रेयर अर्थ मिनरल्स के क्षेत्र में भारत एक दशक के भीतर हो जाएगा आत्मनिर्भर: प्रोफेसर धीरज कुमार
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ के बीच रेयर अर्थ मिनरल्स (आरईएम) को लेकर चर्चा तेज हो गई है। भारत में इसका विशाल भंडार है और नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन (एनसीएमएम) की शुरुआत की गई है। आइआइटी आइएसएम के प्रोफेसर धीरज कुमार के अनुसार भारत एक दशक में इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाएगा।

शशिभूषण, जागरण। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ के बीच रेयर अर्थ मिनरल्स (आरईएम) को लेकर चर्चा तेज हो गई है।
ये खनिज कितने अहम हैं, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इनकी आपूर्ति सुनिश्चित रखने के लिए ट्रंप, चीन पर भारी टैरिफ नहीं लगा पाए। इलेक्ट्रानिक्स व आटोमोबाइल सेक्टर के लिए बेहद जरूरी इस खनिज का भंडार भारत में भी है।
प्रारंभिक आकलन के मुताबिक भारत के पास लगभग 60 लाख टन मोनाजाइट भंडार है, लेकिन अब तक कोयला व लौहा खनन पर ही केंद्रित होने की वजह से हम इस दिशा में आगे ही नहीं बढ़ पाए। बहरहाल, ‘देर आए, दुरुस्त आए’ की कहावत के साथ आइआइटी आइएसएम (इंडियन स्कूल आफ माइंस), धनबाद के डिप्टी डायरेक्टर और खनन इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर धीरज कुमार यकीन दिलाते हैं कि यदि सब कुछ इसी गति से चलता रहा तो रेयर अर्थ मिनरल्स के क्षेत्र में हम एक दशक के भीतर आत्मनिर्भर हो जाएंगे।
बेशक यह चरणबद्ध तरीके से होगा, लेकिन अगले दो-तीन साल में नीतियों पर अमल से लेकर ढांचागत व्यवस्थाएं नजर आने लगेंगी। प्रो. धीरज कुमार खनन प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र टेक्समिन और नीति आयोग के सामुदायिक नवाचार केंद्र के निदेशक भी हैं। आइएसएम से उनका जुड़ाव विद्यार्थी जीवन से रहा है। उन्होंने यहां से एमटेक किया और आइआइटी खड़गपुर से पीएचडी की।
माइनिंग डिजिटाइजेशन और जियोस्पेशल टेक्नोलाजी में उनकी विशेषज्ञता है। 700 से अधिक खनन पेशेवरों को प्रशिक्षित किया है। केंद्र सरकार के नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (एनसीएमएम) को धरातल पर उतारने को चार आइआइटी, कैम्ब्रिज व कर्टिन यूनिवर्सिटी जैसे शीर्ष देशी-विदेशी शैक्षणिक संस्थानों के बीच जो एमओयू हुआ, इसमें भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई। दैनिक जागरण धनबाद के संवाददाता शशिभूषण ने उनसे हर पहलुओं पर चर्चा की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
रेयर अर्थ मिनरल्स की जरूरत पहले से महसूस की जा रही थी...दुनियाभर में अभी इतना हल्ला क्यों? वजह क्या टैरिफ वार है?
रेयर अर्थ मिनरल्स (दुर्लभ खनिज) इलेक्ट्रानिक्स, रक्षा, स्वच्छ ऊर्जा और गतिशीलता क्षेत्र में आवश्यक हैं। वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक व्हीकल, पवन चक्की और सौर पैनल जैसी हरित प्रौद्योगिकी की बढ़ती मांग से इस पर चर्चा तेज हुई है। टैरिफ वार और आपूर्ति शृंखला एकाधिकार भी इसमें शामिल हैं।
चीन, रेयर अर्थ मिनरल्स का 60 प्रतिशत से अधिक वैश्विक उत्पादन और 85 प्रतिशत प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) क्षमता को नियंत्रित करता है। भारत सहित अधिकांश देश इन खनिजों के लिए चीन पर निर्भर हैं। इसकी महत्ता देख भारत ने नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (एनसीएमएम) की शुरुआत की है।
भारत में रेयर अर्थ मिनरल्स की उपलब्धता नहीं है या खनन नहीं हो पा रहा?
भारत में भी भंडार है। झारखंड, केरल और तमिलनाडु के समुद्र तटीय इलाकों में भारी मात्रा में मोनाजाइट मिलने की संभावना है। आंध्र प्रदेश में क्षारीय परिसर (मैग्मैटिक चट्टानों का एक समूह, जिसमें क्षार से समृद्ध कई प्रकार की अल्पसंतृप्त चट्टानें शामिल होती हैं) का भंडार है। इसके अलावा झारखंड व राजस्थान में कार्बोनाइट है। वैश्विक बाजार में इसकी कीमत कई अरब डालर हो सकती है।
चीन का प्रभुत्व इसलिए है कि वहां इसका विशाल भंडार तो है ही, बल्कि प्रसंस्करण और शोधन क्षमताओं में चीन ने शुरुआती दौर में ही निवेश कर दिया। भारत ने भी आइआइटी-आइएसएम जैसे अनुसंधान संस्थानों के माध्यम से समस्याओं के समाधान की पहल शुरू कर दी है।
नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन का लक्ष्य और आइएसएम की भूमिका है?
नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन का लक्ष्य महत्वपूर्ण खनिजों की पहचान कर तकनीक आधारित खनन प्रक्रिया, रीसाइक्लिंग व आत्मनिर्भर आपूर्ति की शृंखला सुनिश्चित करना है। खनन इंजीनियरिंग के क्षेत्र में विश्व के शीर्ष 20 संस्थानों में आने वाले आइआइटी-आइएसएम, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन आने वाले टेक्नोलाजी ट्रांसलेशन रिसर्च पार्क (टेक्समिन) मिलकर इस दिशा में काम कर रहे हैं।
इसके तहत आइआइटी-आइएसएम, आइआइटी बांबे, आइआइटी गांधीनगर, बीएचयू, कैम्ब्रिज, कर्टिन व यूएफआरजे यूनिवर्सिटी के बीच एमओयू हुआ। उद्योग क्षेत्र में एचसीएल, मैग्नीशियम ओर इंडिया लिमिटेड (एमओआइएल), मंगलोर मिनरल्स प्राइवेट लिमिटेड (एमएमपीएल), टेक्नोलाजी इनोवेटर कंपनियां नोवासेंसा व सीपीआइ के साथ भी मिलकर काम करेंगे।
खनन प्रक्रिया में कहां परेशानी है, जिसकी वजह से काम नहीं हो पाया है?
खनन प्रक्रिया में तकनीक बड़ी समस्या है। उन्नत खनन तकनीक (हाइड्रो मेटलर्जी और रेयर अर्थ एनर्जी पृथक्करण) सीमित हैं। भूगर्भीय और भू-रासायनिक डेटा उपलब्ध न होना, पर्यावरणीय मंजूरी और भूमि की उपलब्धता में नीति और विनियामक देरी बाधा बन जाती है।
जियोसेंसिंग, एआई और सर्कुलर इकोनमी जैसे उभरते क्षेत्र में काम करने के लिए कुशल लोगों की भी कमी है। अभी हमारे पास उपलब्ध तकनीक का स्तर टीआरएल 3-4 है, जिसे टीआरएल 6-9 तक ले जाना है। टीआरएल यानी तकनीक रेडीनेस लेवल, जो नासा द्वारा विकसित एक मानकीकृत नौ-बिंदु पैमाना है जो किसी तकनीक की मौलिक शोध (टीआरएल 1) से लेकर सिद्ध क्षेत्र संचालन (टीआरएल 9) तक का आकलन किया जाता है।
भारत में इसकी उपलब्धता कहां, कितनी मात्रा में उपलब्ध है? अनुमानित कीमत?
भारत में मोनाजाइट के विशाल भंडार की खोज ने थोरियम और हल्के दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के मिलने की संभावना को बल दिया है। केरल, तमिलनाडु और ओडिशा के समुद्री तटीय क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में रेयर अर्थ मिनरल मिलने की संभावना है। आंध्र प्रदेश में क्षारीय परिसर का भंडार है।
क्षारीय परिसर यानी मैग्मैटिक चट्टानों का एक समूह है, जिसमें क्षार से समृद्ध कई प्रकार की अल्पसंतृप्त चट्टानें शामिल होती हैं। इसके अलावा झारखंड व राजस्थान में कार्बोनाइट मिल सकते हैं। प्रारंभिक आकलन के मुताबिक भारत के पास लगभग 60 लाख टन मोनाजाइट भंडार है। वैश्विक बाजार में इसकी कीमत अरबों डालर हो सकती है।
भारत में पहली बार खोज कब हुई? इस क्षेत्र में ज्यादा काम क्यों नहीं हुआ ?
20वीं सदी के मध्य में समुद्र तट स्थित रेत के भंडारों में रेयर अर्थ मिनरल्स के होने का पता लगा था। उस समय हमारा ध्यान कोयला और लोहा जैसे थोक खनिजों पर केंद्रित रहा।
सामरिक महत्व का अभाव, खनन प्रसंस्करण (मिनरल्स एक्सट्रैक्शन) के लिए विदेशी देशों पर तकनीकी निर्भरता, तटीय व जनजातीय क्षेत्रों में पर्यावरणीय प्रतिबंध के कारण इस क्षेत्र में काम नहीं हो पाया। अब, वैश्विक प्राथमिकताओं और राष्ट्रीय मिशन में रणनीतिक बदलाव के बाद इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है।
क्या आइआइटी-आइएसएम ने इस क्षेत्र में कोई विशेष शोध किया है?
महत्वपूर्ण खनिज अनुसंधान एवं विकास में हम अग्रणी रहे हैं। एआई एमएल-आधारित हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग और भूकंपीय समाधान विकसित किए गए हैं। धरती के भीतर मौजूद खनिजों का पता लगाने के लिए इंटीग्रेटेड मिनरल्स सेंसिंग सिस्टम (एकीकृत खनिज संवेदन प्रणाली) विकसित करने के लिए साइबर फिजिकल सिस्टम (सीपीएस) पर काम चल रहा है।
डिजिटल राक कोर डिपाजिटरी व पुनर्प्राप्ति के लिए शहरी खनन जैसे भी कदम उठाए जा रहे हैं। इसे आप ‘मूनशाट’ प्रोजेक्ट कहते हैं। मूनशाट प्रोजेक्ट यानी महत्वाकांक्षी और अभूतपूर्व पहल है, जिसका उद्देश्य एक बड़ी समस्या को हल करना होता है। इसमें तकनीकी सफलताओं और दीर्घकालिक प्रयास की जरूरत होती है। विफलता का जोखिम भी ज्यादा रहता है।
भारत ने अभी इस क्षेत्र में तेजी से काम शुरू किया है। परिणाम सामने आने में कितना समय लग सकता है ?
परिणाम की बात करें तो अल्पकालिक रूप से दो-तीन वर्ष के दौरान तकनीकी सत्यापन, नीति ढांचा, शहरी खनन, मध्यावधि 4-6 वर्ष में एकीकृत तैनाती, निजी भागीदारी, स्केलिंग तथा दीर्घकालिक 7-10 वर्ष में चुनिंदा सीआरएम, तकनीकी निर्यात में रणनीतिक स्वायत्तता देखने को मिलेगी।
टैरिफ वार के बीच पाकिस्तान भी दुर्लभ खनिजों की उपलब्धता को लेकर दावे करता रहा है। वहां कितनी मात्रा में उपलब्ध है?
पाकिस्तान ने हाल ही घोषणा की है कि खैबर पख्तूनख्वा में रेयर अर्थ मिनरल्स व एनर्जी के स्रोत मिले हैं। हालांकि उनकी खनिज नीति, अन्वेषण गहराई और बुनियादी ढांचा बेहद कमजोर है।
हमारी नीति और प्रगति कहां तक है ?
भारत ने कस्टमर रिलेशनशिप मैनेजमेंट टेक्नोलाजी (सीआरएमपी) यानी ग्राहक संबंध प्रबंधन के तहत क्षेत्रीय नवाचार केंद्र को विकसित करने पर जोर दिया है। इसके तहत आइआइटी-आइएसएम ने उद्योग भागीदार एचसीएल, एमओआईएल, एमएमपीएल-पायलट सत्यापन और तैनाती के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
आइआइटी बीएचयू, आइआइटी गांधीनगर को रेयर अर्थ एनर्जी (आरईई) के एक्सट्रैक्शन (निष्कर्षण), रोबोटिक्स व भूवैज्ञानिक माडलिंग के लिए पार्टनर बनाया है। कर्टिन (आस्ट्रेलिया), कैम्ब्रिज (यूके), यूएफआरजे (ब्राजील), सीपीआई (यूके) के साथ एमओयू हुआ है।
इन संस्थानों के साथ मिलकर अब तक दस से अधिक कस्टमर रिलेशनशिप मैनेजमेंट (सीआरएम) माडल का विकास, अयस्क अपशिष्ट और लाल मिट्टी से रेयर अर्थ एनर्जी निकालने का पायलट प्लांट तैयार करना शामिल है। शहरी खनन, ई-कचरा मूल्यांकन परियोजनाएं तथा भारतीय उद्योग को फंडिंग के साथ तकनीकी हस्तांतरण की दिशा में काम हो रहा है।
किस तरह के ब्रेक थ्रू की संभावना है ? क्या लक्ष्य लेकर चल रहे हैं आप लोग ?
एआइ संचालित मिनरल सेंसिंग व मैपिंग (खनिज संवेदन और मानचित्रण), जीरो वेस्ट संयंत्र, साइबर फिजिकल सिस्टम प्लेटफार्म, बैटरी रीसाइक्लिंग तकनीक तथा उच्च शुद्धता वाले रेयर अर्थ एनर्जी पृथक्करण के लिए स्वदेशी तकनीक विकसित करने की दिशा में सफलताएं मिली हैं।
हमारा अंतिम लक्ष्य है भारत को महत्वपूर्ण खनिज अनुसंधान एवं विकास में एक वैश्विक तकनीकी नेता के रूप में स्थापित करना, रणनीतिक स्वायत्तता, ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना और आयातित वस्तुओं पर निर्भरता कम कर स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देना है।
हाल ही में आइआइटी-आइएसएम व मध्य प्रदेश के बीच एमओयू साइन किया। क्या वहां दुर्लभ खनिज मिलने की सूचना है?
मप्र सरकार का मानना है कि वहां भारी मात्रा में रेयर अर्थ मिनरल्स और रेयर अर्थ एनर्जी का भंडार है। बीते सप्ताह मप्र सरकार के साथ आइआइटी आइएसएम के अनवेषण एवं खनन फाउंडेशन (टेक्समिन) के बीच एमओयू साइन हुआ है। अन्य राज्य भी आगे आ रहे हैं।
आप लोग अपना सेटेलाइट सेंटर स्थापित करने जा रहे हैं। क्या है यह प्रोजेक्ट ?
यूके-भारत प्रद्योगिकी सुरक्षा पहल (टीएसआइ) के तहत आइआइटी-आइएसएम के अनवेषण एवं खनन फाउंडेशन (टेक्समिन) परिसर में एक नया उपग्रह (सेटेलाइट) सेंटर स्थापित किया जाएगा। यह सेटेलाइट सेंटर ब्रिटेन-भारत प्रौद्योगिकी सुरक्षा पहल के अंतर्गत एक नया केंद्र होगा।
यह सेटेलाइट सेंटर रेयर अर्थ मिनरल्स व महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति, डिजिटल बुनियादी ढांचे, स्थिरता और नवाचार को बढ़ावा देगा। दोनों देशों के द्वारा 1.8 मिलियन पाउंड का निवेश किया जाएगा। सेटेलाइट सेंटर का काम तेजी से चल रहा है। यह नया परिसर महत्वपूर्ण व दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति शृंखलाओं का आकलन करने, जोखिमों को कम करने और पुनर्चक्रण के अवसरों का पता लगाने के लिए एक संयुक्त मंच के रूप में काम करेगा।
रेयर अर्थ मिनरल्स के अलावा और कौन से खनिज हैं, जिनके खनन पर आने वाले समय में ध्यान दिया जाना चाहिए?
रेयर अर्थ मिनरल्स के अलावा हम खनन, निष्कर्षण और सर्कुलर इकोनमी डोमेन में कई खनिजों पर काम कर रहे हैं।
- बैटरी तकनीक व गतिशीलता के लिए लिथियम
- इलेक्ट्रिकल व्हीकल व एयरोस्पेस के लिए कोबाल्ट व निकिल
- सामरिक व रक्षा क्षेत्र के लिए टाइटेनियम, वैनेडियम व टैंटलम
- लिथियम बैटरी के एनोड बनाने हेतु ग्रेफाइट
- इलेक्ट्रानिक्स, सोलर फोटोवोलैटिक, और ग्रीन हाइड्रोजन के लिए स्कैनेडियम, सेलेनियम, टेलुरियम

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