क्या अवमानना याचिका के लिए जरूरी है AG या SG की इजाजत, निशिकांत दुबे के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए किसी विधेयक पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय करने के फैसले पर आपत्ति जताते हुए निशिकांत दुबे ने कहा था कि अगर कोर्ट यह तय करने लगा है तो संसद को भंग कर देना चाहिए। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने निशिकांत के बयान से किनारा करते हुए उन्हें आगाह किया था।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के विरुद्ध न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग कर रहे वकील से सोमवार को कहा कि इसके लिए हमारी अनुमति की आवश्यकता नहीं है। इस मामले में अटार्नी जनरल की स्वीकृति लेनी होगी।
न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में किसी के विरुद्ध आपराधिक अवमानना की कार्यवाही चलाने के लिए पहले अटार्नी जनरल (एजी) या सालिसिटर जनरल (एसजी) से अनुमति लेनी होती है।
कोर्ट को लेकर क्या बोले निशिकांत दुबे
सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए किसी विधेयक पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय करने के फैसले पर आपत्ति जताते हुए निशिकांत दुबे ने कहा था कि अगर कोर्ट यह तय करने लगा है तो संसद को भंग कर देना चाहिए।
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने निशिकांत के बयान से किनारा करते हुए उन्हें आगाह किया था। सोमवार को एक वकील ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस अगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ के समक्ष निशिकांत दुबे के बयान को न्यायालय की अवमानना बताते हुए अवमानना कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया था, जिस पर पीठ ने उपरोक्त टिप्पणी की।
निशिकांत के विरुद्ध आपराधिक अवमानना की कार्यवाही हो: याचिकाकर्ता
इससे पहले उत्तर प्रदेश के पूर्व आइपीएस अमिताभ ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में सीधे याचिका दाखिल की थी जिसमें सुप्रीम कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेकर निशिकांत के विरुद्ध आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया है। कानून में न्यायालय की अवमानना के अपराध में अधिकतम छह महीने का साधारण कारावास या 2,000 रुपये के जुर्माने या दोनों की सजा का प्रविधान है।
हालांकि, दोषी के माफी मांगने पर अगर कोर्ट संतुष्ट होता है तो उसे माफी भी दे सकता है। न्यायालय की अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में न्यायपालिका के विरुद्ध ट्वीट करने के मामले में वकील प्रशांत भूषण को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराया था।
हालांकि, कोर्ट ने प्रशांत भूषण पर सिर्फ एक रुपये का सांकेतिक जुर्माना लगाया था। अगर भूषण कोर्ट द्वारा तय अवधि में जुर्माना नहीं देते तो उन्हें तीन महीने तक की जेल और तीन वर्ष तक वकालत करने पर रोक लग सकती थी।
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