राष्ट्रपति के रूप में सक्रियता भरा रहा प्रणब का एक साल
नई दिल्ली। राष्ट्रपति के रूप में 25 जुलाई को पूरा होने जा रहे अपने पहले साल के कार्यकाल के दौरान प्रणब मुखर्जी अपने अन्य पूर्ववर्तियों से जरा हट के साबित हुए। अपनी राजनीतिक पारी की तरह ही वह इस दौरान भी पूरी तरह सक्रिय रहे। हालांकि ऐसा करते हुए उन्होंने देश के सांकेतिक प्रमुख होने के नाते अपनी सीमाओं का बखू
नई दिल्ली। राष्ट्रपति के रूप में 25 जुलाई को पूरा होने जा रहे अपने पहले साल के कार्यकाल के दौरान प्रणब मुखर्जी अपने अन्य पूर्ववर्तियों से जरा हट के साबित हुए। अपनी राजनीतिक पारी की तरह ही वह इस दौरान भी पूरी तरह सक्रिय रहे। हालांकि ऐसा करते हुए उन्होंने देश के सांकेतिक प्रमुख होने के नाते अपनी सीमाओं का बखूबी ख्याल रखा। अपने कार्यकाल के पहले चरण में प्रणब दा ने आम आदमी की नजर में राष्ट्रपति पद को लेकर कायम तिलस्म को तोड़ने की पुरजोर कोशिश की। इससे लिए उन्होंने कई नायाब कदम उठाए।
प्रणब दा ने राष्ट्रपति के अभिवादन के लिए 'हिज एक्सेलेंसी यानी महामहिम' शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगवाई। इतना ही नहीं उन्होंने राष्ट्रपति भवन तक आम आदमी की पहुंच को भी आसान बनाई। यह प्रणब दा की ही देन है कि कोई भी व्यक्ति ऑनलाइन पंजीकरण कराकर राष्ट्रपति भवन और मुगल गार्डन की भव्यता को नजदीक से देख सकता है। इससे पूर्व लोगों को राष्ट्रपति भवन में प्रवेश के लिए सैन्य सचिव को पत्र लिखने की ऊबाऊ प्रक्रिया से गुजरना होता था। जिस तत्परता से उन्होंने काफी अर्से से लंबित मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब और संसद हमले के जिम्मेदार अफजल गुरु की दया याचिकाओं का निस्तारण किया, वह उनकी दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति को ही दर्शाता है। उन्हें जब भी मौका मिला, वह सांसदों को अनुशासन का पाठ पढ़ाना नहीं भूले।
उन्होंने न्यायपालिका को भी अपनी हद में रहने को कहा। राष्ट्रपति के रूप में प्रणब दा की सक्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने साल भर में कम से कम 23 राज्यों का दौरा करने के साथ 36 शैक्षणिक संस्थाओं में समारोहों को भी संबोधित किया। पिछले वर्ष के दिल्ली दुष्कर्म कांड के खिलाफ लोगों के गुस्से के साथ भी वह खड़े दिखे। करीब 44 वर्षो तक सार्वजनिक जीवन में रहने के बाद राष्ट्रपति बने प्रणब दा का इतिहास प्रेम जगजाहिर है। इस लिहाज से उन्होंने उपेक्षित पड़े एतिहासिक दरबार हाल को आधुनिक रूप से उन्नत कराया और वहां पर फिर से आधिकारिक कार्यक्रमों का आयोजन सुनिश्चित कराया। प्रणब दा ने राष्ट्रपति भवन की उपेक्षित पड़ी लाइब्रेरी को भी आधुनिक स्वरूप देने के लिए जरूरी कदम उठाया।
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