MSME में पंजीकृत फिर भी Real Estate कंपनियों को उद्योग का दर्जा नहीं, रोजगार को लेकर देश का सबसे बड़ा सेक्टर
रियल एस्टेट सेक्टर दुनियाभर में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सेक्टर में शुमार किया जाता है। इसे अर्थव्यवस्था के अहम स्तंभों में गिना जाता है। भारत में भी कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार रियल एस्टेट सेक्टर ने ही दिया है।

जेएनएन, नई दिल्ली: रियल एस्टेट सेक्टर दुनियाभर में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सेक्टर में शुमार किया जाता है। इसे अर्थव्यवस्था के अहम स्तंभों में गिना जाता है। भारत में भी कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार रियल एस्टेट सेक्टर ने ही दिया है। इसके बावजूद उद्योग की दृष्टि से नीतिगत स्तर पर यह सेक्टर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। नियमों के तहत बड़े पैमाने पर रियल एस्टेट कंपनियां सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) की श्रेणी में पंजीकृत हैं, लेकिन इस सेक्टर को उद्योग का दर्जा नहीं मिल पाया है। बात अगर बजट की हो, तो इस सेक्टर की सबसे बड़ी मांग और जरूरत इसे उद्योग का दर्जा दिए जाने की है। लिखने और कहने में भले यह मात्र एक कागजी प्रक्रिया लगे, लेकिन उद्योग का दर्जा नहीं मिलने से इस सेक्टर की कंपनियों को कई परेशानियों और नुकसान का सामना करना पड़ता है।
वित्तीय प्रबंधन में बैंकों से नहीं मिलता सहयोग
विशेषज्ञ बताते हैं कि बैंक इन कंपनियों के वित्तीय प्रबंधन में उद्योगों जैसा सहयोग नहीं करते हैं। इन्हें उद्योगों की तुलना में ज्यादा गारंटी और ज्यादा ब्याज दर पर ऋण मिलता है। उद्योगों की तरह रिकवरी सेल नहीं होने का भी इन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। कन्फेडरेशन आफ रियल इस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (क्रेडाई) की दिल्ली एनसीआर शाखा के उपप्रधान आरसी गुप्ता ने कहा कि डीएलएफ, ओमेक्स, बीपीटीपी जैसी रियल इस्टेट की बड़ी कंपनियों को छोड़ दें तो दिल्ली एनसीआर में करीब पांच हजार रियल इस्टेट कंपनियां एमएसएमई में पंजीकृत हैं। इसके बावजूद इन कंपनियों को उद्योगों जैसी सुविधाएं नहीं मिलती। मध्यम श्रेणी की रियल इस्टेट कंपनियां फंड की कमी से जूझती हैं। इसकी व्यवस्था उन्हें स्वयं ही करनी पड़ती है, फिर चाहे उन्हें अपने उपभोक्ताओं के लिए आकर्षक योजना लानी पड़े या फिर प्रोजेक्ट साझेदार बढ़ाने पड़ें।
रियल इस्टेट को महंगे ब्याज दर पर मिलता है कर्ज
उद्योगों को महज 50 से 100 प्रतिशत गारंटी पर छह से नौ प्रतिशत की दर से बैंकों से कर्ज मिल जाता है। वहीं, रियल इस्टेट कंपनियों को 150 से 300 प्रतिशत की संपत्ति गारंटी पर 12 से 15 प्रतिशत पर ऋण मिलता है। एक बड़ी समस्या यह भी है कि श्रम संबंधी विवाद के मामले में भी ज्यादातर न्यायालय का सहारा लेना पड़ता है। इस सेक्टर में प्रशिक्षण एवं मार्केटिंग की भी कोई सुविधा नहीं है। तकनीक के इस्तेमाल पर जिस तरह एमएसएमई से जुड़े उद्योगों को सब्सिडी मिलती है, रियल एस्टेट कंपनियां उससे भी वंचित हैं। प्रोजेक्ट की ब्रांडिंग को लेकर नियामक प्राधिकरणों के प्रविधान भी बहुत जटिल हैं। रोजगार से लेकर अर्थव्यवस्था तक में इस सेक्टर के योगदान को देखते हुए सरकार को इनकी समस्याओं को दूर करने पर विचार करना चाहिए।
एमएसएमई देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़
किसी भी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संकट की मार से देश को बचाने के लिए ये कवच का काम करते हैं। इस श्रेणी में 6.3 करोड़ के साथ सूक्ष्म उद्योगों की 99 प्रतिशत हिस्सेदारी है। लघु श्रेणी में 3.31 लाख उद्योग और मध्यम में 0.05 लाख उद्योग हैं। कुल 6.3 करोड़ एमएसएमई में 3.2 करोड़ (51.25 फीसद) ग्रामीण इलाकों से हैं, जबकि 3.09 करोड़ (48.75 फीसद) शहरों में काम कर रहे हैं। इन उद्योगों से करीब 12 करोड़ रोजगार सृजित हो रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में इनकी उपयोगिता और महत्व बताने के लिए तथ्यों और तर्कों की लंबी फेहरिस्त है। इसी को देखते हुए दैनिक जागरण ने एमएसएमई की समस्याओं को सामने लाने के लिए यह महाभियान शुरू किया है, जिससे यह आवाज सरकार तक पहुंचे और आगामी बजट में इनके लिए उपयुक्त प्रविधान की गुंजाइश बन सके।
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