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    राजस्थान में मतांतरण रोधी कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

    Updated: Fri, 28 Nov 2025 06:34 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से मतांतरण रोधी कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब मांगा है। अदालत ने इस मामले को समान मुद्दों वाली अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अधिनियम की धाराएं संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी इस मुद्दे पर सरकार से प्रतिक्रिया मांगी थी और अन्य राज्यों के कानूनों पर भी जानकारी मांगी है।

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    मतांतरण रोधी कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राजस्थान सरकार से मतातंरण रोधी कानून (राजस्थान प्रोहिबिशन आफ अनलाफुल कन्वर्जन आफ रिलिजन एक्ट, 2025) की धाराओं की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर प्रतिक्रिया मांगी है।

    जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज और अन्य द्वारा दायर याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। पीठ ने इस याचिका को समान मुद्दों पर लंबित अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया।

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    सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा

    वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि समान मामलों पर सर्वोच्च न्यायालय में पहले से ही याचिकाएं लंबित हैं और इस याचिका को उनके साथ जोड़ा जाए।

    याचिकाकर्ताओं ने यह घोषणा मांगी है कि इस अधिनियम की धाराएं 'मनमानी, असंगत, अवैध और संविधान के खिलाफ'हैं और यह अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) का उल्लंघन करती हैं।

    याचिका में कानून को असंवैधानिक बताया

    17 नवंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका पर राजस्थान सरकार और अन्य से प्रतिक्रिया मांगी थी।

    3 नवंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान में लागू अवैध धार्मिक परिवर्तनों के खिलाफ कानून की कई धाराओं की वैधता को चुनौती देने वाली दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए सहमति व्यक्त की।

    पहले भी मांगी गई थी प्रतिक्रिया

    सितंबर में सर्वोच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ ने विभिन्न राज्यों से उनके संबंधित मतातंरण रोधी कानूनों पर रोक लगाने की याचिकाओं पर स्थिति मांगी थी। उस समय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह ऐसे कानूनों के संचालन पर रोक लगाने की प्रार्थना पर विचार करेगा जब उत्तर दिए जाएंगे।

    पीठ तब कई राज्यों के बनाए मतांतरण रोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर विचार कर रही थी, जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक शामिल हैं।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)