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    NCERT की किताबों से हटाई जाए ब्रिटिश शासकों की 'लॉर्ड' की उपाधि, राज्यसभा में भाजपा सांसद ने उठाई मांग

    Updated: Fri, 05 Dec 2025 10:42 PM (IST)

    भाजपा सांसद सुजीत कुमार ने राज्यसभा में मांग की कि एनसीईआरटी की किताबों और सरकारी दस्तावेजों से ब्रिटिश वायसराय के नाम के आगे लगने वाली 'लॉर्ड' उपाधि ...और पढ़ें

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    भाजपा सांसद की 'लॉर्ड' उपाधि हटाने की मांग

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भाजपा नेता सुजीत कुमार ने शुक्रवार को सरकार से मांग की कि स्कूल की पाठ्यपुस्तकों, एनसीईआरटी की किताबों, सरकारी दस्तावेज और आधिकारिक वेबसाइटों में ब्रिटिश वायसरायों और गवर्नर जनरलों के लिए उपयोग की जाने वाली 'लार्ड' उपाधि को हटाया जाए।

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    उन्होंने कहा कि यह प्रथा स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी 'औपनिवेशिक मानसिकता' को बढ़ावा देती है। राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाते हुए सुजीत कुमार ने कहा, कक्षा आठवीं और 12 की एनसीईआरटी की इतिहास की पाठ्यपुस्तकों, दस्तावेज, वेबसाइटों की रैंडम जांच की।

    भाजपा सांसद की 'लॉर्ड' उपाधि हटाने की मांग

    कक्षा आठवीं और 12 की एनसीईआरटी की इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में लार्ड कर्जन, लार्ड माउंटबेटन, लार्ड डलहौजी और लार्ड लिटन जैसे कई संदर्भ मिले। संस्कृति मंत्रालय, प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआइबी), भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) और यहां तक कि बिहार के 'लोक भवन' की आधिकारिक वेबसाइटों में भी ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासकों के लिए इस उपाधि का उल्लेख है।

    ओडिशा से राज्यसभा सदस्य सुजीत कुमार ने कहा, ब्रिटिश शासन के दौरान, औपनिवेशिक शासकों ने उपाधियां देने के लिए शक्ति का दुरुपयोग किया और इस नैरेटिव को बढ़ावा दिया कि वे नस्लीय रूप से श्रेष्ठ हैं।

    एनसीईआरटी की किताबों में ब्रिटिश संदर्भ

    उन्होंने सवाल किया कि भारत को ब्रिटिश अधिकारियों को लार्ड कहकर 'देवता जैसा' सम्मान क्यों देना चाहिए, खासकर तब जब उनमें से कई ने भारतीयों पर बर्बर अपराध किए, जबकि देश के अपने स्वतंत्रता सेनानियों को भी ऐसा सम्मान नहीं दिया जाता।

    हमारी जैसे जीवंत लोकतंत्र, जो पृथ्वी का सबसे बड़ा और सबसे पुराना लोकतंत्र है को इस प्रथा को जारी नहीं रखना चाहिए, क्योंकि यह प्रथा सामाजिक समानता और हमारे संविधान के खिलाफ है।

    औपनिवेशिक मानसिकता को खत्म करने का आह्वान

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ रखने के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यह कदम केवल प्रतीकात्मक नहीं था, बल्कि औपनिवेशिक प्रतीकों से नागरिक जिम्मेदारी और राष्ट्रीय गर्व की ओर बदलाव को दर्शाता है।

    उन्होंने प्रधानमंत्री के लाल किले से स्वतंत्रता दिवस के संबोधन को याद किया, जहां पीएम मोदी ने नागरिकों से ''गुलामी मानसिकता'' से मुक्त होने का आग्रह किया था।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)