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    सड़क दुर्घटना के मामले में हाई कोर्ट ने घटा दी थी हर्जाना राशि, अब सुप्रीम कोर्ट ने दिया यह फैसला

    By AgencyEdited By: Krishna Bihari Singh
    Updated: Thu, 06 Oct 2022 07:42 PM (IST)

    सड़क दुर्घटना के एक मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक निश्चित समय पर न्यूनतम वेतन निर्धारित करने वाली हरियाणा सरकार की अधिसूचना को आधार बनाते हुए हर्जाने की राशि घटा दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में अपना फैसला दिया है।

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    सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि न्यूनतमवेतन अधिनियम के तहत जारी अधिसूचना का तभी सहारा लिया जा सकता है जब..

    नई दिल्ली, एएनआइ। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि न्यूनतम वेतन अधिनियम के तहत जारी अधिसूचना का तभी सहारा लिया जा सकता है जबकि सड़क दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति की मासिक आय की गणना करने के लिए कोई तथ्य उपलब्ध न हो। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एमएम सुंद्रेश की पीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एक आदेश को खारिज कर दिया और करनाल के मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एसएसीटी) के फैसले को बहाल कर दिया।

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    हाई कोर्ट द्वारा बताया गया कारण औचित्यहीन

    पीठ ने कहा कि मारे गए व्यक्ति की मासिक आय घटाने के लिए हाई कोर्ट द्वारा बताया गया कारण पूरी तरह रहस्यमयी और औचित्यहीन है। हाई कोर्ट ने एक निश्चित समय पर न्यूनतम वेतन निर्धारित करने वाली हरियाणा सरकार की अधिसूचना को आधार बनाते हुए नवंबर, 2014 में मारे गए व्यक्ति की आय 7,000 रुपये प्रतिमाह निर्धारित की थी और फिर इसके आधार पर हर्जाने की राशि घटा दी थी।

    ...मासिक आय 25 हजार रुपये से कम नहीं हो सकती

    लेकिन शीर्ष अदालत ने एमएसीटी के निष्कर्षों पर संज्ञान लेते हुए कहा कि उसका रुख कानून के मुताबिक और तथ्यों के आधार पर काफी न्यायसंगत है। पीठ ने कहा, इस बात का बिल्कुल सही फैसला किया गया कि मारे गए व्यक्ति की मासिक आय 25 हजार रुपये से कम नहीं हो सकती। वह मार्च, 2014 से ट्रैक्टर के लिए कर्ज पर 11,500 रुपये प्रतिमाह किस्त दे रहा था और मार्च, 2015 तक पूरा कर्ज चुका दिया गया था। यहां तक कि उसकी मृत्यु के बाद भी भुगतान किया गया था।

    दो महीने के भीतर ब्याज सहित बकाया राशि जमा कराएं

    शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता एसएसीटी के आदेश के मुताबिक हर्जाने के हकदार हैं, लिहाजा आदेश की प्रति मिलने की तिथि से दो महीने के भीतर ब्याज सहित बकाया राशि ट्रिब्यूनल में जमा कराई जाए। इस मामले में एसएसीटी ने 12 जनवरी, 2016 को 43,75,000 रुपये हर्जाना देने का आदेश दिया था, लेकिन हाई कोर्ट ने 24 सितंबर, 2019 को इसे घटाकर 16,57,600 रुपये कर दिया था। 

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