आनंद मोहन की रिहाई रोकने के लिए हस्तक्षेप करें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, दिवंगत आइएएस की पत्नी ने लगाई गुहार
आनंद मोहन सिंह की रिहाई रोकने के लिए दिवंगत आइएएस जी. कृष्णैया की पत्नी ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है। आनंद मोहन के भड़काने पर भीड़ ने 1994 में कृष्णैया की हत्या कर दी थी।

हैदराबाद, पीटीआई। बिहार में वर्ष 1994 में मारे गए दलित आइएएस अधिकारी जी. कृष्णैया की पत्नी जी. उमा कृष्णैया ने पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह (Anand Mohan Singh) की रिहाई रोकने के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है। आनंद मोहन को भीड़ को भड़काने का दोषी पाया गया था और एक दिन पूर्व ही बिहार सरकार ने प्रदेश के कारागार मैनुअल में संशोधन करके उसे रिहा करने का फैसला किया है।
'फैसले से कायम होगी गलत मिसाल'
उमा कृष्णैया ने कहा कि वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कदम से हैरान हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और नीतीश कुमार को अपना फैसला वापस लेने के लिए कहना चाहिए। इस फैसले से गलत मिसाल कायम होगी और इससे पूरे समाज के लिए गंभीर परिणाम होंगे। उन्होंने कहा- मेरे पति एक आइएएस अधिकारी थे और न्याय सुनिश्चित करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है।
'राजपूतों का वोट हासिल करना चाहते हैं नीतीश कुमार'
दिवंगत आइएएस की पत्नी ने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार राजपूतों के वोट हासिल करने और दोबारा सरकार बनाने के लिए उनके पति के हत्यारे को रिहा कर रहे हैं। उन्हें (नीतीश कुमार) लगता है कि आनंद मोहन को रिहा करके उन्हें सभी राजपूतों के वोट मिल जाएंगे और उन्हें दोबारा सरकार बनाने में मदद मिलेगी, जबकि यह गलत है। उन्होंने कहा, 'यह बिहार में होता रहता है, लेकिन यह ठीक नहीं है। राजनीति में आनंद मोहन जैसे अपराधी नहीं, बल्कि अच्छे लोग होने चाहिए।'
पांच दिसंबर 1994 को कृष्णैया की हुई हत्या
1985 बैच के आइएएस अधिकारी कृष्णैया की पांच दिसंबर, 1994 को हत्या कर दी गई थी। उस समय वह गोपालगंज के जिलाधिकारी थे। आनंद मोहन सिंह के भड़काने पर भीड़ ने उनकी कार से खींचकर हत्या कर दी थी। उस समय भीड़ गैंगस्टर से राजनेता बने छोटू शुक्ला के शव के साथ विरोध प्रदर्शन कर रही थे।
अदालत ने आनंद मोहन सिंह को सुनाई मौत की सजा
आनंद मोहन को 2007 में निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन 2008 में पटना हाई कोर्ट ने उनकी सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। वह 15 वर्षों से जेल में हैं। दिवंगत आइएएस की पत्नी ने कहा कि आनंद मोहन को जब मृत्युदंड के बजाय उम्रकैद की सजा दी गई थी, तब वह बिल्कुल भी खुश नहीं थीं। उन्होंने कहा, 'अब यह हृदय विदारक है कि उसे अपनी सजा पूरी किए बिना ही रिहा किया जा रहा है।'
'अपराधियों में जाएगा गलत संदेश'
अपने पति की मृत्यु के कुछ दिनों बाद ही उमा हैदराबाद चली गई थीं। उन्होंने कहा कि राजपूत समुदाय को सोचना चाहिए कि क्या आनंद मोहन सिंह जैसे अपराधी उनका और समाज का कोई भला कर सकते हैं। उनकी रिहाई से अपराधी यही सोचेंगे कि वे कानून को अपने हाथ में ले सकते हैं, जो चाहे कर सकते हैं और जेल से बाहर आ सकते हैं।
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