देश में नोटबंदी और बिहार में शराबबंदी को जनता का समर्थन
अब इसे संयोग कहें या फिर लोगों का मिजाज भांपने में नीतीश कुमार की पारखी निगाहें, नोटबंदी के फैसले का वे समर्थन कर रहे।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। नोटबंदी पर संसद से सड़क तक सरकार और विपक्षी दलों के बीच भले ही राजनीतिक घमासान चल रहा हो मगर इस फैसले से हो रही दिक्कतों के बावजूद बिहार के शहर-कस्बे ही नहीं सुदूर गांव-देहातों में भी लोगों में अभी कोई बेचैनी नहीं दिख रही। इसके उलट नोटबंदी से कालाधन ही नहीं भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की उम्मीद में परेशानियों के बावजूद लोग नोटबंदी का मुखर समर्थन कर रहे हैं। बिहार में नीतीश सरकार की शराबबंदी और मोदी सरकार की नोटबंदी को चौक-चौराहों पर लोग एक ही पैमाने पर रखने से भी गुरेज नहीं कर रहे। अब इसे संयोग कहें या फिर लोगों का मिजाज भांपने में नीतीश कुमार की पारखी निगाहें, नोटबंदी के फैसले का वे समर्थन कर रहे।
बड़े नोटों पर पाबंदी लगाने के पीछे सरकार की चाहे जो मंशा हो, इस पर सवाल उठा रही पार्टियों की चाहे जैसी परिभाषा हो, मगर आम लोगों को इसमें केवल एक ही चीज दिखाई दे रही है। वह यह कि नोटबंदी ने कालेधन रखने वालों और भ्रष्टाचार की मलाई काटने वालों पर करारा चोट किया है।
बीते शनिवार पटना के हनुमान मंदिर के सामने मिठाई-चाय की दुकान पर चुस्की लेते नोटबंदी पर गरमागरम चर्चा चल रही है। मुसाफिर से लेकर दुकानदार और युवा से लेकर कामकाजी तबके के कई लोग इसमें मशगूल हैं। अधिकांश इसमें से एक दूसरे को जानते नहीं। पर नोटबंदी की चर्चा ऐसी है कि किसी को परिचय देने-लेने की जरूरत नहीं महसूस हो रही। संसद नहीं चलने से लेकर नोटबंदी में बैंक और एटीएम से घंटों लाइन में खड़े रहने के बाद भी पैसे नहीं मिलने के अनुभव बांटे जा रहे हैं। इस चर्चा का लब्बोलुआब प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर अमित कुमार और रेहड़ी लगाने वाले मुकेश प्रसाद के शब्दों में 'नोटबंदी से भ्रष्टाचार रुकेगा क्योंकि अब नगदी पचाना आसान नहीं होगा।'
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पटना से मुजफ्फरपुर के रास्ते में एक जगह सराय चौक पर बैंक की लाइन में सैकडों लोग लगे हैं। कई चार-पांच घंटों से लाइन में हैं मगर अधिकांश इस बात के लिए तैयार दिखे कि भ्रष्टाचार व कालेधन पर नोटबंदी से लगाम लगती है तो वे कुछ समय और परेशानी सहने को तैयार हैं। लाइन में लगे एक स्थानीय किसान रामचंद्र यादव ने कहा दो दिन लाइन में लगने के बाद भी पैसा नहीं मिला फिर भी वे बेहतर कल के लिहाज से नोटबंदी को सही कदम मान रहे हैं।
मुजफ्फरपुर से मोतिहारी के रास्ते में एनएच-28 पर कांटी के पास एक ढाबे के युवा मालिक महेश कुमार ने चाय पेश करते हुए पहले ही छुट्टे देने की मांग रख दी। उसने कहा नोटबंदी के बाद उसके ढाबे का कारोबार आधे से भी कम हो गया है। इसका मतलब नोटबंदी तो गड़बड़ है? इस सवाल का छूटते ही महेश ने जवाब दिया 'नहीं ठीक हुआ है, आखिर भ्रष्टाचार कैसे खत्म होगा। थोड़ी दिक्कत है मगर आगे ठीक हो जाएगा।'
पूर्वी चंपारण जिले के कोटवा प्रखंड में स्टेट बैंक और ग्रामीण बैंक के सामने लोगों की भारी भीड़ है। कोई दो तो कोई तीन दिन की मशक्कत के बाद 2500 रुपए पाने में कामयाब हो रहा। लेकिन यहां भी नोटबंदी की मुखालफत जैसी कोई बात नहीं। इसी प्रखंड के कल्याणपुर खास गांव के मध्यम दर्जे के किसान चंद्रेश मिश्र और एक छोटे किसान शुकदेव महतो कहते हैं 'नोटबंदी ने शहरी अमीरों, नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों को चोट पहुंचाया है, हमारी जिंदगी में तो पहले से ही कई चुनौतियां है और अगर कालाधन खत्म होता है तो कुछ सामाजिक-आर्थिक बराबरी तो आएगी।' हालांकि दोनों रबी की बुआई में पैसे की किल्लत को लेकर भी चिंतित दिखे। इसी प्रखंड के अदिया गांव के सुबोध पांडेय जो मोतिहारी शहर में रियल इस्टेट का कारोबार करते हैं वे कहते हैं कि परेशानी तो हो गई है। मगर वे इससे खुश हैं कि कालाधन रखने वाले डॉन सरीखे लोगों का इस कारोबार में शायद प्रभाव कम हो।
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इसी तरह गोपालगंज शहर में नेशनल हाइवे के चौक-चौराहे पर जारी गपशप हो या फिर इस जिले के ग्रामीण इलाके कुचायकोट का विनोद मटिहनियां गांव हो या उसके पास का शनिचरी बाजार, जहां सेंट्रल बैंक का एक्सटेंशन ब्रांच है जो आस-पास के कई किलोमीटर के गांवों का बैंक। दोपहर के करीब डेढ बजे हैं और बैंक में पैसे खत्म हो गए हैं। करीब 25-30 लोग दूसरे दिन आने की बात कह वापस लौट रहे मगर कोई नोटबंदी की खिलाफत नहीं कर रहा बल्कि चटकारे लेकर नोट जलाने और गंगा में बहाने के किस्से सुनाए जा रहे हैं।
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