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    इंटरनेट मीडिया के जरिये हो रहे आपत्तिजनक तथ्यों के प्रसार पर लगे रोक

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Sat, 02 Apr 2022 12:01 PM (IST)

    क्या इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म ऐसी ताकतों की मदद कर रहे हैं जो भारत की एकता और अखंडता को बाधित करना चाहते हैं? और अगर ऐसा नहीं तो कम से कम अपनी तरफ से एक सार्थक पहल के रूप में इस कानून का पालन करने की दिशा में कदम उठाए।

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    Fake accounts control: फर्जी अकाउंट्स पर नियंत्रण। प्रतीकात्मक

    विनीत गोयनका। अमेरिका के एक मनोवैज्ञानिक फिलिप जोंबार्डो ने ऐसी स्थिति में मनुष्यों की व्यावहारिक प्रवृत्ति का अध्ययन किया था, जब उनकी पहचान को गुप्त रखा गया था। परिणाम जो सामने आए, वह अपेक्षित रूप से सही दिशा में थे, या यूं कहें कि जैसा सोचा गया था लगभग वैसे ही परिणाम प्राप्त हुए। निष्कर्ष यह रहा कि अगर कोई अपनी पहचान गुप्त रखता है तो उसके अनियंत्रित या उपद्रवी व्यवहार में शामिल होने की आशंका अधिक थी।

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    कुछ ऐसा ही आजकल हमें अपने देश के तमाम इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर भी देखने को मिल रहा है। आज कई लोग अपनी पहचान छिपाकर अपनी हदों को पार कर रहे हैं। उनका व्यवहार अशोभनीय, अनियंत्रित और कई बार बर्दाश्त करने की क्षमता से बाहर होता है। देखने में यह भी आता है कि किसी ठोस जांच के अभाव में उन पर किसी भी तरह की कार्रवाई सुनिश्चित नहीं हो पाती है।

    इस तरह की अराजकता की स्थिति को खत्म करने, इंटरनेट मीडिया में पारदर्शिता स्थापित करने और इन प्लेटफार्म की जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने पिछले वर्ष सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिए दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 अधिसूचित किए हैं। इन नियमों को अंतिम रूप देते समय इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और सूचना व प्रसारण मंत्रालय दोनों ने आपस में विस्तृत विचार-विमर्श किया, ताकि इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म के साथ-साथ डिजिटल मीडिया और ओटीटी यानी ओवर द टाप प्लेटफार्म आदि के संबंध में एक सामंजस्यपूर्ण एवं अनुकूल निगरानी व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके। इसके अंतर्गत स्वैच्छिक रूप से अपने खातों का सत्यापन कराने के इच्छुक उपयोगकर्ताओं को अपने खातों के सत्यापन के लिए एक उचित तंत्र उपलब्ध कराया जाएगा, जिसमें उन्हें एक विजिबल वेरिफिकेशन मार्क भी दिया जाएगा।

    यह विजिबल वेरिफिकेशन मार्क बायोमीट्रिक या भौतिक पहचान की तरह होगा जो सार्वजनिक रूप से सभी को दिखाई देता है। इस इंटरनेट मीडिया विनियमन के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया गया था, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के वरिष्ठ सांसद शामिल थे। सभी इस बात पर सर्वसम्मति से सहमत हुए कि इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म को उसकी सामग्री के लिए जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है, जिसे वे अपने प्लेटफार्म पर पोस्ट/ होस्ट करने की अनुमति देते हैं। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म को अपने उपयोगकर्ताओं को आधिकारिक तौर पर स्वयं की पहचान करने और स्वैच्छिक सत्यापन प्रक्रिया की अनुमति देनी चाहिए, और इसे अनिवार्य किया जाना चाहिए। हालांकि जेपीसी ने इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर इस तरह की किसी भी आचार संहिता के न होने पर नाराजगी जताई थी।

    इन नियमों के लागू होने के बाद इंटरनेट मीडिया के बड़े दिग्गजों को किसी भी तरह के आपत्तिजनक या नफरत फैलाने वाले पोस्ट या विचारों को साझा करने से पहले उस पोस्ट को सबसे पहले साझा करने वाले का राजफाश करने की आवश्यकता होगी। फेसबुक जो आज वाट्सएप मैसेजिंग एप का मालिक है, वह एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन का दावा करता है। इस नियम का पालन करने के लिए वाट्सएप को अपने एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन फीचर को खत्म करना होगा।

    हालांकि एक साल बीतने के बाद भी आज स्थितियां जस की तस बनी हुई हैं। इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म चाहे वह फेसबुक हो या ट्विटर या फिर कोई अन्य प्लेटफार्म, किसी ने भी अब तक इन नियमों का पालन नहीं किया है। इस कारण से इन इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म की समाज के प्रति प्रतिबद्धता, पारदर्शिता और जवाबदेही के बारे में आशंकाएं पैदा होती हैं। चूंकि हमारे लोकतंत्र में असहमति के लिए पर्याप्त स्थान है, इसलिए यह सब एक तरह से जान-बूझकर सामूहिक रूप से देश के कानून को कमजोर करने के लिए किए जा रहे प्रयास की तरह मालूम पड़ता है। संसद द्वारा पारित एक कानून के बाद भी अगर इसे मनमाना और अलोकतांत्रिक माना जाता है, तो किसी को भी सक्षम अदालत में ऐसे कानून को चुनौती देने और इसे रद करने का अधिकार है। लेकिन किसी भी इंटरनेट मीडिया फोरम द्वारा अब तक ऐसा कोई भी प्रयास नहीं किया गया है। संक्षेप में कहें तो न ही वे कानून को स्वीकार करते हैं, और न ही इस कानून को चुनौती देने का प्रयास कर रहे हैं। यह उनकी मंशा पर बड़े सवाल खड़े करता है।

    चूंकि एक विकासशील देश के रूप में तेजी से विकसित देश की दिशा में बढ़ रहे भारत में नई व्यवस्थाओं का विकास हो रहा है, इसलिए कुछ पुरानी व्यवस्थाएं इनका लाभ उठाकर असंख्य अवसरों पर, गलत सूचना और अफवाहें फैलाने के लिए फर्जी खातों के माध्यम से प्रयासरत रहती हैं। इसका दुष्परिणाम हमारे समक्ष कानून-व्यवस्था में गड़बड़ी के रूप में सामने आ रहा है। आज सूचना के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा इस हद तक बढ़ चुकी है कि ऐसे अराजक तत्व किसी भी स्तर तक जा सकते हैं। क्या यही कारण है कि ये सभी तत्व भारत सरकार के बनाए नए कानून के दायरे में स्वयं को नहीं ला रहे हैं। आने वाले दिनों में यह अन्य इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म के लिए एक सफल और सार्थक उदाहरण की तरह प्रस्तुत किया जा सकेगा।

    [सूचना प्रौद्योगिकी के जानकार]

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