दिवालिया कानून में एक और संशोधन की तैयारी, आगामी मानसून सत्र में पेश किया जाएगा विधेयक
आइबीबीआइ चेयरमैन का कहना है कि आइबीसी का अनुभव भारत में अभी तक काफी अच्छा रहा है। इसकी सफलता सिर्फ इस बात से नहीं आंकनी चाहिए कि इससे बकाये कर्ज की कितनी वसूली हुई बल्कि इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि इसने कितने मामलों का निपटान किया है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली: छह वर्ष पहले देश में लागू दिवालिया कानून (इंसॉल्वेंसी व बैंक्रप्सी कोड- आइबीसी) में कई बार संशोधन हो चुका है और अब इसमें एक बार फिर संशोधन की तैयारी है। इस बार संशोधन पूरी दिवालिया प्रक्रिया को और ज्यादा पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से होगी। यह बात बुधवार को सीआइआइ और इंसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड ऑफ इंडिया (आइबीबीआइ) की तरफ से आयोजित सेमिनार में सामने आई।
मानसून सत्र में पेश होगा विधेयक
सेमिनार में शामिल अधिकारियों ने बताया कि संशोधन की तैयारी लगभग पूरी है और अब सरकार को फैसला करना है कि संबंधित विधेयक कब पेश किया जाना है। उम्मीद है कि आइबीसी में संशोधन को लेकर विधेयक आगामी मानसून सत्र में पेश कर दिया जाएगा। संशोधन का मकसद यह होगा कि दिवालिया के मामलों का निपटान शीघ्रता से हो सके। इस सेमिनार में आइबीबीआइ के अध्यक्ष रवि मित्तल ने कहा कि, देश में कर्ज लेने और देने की जो व्यवस्था थी उसमें आइबीसी व्यापक बदलाव ला चुका है। अब इस प्रक्रिया को और ज्यादा पारदर्शी बनाने की कोशिश होनी चाहिए।
दिवालिया प्रक्रिया को तेज करने की कवायद
उन्होंने आबीसी को देश का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक कानून बताते हुए संकेत दिया कि इस कानून को लागू करने में और ज्यादा तकनीक का उपयोग किया जाएगा ताकि दिवालिया प्रक्रिया को तेज किया जा सके। आइबीसी को वर्ष 2016 में पीएम नरेन्द्र मोदी सरकार ने देश में फंसे कर्जे (एनपीए) की समस्या को दूर करने व बेहतर कारपोरेट गवर्नेंस लागू करने के लिए तैयार किया था। कानून के मुताबिक इसके तहत दर्ज मामलों का निपटारा 90 दिनों के भीतर किये जाने का प्रावधान है, लेकिन आइबीबीआइ के आंकड़े बताते हैं कि 51 फीसद से ज्यादा मामले दो वर्ष या इससे भी ज्यादा समय से लंबित है।
भारत में आइबीसी का अनुभव अच्छा
आइबीबीआइ चेयरमैन का कहना है कि आइबीसी का अनुभव भारत में अभी तक काफी अच्छा रहा है। इसकी सफलता सिर्फ इस बात से नहीं आंकनी चाहिए कि इससे बकाये कर्ज की कितनी वसूली हुई बल्कि इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि इसने कितने मामलों का निपटान किया है। अब ऐसे भी मामले आ रहे हैं कि कर्ज देने वालों को बकाये राशि का बड़ा हिस्सा वापिस हुआ है। उन्होंने कहा कि भारत का कारपोरेट सेक्टर बहुत ही भिन्न है और अलग अलग मामलों का समाधान भी अलग तरह से होना चाहिए।
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