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    भारतीय न्याय संहिता में IPC की धारा 377 को बनाए रखने की सिफारिश, संसदीय समिति ने उपराष्ट्रपति को सौंपी तीन नए बिल पर रिपोर्ट

    By AgencyEdited By: Sonu Gupta
    Updated: Fri, 10 Nov 2023 11:54 PM (IST)

    आपराधिक कानूनों की जगह लेने वाले तीन नए विधेयकों पर रिपोर्ट शुक्रवार को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंप दी गई। इन विधेयकों को चार दिसंबर से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करने की तैयारी है।उपराष्ट्रपति के सचिवालय ने बताया कि गृह मामलों संबंधी संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष बृज लाल ने संसद में धनखड़ से मुलाकात की और तीनों विधेयकों पर रिपोर्ट सौंपी।

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    गृह मामलों संबंधी संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष बृज लाल ने संसद में उपराष्ट्रपति धनखड़ से मुलाकात की।फाटो- @VPIndia

    पीटीआई, नई दिल्ली। गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने सरकार से प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में नाबालिगों के साथ शारीरिक संबंध और अप्राकृतिक कृत्यों से संबंधित आइपीसी की धारा 377 के प्रविधानों को बरकरार रखने की सिफारिश की है। संसदीय समिति ने यह भी सुझाव दिया कि शादीशुदा महिला के किसी अन्य पुरुष से संबंध बनाने (एडल्ट्री) से संबंधित आइपीसी के प्रविधान को बीएनएस में बरकरार रखा जाना चाहिए।

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    उपराष्ट्रपति को सौंपी गई तीन नए बिल पर रिपोर्ट

    समिति ने दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म और हत्या सहित अन्य प्रविधानों पर भी कई सिफारिशें की हैं। औपनिवेशिक काल के आपराधिक कानूनों की जगह लेने वाले तीन नए विधेयकों पर रिपोर्ट शुक्रवार को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंप दी गई। इन विधेयकों को चार दिसंबर से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करने की तैयारी है। ये नए कानून आइपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे।

    उपराष्ट्रपति के सचिवालय ने दी जानकारी

    उपराष्ट्रपति के सचिवालय ने एक्स पर पोस्ट में बताया कि गृह मामलों संबंधी संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष बृज लाल ने संसद में धनखड़ से मुलाकात की और तीनों विधेयकों पर रिपोर्ट सौंपी।

    लोकसभा में पेश किए गए हैं विधेयक

    मालूम हो कि गृह मंत्री अमित शाह ने मानसून सत्र के दौरान 11 अगस्त को लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम विधेयक पेश किए थे। इन विधेयकों को औपनिवेशिक काल में बनाए गए आपराधिक कानूनों भारतीय दंड संहिता (आइपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने के लिए लाया गया है।

    अमित शाह ने क्या कहा था?

    शाह ने कहा था कि औपनिवेशिक काल में बनाए गए कानून सजा पर ध्यान देते हैं, जबकि प्रस्तावित कानूनों में न्याय को प्रधानता दी गई है। इसके बाद उन्होंने स्पीकर से इन विधेयकों को स्थायी समिति के पास भेजने का आग्रह किया था। गृह मामलों संबंधी स्थायी समिति राज्यसभा सचिवालय के तहत आती है। उसे इन विधेयकों को परखने के लिए तीन महीने का समय दिया गया था।