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    Punjab Agriculture: धान पर जोर ने बढ़ाया पंजाब का जल संकट, राज्य के पास बचा केवल बीस साल का पानी

    By Jagran News Edited By: Abhinav Atrey
    Updated: Thu, 15 Feb 2024 06:46 PM (IST)

    Punjab Agriculture Land न्यूनतम समर्थन मूल्य की संवैधानिक गारंटी के लिए फिर से शुरू हुए विरोध-प्रदर्शनों में सबसे आगे पंजाब में किसान धान में एमएसपी का लाभ उठाने में जितने आगे हैं उतना ही कृषि के विविधीकरण में पीछे और पर्यावरण की चुनौतियों का सामना करने में ढुलमुल। पंजाब में कृषि और खासकर धान की विविधता का दायरा सीमित है।

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    धान पर जोर ने बढ़ाया पंजाब का जल संकट। (फाइल फोटो)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। न्यूनतम समर्थन मूल्य की संवैधानिक गारंटी के लिए फिर से शुरू हुए विरोध-प्रदर्शनों में सबसे आगे पंजाब में किसान धान में एमएसपी का लाभ उठाने में जितने आगे हैं, उतना ही कृषि के विविधीकरण में पीछे और पर्यावरण की चुनौतियों का सामना करने में ढुलमुल।

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    पंजाब में कृषि और खासकर धान की विविधता का दायरा सीमित है। इस फसल का रकबा तेजी से बढ़ता जा रहा है-1980 में 28.12 लाख हेक्टेयर से 2023 में 31.93 लाख हेक्टेयर तक, लेकिन इस दौरान बाकी सभी फसलें (गन्ना, कपास, गेहूं और मक्का) उतनी ही तेजी से पीछे छूटती गईं।

    मक्के की खेती का रकबा घटा

    इसकी वजह जबरदस्त उर्वरक सब्सिडी, सस्ती बिजली (1970-1990 तक फ्लैट रेट और फिर पूरी तरह मुफ्त), 1967 से एमएसपी आधारित गारंटीड खरीद और सिंचाई में बेहिसाब पानी के इस्तेमाल की सुविधा है। आज हालत यह है कि 1980 में मक्के की खेती का जो रकबा 3.82 लाख हेक्टेयर था, वह 2023 में घटकर एक लाख हेक्टेयर पर आ गया है।

    पंजाब के पास केवल बीस साल का पानी बचा

    यही कपास के मामले में भी हुआ है-43 साल में इसका क्षेत्रफल 6.49 लाख हेक्टेयर से 1.80 लाख हेक्टेयर पर आ गया। इसके गंभीर पर्यावरण दुष्परिणाम अनुभव किए जाने लगे हैं। सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह है कि भूजल का स्तर हर साल एक मीटर नीचे जा रहा है। सरकार के एक अधिकारी के अनुसार पंजाब के 78 प्रतिशत ब्लॉक अतिदोहन वाले हैं और अगर एक सरकारी अध्ययन की रिपोर्ट को स्वीकार किया जाए तो पंजाब के पास केवल बीस साल का पानी बचा है।

    कृषि के आधुनिकीकरण की रफ्तार बहुत धीमी

    रिपोर्ट के अनुसार समस्या इसलिए गंभीर होती जा रही है, क्योंकि कृषि के आधुनिकीकरण की रफ्तार बहुत धीमी है। उदाहरण के लिए केवल 1.2 प्रतिशत भूमि ही माइक्रो इरिगेशन यानी लघु सिंचाई से कवर हो पाई है। यह कर्नाटक और तमिलनाडु के मुकाबले बहुत कम है।

    कर्नाटक में बीस प्रतिशत भूमि माइक्रो इरिगेशन

    कर्नाटक में जहां बीस प्रतिशत भूमि माइक्रो इरिगेशन के दायरे में है वहीं तमिलनाडु में यह 15 प्रतिशत है। इस लिहाज से पंजाब को यहां तक पहुंचने में वर्षों लगेंगे और अगर पानी की बात की जाए तो राज्य के पास इतना समय शायद अब नहीं रह गया है।

    कीटनाशकों की सबसे अधिक खपत पंजाब में

    सिंचाई ही नहीं, पंजाब की केवल 0.002 प्रतिशत जमीन पर ही जैविक खेती हो पा रही है। ग्रीनहाउस अथवा पालीहाउस आधारित खेती को अपनाने के मामले में पंजाब की रफ्तार देश में सबसे पीछे वाले राज्यों से मुकाबला कर रही है। इसी से जुड़ी एक कठिन सच्चाई यह है कि देश में कीटनाशकों की सबसे अधिक खपत यदि किसी राज्य में है तो वह पंजाब ही है। यहां 0.74 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कीटनाशकों की खपत है।

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