बिजली शुल्क में लागू हो एक देश-एक दर नीति, स्वच्छ बिजली उपलब्ध कराने की दिशा में जरूरी कदम
केंद्रीय बिजली मंत्रलय ने बिजली उपभोक्ताओं को नियमित बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने तथा आपूर्ति सेवा घाटे को कम करने के मकसद से वर्ष 2025 तक सभी घरों में मौजूदा मीटरों को प्री-पेड स्मार्ट मीटरों में बदलने की अधिसूचना जारी की है।
कैलाश बिश्नोई। बिजली के मीटरों को प्री-पेड स्मार्ट मीटरों में बदलने का कदम आम बिजली उपभोक्ताओं के अनुकूल कहा जा सकता है, क्योंकि इसके लागू होने से उन्हें पूरे महीने का बिल एक ही बार में अदा करने की जरूरत नहीं होगी। हालांकि इन नए मीटरों के लगने पर उपभोक्ताओं को उपयोग से पहले बिजली बिल चुकाना यानी रिचार्ज करना होगा। जब रिचार्ज खत्म हो जाएगा तो बिजली की आपूर्ति स्वत: बंद हो जाएगी। प्री-पेड मीटर ठीक उसी तरह से काम करता है जैसे प्री-पेड मोबाइल कनेक्शन यानी जितना पैसा उतनी बिजली। यह बिजली क्षेत्र को मजबूती देने के लिए अच्छा प्रयास है।
कई दिक्कतों का समाधान: आज देश में बिजली का मनमाना और अनाप-शनाप बिल एक बड़ी समस्या है। दूसरी तरफ कई उपभोक्ताओं द्वारा समय पर बिलों का भुगतान नहीं करने से बिजली कंपनियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अभी पूरे देश में लगभग हर महीने बिजली के बिल जेरनेट करने की व्यवस्था है। इसके लिए अधिकतर जगहों पर आउटसोर्सिंग की मदद ली जाती है। इस व्यवस्था में कई कमियां विद्यमान हैं। अक्सर देखने में आता है कि कई जगहों पर ठीक से रीडिंग नहीं होती या फिर कई जगहों पर कई महीनों तक रीडिंग नहीं की जाती। ऐसे में जब बिल बहुत अधिक हो जाता है, तो उसे जमा भरने में आनकानी करने लगते हैं और बिजली चोरी के तौर-तरीके सोचने लगते हैं। प्री-पेड स्मार्ट मीटर योजना से इस परेशानी से निजात मिलेगी। यही नहीं, स्मार्ट मीटर लगने के बाद लो वोल्टेज की समस्या दूर होने के साथ निर्बाध बिजली आपूर्ति भी सुनिश्चित होगी तथा स्मार्ट प्री-पेड मीटरों का निर्माण करने से युवाओं के लिए कौशलपूर्ण रोजगार भी सृजित होंगे।
यह योजना मौजूदा डिस्काम को परिचालन रूप से कुशल और वित्तीय रूप से मजबूत बनाने पर जोर देती है। इस योजना के तहत एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम चरणबद्ध तरीके से कृषि उपभोक्ताओं को छोड़कर सभी बिजली उपभोक्ताओं के लिए प्री-पेड स्मार्ट मीटर स्थापित करना है। बिजली मंत्रलय के मुताबिक सभी केंद्र शासित प्रदेशों तथा वह क्षेत्र जहां 50 प्रतिशत से अधिक शहरी उपभोक्ता हैं और वर्ष 2019-20 में कुल तकनीकी- वाणिज्यिक बिजली क्षति 15 प्रतिशत या 25 प्रतिशत से ज्यादा रही है, वहां दिसंबर 2023 तक स्मार्ट प्री-पेड मीटर लगाने का लक्ष्य रखा गया है। वहीं सभी राज्यों में दिसंबर 2024 तक स्मार्ट प्रीपेड मीटर इंस्टाल करना अनिवार्य होगा। नई व्यवस्था के मुताबिक राज्यों के बिजली नियामक आयोगों को नई व्यवस्था लागू करने के लिए दो बार विशेष परिस्थितियों में कुछ चुनिंदा उपभोक्ताओं और क्षेत्रों के लिए समय सीमा बढ़ाने की सुविधा मिलेगी। इसके तहत दो बार छह-छह महीने से अधिक छूट नहीं मिलेगी। इस तरह अन्य सभी क्षेत्रों के लिए इस कार्य को संपन्न करने की अंतिम समय सीमा मार्च 2025 रखी गई है। इसके पहले चरण में दिसंबर 2023 तक लगभग 10 करोड़ प्री-पेड स्मार्ट मीटर लगाने का प्रस्ताव है। प्री-पेड स्मार्ट मीटर सहित आइटी उपकरणों के माध्यम से उत्पन्न डाटा का विश्लेषण करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद ली जाएगी। इससे डिस्काम को नुकसान में कमी, मांग का पूर्वानुमान, टैरिफ, अक्षय ऊर्जा एकीकरण और अन्य संभावित विश्लेषण पर निर्णय लेने में ज्यादा कार्यकुशलता हासिल की जा सकेगी।
बिजली क्षेत्र की चुनौतियां : भारत में पिछले दो-तीन दशकों में बिजली उत्पादन के क्षेत्र में अहम प्रगति देखने को मिली है, इसके फलस्वरूप ऊर्जा उत्पादन के संकट को दूर करते हुए बिजली के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर हो गया है। खपत से ज्यादा बिजली का उत्पादन हो रहा है। ऐसे में आज बिजली क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती उत्पादन में न होकर इसके वितरण से संबंधित है। डिस्काम यानी विद्युत वितरण कंपनियां भारत के विद्युत क्षेत्र के विकास में सबसे बड़ी बाधा रही हैं तथा कई अवसरों पर सरकार द्वारा राज्य विद्युत वितरण कंपनियों के नुकसान की भरपाई के लिए अतिरिक्त धन उपलब्ध कराना पड़ा है जो इसका एक स्थायी और दूरगामी समाधान नहीं हो सकता। केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2019-20 में 61,000 करोड़ रुपये के वार्षकि घाटे के साथ डिस्काम का कुल ऋण 3.84 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था।
विद्युत उपभोग के आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि इस मामले में भारत काफी पिछड़ा है। भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिकी बिजली खपत लगभग 1,100 किलोवाट है जबकि वैश्विक स्तर पर वार्षिकी विद्युत खपत प्रति व्यक्ति 2,500 किलोवाट है। देश में पावर-शार्टेज अभी अभी एक बड़ी समस्या है। बिजली के खंभों और तारों का विस्तार तो हुआ है, लेकिन घरों में बिजली का निर्बाध प्रवाह नहीं हो पा रहा है। अहम सवाल यह है कि देश में जरूरत से ज्यादा बिजली पैदा करने के बाद भी बहुत से घरों में अंधेरा क्यों है? छह प्रमुख राज्यों बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और बंगाल में 2015 से अब तक हजारों ग्रामीण परिवारों पर नजर रखने के लिए बनी काउंसिल द्वारा बिजली की पहुंच से संबंधित एक रिपोर्ट में बताया गया कि बिजली के कनेक्शन और विश्वसनीय बिजली आपूर्ति के बीच में काफी अंतराल बढ़ा है। हालांकि 2015 में बिजली आपूíत 12 घंटे औसत थी जो बढ़कर 2018 में 16 घंटे तक पहुंच गई, लेकिन यह अभी भी 24 घंटे के लक्ष्य से दूर है। सर्वेक्षण में शामिल किए गए छह राज्यों में 30 प्रतिशत ग्रामीण विद्युतीकृत घरों में महीने में चार दिन से अधिक बिजली आपूíत नहीं होती थी, जो बुनियादी ढांचे के लगातार कमजोर होने के साथ उनकी मरम्मत में देरी का संकेत देती है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि देश का बिजली क्षेत्र अजीब दुष्चक्र में फसा है। जहां एक तरफ देश में बिजली उत्पादन की क्षमता काफी अधिक है, कच्चे माल का भंडार भी पर्याप्त है और करोड़ों उपभोक्ताओं वाले बाजार में संभावनाएं भी अपार हैं। बावजूद इसके घंटों बिजली की कटौती होती है।
सस्ती और निर्बाध बिजली की राह : आज भारत के समक्ष बड़ी चुनौती लगभग 25 करोड़ परिवारों को सस्ती बिजली मुहैया कराने की है। देश के कुछ राज्यों की बिजली दरों के आधार पर आपस में तुलना करें तो मध्य प्रदेश में प्रति यूनिट बिजली की दर छत्तीसगढ़ से महंगी है, दूसरे पड़ोसी राज्य राजस्थान से सस्ती है। दक्षिणी राज्यों में कर्नाटक में मध्य प्रदेश के मुकाबले बिजली महंगी है। गुजरात में भी मध्य प्रदेश से सस्ती बिजली मिलती है। बिहार जैसा राज्य आज देश में सबसे महंगी बिजली खरीद रहा है। बिहार की तुलना में पड़ोसी राज्यों को भी सस्ती बिजली मिल रही है। उदाहरण के लिए ओडिशा को बिहार से लगभग आधे कीमत पर ही बिजली मिल रही है। अधिक दाम पर बिजली लेने के कारण बिहार को हर साल हजारों करोड़ रुपये अधिक खर्च करने पड़ रहे हैं। विकास के कई पैमाने पर पिछड़े बिहार के लिए यह दोहरी मार है। जो पैसे विकास पर खर्च होने चाहिए वह बिजली खरीद में खर्च हो रहा है।
मालूम हो कि साल 2018-19 में खरीदी गई बिजली की दर के आडिट रिपोर्ट के अनुसार देश में बिजली खरीद का औसत मात्र 3.60 रुपये प्रति यूनिट है। इसमें पूर्वी राज्यों में सबसे अधिक दर पर बिहार को ही बिजली मिल रही है। राष्ट्रीय औसत की तुलना में ओडिशा को 89 पैसे प्रति यूनिट सस्ती बिजली मिल रही है। जबकि राष्ट्रीय औसत से भी बिहार 52 पैसे अधिक प्रति यूनिट बिजली खरीद में खर्च कर रहा है। वहीं गोवा में बिजली की दर 2.43 रुपये प्रति यूनिट है। पड़ोसी राज्यों से तुलना की जाए तो राजस्थान इकलौता ऐसा प्रदेश है, जहां लगभग सात रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बिल का भुगतान करना पड़ रहा है। ऐसे में अगर एक देश-एक बिजली दर लागू हो जाए तो महंगी बिजली दरों वाले राज्यों के लोगों को सस्ती बिजली मिलने की संभावना बढ़ जाएगी। पूरे देश में केंद्र सरकार बिजली की आपूर्ति करती है। इसलिए केंद्र सरकार को एक देश एक बिजली दर पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। सभी घरों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य हासिल करने के बाद केंद्र सरकार का लक्ष्य होना चाहिए कि वो हर घर में अबाध गति से 24 घंटे बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करे। यह तभी संभव है, जब पारेषण तंत्र में बड़ा निवेश किया जाए और सभी राज्यों में बिजली तक खुली पहुंच की एक तर्कसंगत व्यवस्था कायम की जाए।
बिजली क्षेत्र को विकास का इंजन माना जाता है। लेकिन चिंता की बात यह है कि भारत में बिजली उत्पादन कोयले पर अत्यधिक निर्भर है। जबकि एक तो इसकी मात्र सीमित है, वहीं यह पर्यावरण के लिहाज से सही नहीं है। ऐसे में हमारी यह जिम्मेदारी बनती है कि कैसे आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ बिजली उपलब्ध कराएं। भारत में सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत अधिक संभावनाएं हैं, जबकि हाइड्रोजन भी ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में एक ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकता है। यही वजह है कि विद्युत उत्पादन को स्वच्छता और पर्यावरण सुरक्षा के मानदंडों पर खरा बनाए रखने के लिए सरकार ने 2022 तक 175 गीगावाट क्षमता नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र से प्राप्त करने की योजना बनाई है। इसमें से 100 गीगावाट क्षमता सौर ऊर्जा से और 60 गीगावाट पवन ऊर्जा से प्राप्त होगी।
बिजली उत्पादन में भारत लगातार नए-नए लक्ष्य बना रहा है और उन्हें पूरा करने के लिए कोशिश भी कर रहा है। 30 जून, 2021 तक के आंकड़ों के हिसाब से नवीकरणीय संसाधनों द्वारा कुल बिजली उत्पादन की क्षमता देश में करीब 97 गीगावाट तक की थी। तो वहीं इसी अवधि तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से स्थापित कुल बिजली उत्पादन की क्षमता 150 गीगावाट थी, जो कुल बिजली उत्पादन क्षमता का 39 फीसद है। अच्छी बात है कि भारत इस समय राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के लक्ष्य को पाने और उससे आगे निकलने की राह पर है। भारत ने पेरिस समझौते में यह कहा है कि वह वर्ष 2030 तक करीब 40 प्रतिशत ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करेगा। वहीं भारत को वर्तमान बिजली उत्पादन क्षमता की तुलना में वर्ष 2030 तक तीन गुना बिजली उत्पादन क्षमता प्राप्त करनी होगी, ऐसे में भारत के सामने ऊर्जा सुरक्षा एक बड़ी समस्या के रूप में उभरेगी, जिसका समाधान नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से तलाशना होगा।
[शोध अध्येता, दिल्ली विश्वविद्यालय]