समय के साथ ऐसी तकनीकी सौगातें हमें मिली हैं, जो भ्रष्टाचार पर निर्णायक प्रहार करने में सक्षम
भ्रष्टाचार एक बड़ी विकराल समस्या है। इस पर लगाम लगाने के लिए तमाम स्तरों पर प्रयासों के बावजूद इस समस्या से पार पाना मुश्किल होता जा रहा है। हालांकि यह उतना मुश्किल भी नहीं। अच्छी बात है कि समय के साथ तकनीकी सौगातें हमें मिली हैं हैं।
संजय श्रीवास्तव। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था, ‘सरकार द्वारा गरीबों के लिए भेजे जाने वाले एक रुपये में से केवल 15 पैसे ही उन तक पहुंच पाते हैं।’ लेकिन आज कम से कम इस बात की राहत है कि सरकार द्वारा लाभार्थियों के खातों तक सीधे बिना किसी चूक के पैसा पहुंच रहा है। वैसे इसका कारण यह नहीं है कि भ्रष्ट तंत्र सुधर गया है। इसका किसी हद तक श्रेय मोदी सरकार द्वारा प्रौद्योगिकी को दी जाने वाली प्राथमिकता से संबंधित है जिससे नासूर बने कई लीकेज बंद हो सके हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि तकनीक ही वह चाबी है, जिसके माध्यम से भ्रष्टाचार की बीमार दुनिया में ताला लगाया जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हालिया बयानों, सीबीआइ और ईडी जैसी एजेंसियों की बढ़ती सक्रियता को देखते हुए लगता है कि 2024 की चुनावी लड़ाई में केंद्र सरकार अपने विकास माडल और दूसरों के भ्रष्टाचार को प्रमुख हथियार बनाएगी। प्रधानमंत्री कहते हैं, ‘गरीबी से जूझ रहे देश में ऐसे लोग भी हैं, जिनके पास चोरी का माल रखने की जगह नहीं है। इन पर कार्रवाई होते ही कुछ राजनीतिक दल भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए एकजुट हो जाते हैं। हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ना है।’
भ्रष्टाचार की प्रक्रिया, उसके फलने-फूलने का परिवेश और संबंधित तौर-तरीके नष्ट करके ऐसे सभी स्थानों पर जहां इसकी आशंका हो, वहां पारदर्शिता का प्रबंध हो तो भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी स्वतः समाप्त हो जाएंगे। अच्छी बात यह है कि विगत वर्षों में सूचना प्रौद्योगिकी, डिजिटलीकरण और कुछ दूसरे उपाय लागू करने का लाभ तो हुआ है, परंतु अपेक्षित लक्ष्य को अभी तक नहीं प्राप्त किया जा सका है। इसका प्रमुख कारण है विज्ञान और तकनीक के समेकित प्रयास और प्रयोग की बजाय इसका अधूरा उपयोग। इस अधूरेपन ने भ्रष्टाचारियों के लिए चोर रास्तों की जगह बनाए रखने की गुंजाइश पैदा की, साथ ही जनता की भ्रष्टाचार के प्रति अधूरी प्रतिबद्धता भी इसमें सहायक रही।
यह सही है कि जनता भ्रष्टाचार से बचना भी चाहती है, परंतु यह भी सही है कि कई बार वह ले-देकर अपना काम बारी से पहले करवाने में भी गुरेज नहीं करती। यह सब खत्म हो सकता है बशर्ते, सरकार भ्रष्टाचार के निर्मूलन पर पूरी इच्छाशक्ति से तत्पर हो और वह डिजिटल प्रणाली तथा मोबाइल एप्लीकेशंस के साथ बिग डाटा और डाटा माइनिंग, बैंकिंग आदि में ब्लाक चेन प्रणाली, कराधान का पूर्णतया आटोमेशन कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अलावा सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में, भ्रष्टाचार के जोखिम से निपटने के लिए लेखा परीक्षकों के लिए स्व-निगरानी, विश्लेषण और रिपोर्टिंग प्रौद्योगिकी (स्मार्ट) जैसे फोरेंसिक टेक्नोलाजी वाले उपकरणों का उपयोग करें। ये तकनीक और उपकरण किसी भी कार्यव्यवहार और प्रणाली की रीयलटाइम निगरानी, जांच और विश्लेषण कर सकते हैं, उनकी अनियमितताओं को पकड़ सकते हैं और उच्चस्तर की पारदर्शिता प्रदान कर सकते हैं।
तकनीक का समेकित प्रयोग : तकनीक के समेकित प्रयोग न करने का परिणाम क्या रहा, इसका आकलन सरकार अपने प्रयासों की विफलता से कर सकती है। वर्ष 2014 में केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार ने आते ही भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नीति को अपनाया। इसके लिए सरकार ने सतत प्रयास किए। प्रधानमंत्री के अनुसार पिछले आठ वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने वाले दो लाख करोड़ रुपये बचा लिए। इस दौरान परिवेश भी बना कि भ्रष्टाचार कम हुआ है। लेकिन नोटबंदी के बावजूद नकदी के ढेर सामने आ रहे हैं और दूसरी तरह के अरबों रुपये के घोटाले के समाचार कहीं न कहीं से हर दिन सामने आ रहे हैं।
केंद्र की मोदी सरकार ने जब 2014 में अपना कामकाज संभाला था, तब ‘करप्शन परसेप्शन इंडेक्स’ 85 ही था, इसके आठ वर्षों तक भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टालरेंस’ का रवैया अपनाते हुए और इसके विरुद्ध अभियान चलाने के बावजूद यह जस का तस है। एक संबंधित संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का कहना है कि भारत में स्थिति खास तौर पर चिंताजनक है, क्योंकि पिछले एक दशक में भ्रष्टाचार की स्थिति में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं आया है। भ्रष्टाचार पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार हम सालाना 21068 करोड़ रुपये की रिश्वत लेते-देते हैं। लगभग 62 प्रतिशत देशवासी सरकारी कार्यालयों में अपना काम करवाने के लिए रिश्वत या संस्तुति का उपयोग करते हैं।
डा. राममनोहर लोहिया ने कहा था कि सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है, उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है। भ्रष्टाचारियों की कृपा और सरकारी अनदेखी से तब का यह उद्गार आज भी सच बना हुआ है। भ्रष्टाचार की शुरुआत तब होती है जब दो पक्ष अपने कार्य या व्यापार के लिए मिलते हैं, यदि हम इन दोनों पक्षों को अलग कर दें और इनके बीच तकनीक का प्रवेश करा दें तो भ्रष्टाचार बहुत हद तक नियंत्रित हो सकता है। इस तरह से आधुनिक तकनीक ही है जो इस मानवीय बुराई से रोकने में हमारी मदद कर सकती है। यह आम नागरिकों और सरकारी कर्मचारियों के बीच सीधे संपर्क को रोक सकती है।
जाहिर है, भ्रष्टाचार मिटाने की सरकारी मुहिम की जिस धार को भ्रष्टाचारियों ने कुंद कर रखा है, उसे तकनीक ही पैनी कर सकती है। सरकार को भ्रष्टाचार मिटाना है और इसको अपने मिशन 2024 का प्रमुख हथियार बनाना है तो जिस तरह भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मुहिम चलाई जा रही है, भ्रष्टाचार के विरुद्ध भी सघन अभियान चलाना होगा और इसमें समेकित तकनीक को प्रमुख हथियार बनाना होगा। सरकार के कामकाज में सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से काम में आसानी, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ी है।
हेल्थ इन्फार्मेशन सिस्टम को लागू करने से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की निगरानी में मदद मिली तो ई-विधान को लागू करना, सार्वजनिक सेवाओं का डिजिटलीकरण करना, डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिये लीकेज प्रूफ नकद हस्तांतरण इत्यादि से छात्रवृत्ति, गैस सब्सिडी, राशन कार्डों को आधार से जोड़ने, रेलवे के टिकट कंप्यूटर के माध्यम से मिलने के बाद भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा तो है, परंतु भू-राजस्व विवरण आनलाइन होने के बावजूद लेखपाल और क्लर्क आफ लाइन रिश्वत लेते हैं। डीबीटी लीकेज प्रूफ होने के बावजूद हजारों अपात्रों के खाते में पैसे पहुंच जाते हैं। कभी सर्वर न चलने तो कभी दूसरे बहानों से भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जाता है।
यदि तकनीक पारदर्शिता लाती तो उसके रहते भ्रष्टाचार के जरिये इतना धन कैसे इकट्ठा हो जाता है जिसे गिनने में ही कई दिन लगते हैं। सच तो यह है कि तकनीक में खामी नहीं, बल्कि उसके अधूरेपन और अधूरे मन से लागू करने में है। जिन देशों में सामाजिक और राजनीतिक स्वतंत्रता की दशा बेहतर है, आज वे भ्रष्टाचार के नियंत्रण के मामले में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। भ्रष्टाचार मानवाधिकारों के हनन का भी कारण बनता है। यदि हमें भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाना है तो इसके विरुद्ध लड़ाई में तकनीकी हथियारों को अपनाना ही होगा।
[तकनीकी मामलों के जानकार]