिलने और कानून-व्यवस्था जैसी वजहों से कई परियोजनाएं अटकी हुई हैं। इसके अलावा कई ट्रांसमिशन लाइन समय पर पूरे भी नहीं हुए हैं। जैसे नरेन्द्र-पुणे, खेतरी-नरेला, कोप्पाल -गडाग ट्रांसमिशन लाइन (रिनीवेबल परियोजनाओं को राज्यों की बिजली ट्रांसमिशन लाइन से जोड़ने वाली) से जुड़े प्रोजेक्ट काफी देरी से शुरू किये गये। इसमें कंपनियों की कोई गलती नहीं है।
सरकार से मांग की गई है कि 30 जून, 2023 से पहले कनेक्टिविटी के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों, परियोजना के लिए वित्त की पूरी व्यवस्था करने वाली कंपनी, परियोजना के लिए आवश्यक 50 फीसद जमीन का अधिग्रहण करने वाली कंपनियों को 30 जून, 2026 तक ट्रांसमिशन छूट मिलनी चाहिए।
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