कार्बन टैक्स का खतरा: क्या अब मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों को Renewable Energy मिलेगी; यूनिट्स तक पहुंचेगी कैसे?
कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए कई देश कोयला बिजली से बने उत्पादों के आयात को हतोत्साहित कर रहे हैं। यूरोपीय संघ ने नियम लागू किए हैं जिससे भारतीय स्टील निर्यात प्रभावित हो सकता है। सरकार मैन्युफैक्चरिंग उद्योग को केवल नवीकरणीय ऊर्जा से बिजली देने की नीति पर विचार कर रही है। इसके लिए बुनियादी ढांचे में बदलाव और नवीकरणीय ऊर्जा वितरण में सुधार की आवश्यकता होगी।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। दुनिया में कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में कुछ देशों की तरफ से उन सभी उत्पादों के आयात को हतोत्साहित करने की कोशिश शुरू हो गई है, जिनके उत्पादन में कोयला से बनी बिजली का इस्तेमाल किया गया हो।
यूरोपीय संघ ने इस बारे में नए नियमों को लागू कर भी कर दिया है, जिसकी वजह से आने वाले दिनों में भारत में निर्मित स्टील के आयात में बाधा पैदा होने की संभावना है।
बहुत संभव है कि दुनिया के दूसरे विकसित देशों की तरफ से भी पर्यावरण को ज्यादा क्षति पहुंचाने वाले ऊर्जा स्रोतों से बने उत्पादों के वैश्विक कारोबार में अड़ंगे लगाए जाने की संभावना है।
सरकार इसको भांपते हुए इस बात की संभावना तलाश रही है कि क्या देश के समूचे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को सिर्फ अपारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से ही बिजली दी जाए।
इस बारे में देश के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से बिजली और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) को आवश्यक निर्देश दिए गए हैं। वैसे उक्त दोनों मंत्रालयों के अधिकारी मान रहे हैं, यह बहुत ही महत्वाकांक्षी परियोजना होगी जिसको लागू करने को लेकर कई स्तरों पर कोशिश करनी होगी।
मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां तक कैसे पहुंचाएं रिन्यूएबल एनर्जी?
एमएनआरई मंत्रालय के अधिकारी मानते हैं कि अभी देश में जितनी बिजली का उत्पादन रिन्यूएबल ऊर्जा सेक्टर में हो रहा है और वर्ष 2030 तक अतिरिक्त क्षमता जितनी जोड़ी जानी है, उसे देखते हुए चार-पांच वर्षों बाद सिर्फ रिन्यूएबल से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बिजली देना संभव है, लेकिन इसके लिए कई स्तर की तैयारी करनी होगी।
जैसे मैन्युफैक्चरिंग संयंत्रों की बिजली आपूर्ति व्यवस्था में सिर्फ रिन्यूएबल ऊर्जा से बिजली जाए, इसके लिए कई तरह के बदलाव करने होंगे।
मौजूदा बिजली वितरण व्यवस्था में भी बड़े बदलाव करने होंगे। बड़े-बड़े औद्योगिक इकाइयों में सिर्फ रिन्यूएबल ऊर्जा (सौर, पवन, पनबिजली आदि) से बिजली पहुंचाना तो आसान है लेकिन देश के कई हिस्सों में जो मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां स्थित हैं, उन तक कैसे इन्हें पहुंचाया जाएगा, इसकी व्यवस्था करनी होगी।
INDIA की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता कितनी है?
भारत की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता अभी 4.70 लाख मेगावाट है जिसमें 2.14 लाख रिन्यूएबल ऊर्जा की हिस्सेदारी है, जबकि 2.48 लाख मेगावाट के करीब ताप बिजली संयंत्रों का हिस्सा है।
इस तरह से कुल बिजली की स्थापित क्षमता में ताप बिजली (कोयला आधारित संयंत्र) की हिस्सेदारी 56 फीसद है, लेकिन जब कुल बिजली आपूर्ति की बात होती है तो इनकी हिस्सेदारी अभी भी 72-74 फीसद है।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश में जितनी बिजली की खपत होती है उसमें 42 फीसद हिस्सा औद्योगिक सेक्टर का होता है। घरेलू क्षेत्र में बिजली की खपत कुल खपत का 26 फीसद है, कृषि क्षेत्र में 17 फीसद और वाणिज्यिक सेक्टर में 8 फीसद है।
अप्रैल, 2025 में देश में बिजली की कुल खपत (पीक आपर डिमांड) 2.35 लाख मेगावाट पहुंच चुका है। अगर गर्मी बढ़ती है तो यह मांग 2.50-2.60 लाख मेगावाट तक पहुंच सकती है।
औद्योगिक सेक्टर को कितनी ऊर्जा चाहिए?
इस हिसाब से देखा जाए तो औद्योगिक सेक्टर को अभी के हिसाब से तकरीबन एक लाख से 1.10 लाख मेगावाट बिजली चाहिए। पश्चिमी देशों की तरफ से कार्बन उत्सर्जन को मुद्दा बनाये जाने को भारत सरकार काफी गंभीरता से ले रही है। अभी यूरोपीय संघ के साथ भारत की मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बात हो रही है।
हाल ही में उद्योग व वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने यह कहा है कि अगर यूरोपीय देशों ने कार्बन टैक्स (ज्यादा कार्बन उत्सर्जित करने वाली कंपनियों के उत्पादों पर ज्यादा टैक्स लगाना) का मुद्दा उठाया तो भारत भी इसके विरोध में कदम उठाएगा।
भारत सरकार जिस तत्परता से घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दे रही है, उसकी राह में भी यूरोपीय देशों का कार्बन टैक्स रोड़े अटका सकता है।
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