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    ‘कालानमक’ से लिखी जा रही किसानों की तकदीर

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Tue, 16 Jan 2018 03:17 PM (IST)

    शुगर फ्री चावल को जल्द मिलेगा अंतरराष्ट्रीय बाजार, 40 प्रकार के खनिज तत्व होने से कई बीमारियों में लाभकारी

    ‘कालानमक’ से लिखी जा रही किसानों की तकदीर

    देवघर (आरसी सिन्हा)। शुगर फ्री चावल की मांग दिनों दिन बढ़ रही है। उत्पादन कम होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में यह पांच सौ रुपये किलो तक बिक रहा है। कालानमक नामक प्रजाति का चावल शुगर फ्री होने के साथ ही 40 से अधिक पोषक तत्वों से भरपूर है, लिहाजा इसके दिन अब फिर लौट रहे हैं। कभी यह अपनी खुशबू के लिए मशहूर हुआ करता था। अब शुगर फ्री और पोषक तत्वों की खूबी के लिए मशहूर हो रहा है। उत्तर प्रदेश, झारखंड सहित देश के अन्य हिस्सों में इसके उत्पादन को पुन: बढ़ावा देने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें प्रयास कर रही हैं। नए सिरे से ब्रांडिंग भी की जा रही है। पिछले एक दशक में यह लुप्त होने की स्थिति में जा पहुंचा था।

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    झारखंड में सफल रहा प्रयोग

    झारखंड की बात करें तो यहां किसानों की दिलचस्पी इसमें तेजी से बढ़ी है। 2017 में यहां इसे लेकर कुछ प्रयास शुरू हुए थे, जो अब अपना दायरा बढ़ा रहे हैं। बेहद पौष्टिक और शुगर फ्री होने के कारण कालानमक चावल को हाथों हाथ लिया जा रहा है।

    झारखंड के पाकुड़ और संताल क्षेत्र में इसका अधिक उत्पादन हो रहा है। यहां नीड्स नामक संस्था ने पिछले साल दो हजार से अधिक किसानों को इसके उत्पादन के लिए प्रेरित किया था। करीब 200 एकड़ पर उत्पादन किया गया। 600 किलो बीज से 12,000 किलो उपज तैयार हुई। यह सिलसिला अब चल पड़ा है।

    खरीदारों की बात करें तो निर्यातक कंपनियां भी किसानों से संपर्क साध रही हैं। इनमें प्रख्यात संत श्रीश्री रविशंकर की कंपनी श्रीश्री साइंस एंड टेक्नोलॉजी ट्रस्ट बेंगलुरु भी शामिल है। कुलमिलाकर किसानों को उम्मीद जग गई है कि कालानमक उनकी तकदीर बदल देगा।

    कुपोषण से लड़ने में सहायक

    भारत सरकार ने 2013 में पोषक फार्म योजना में कालानमक चावल को शामिल किया है। यह कुपोषण से लड़ने में सहायक है। इसे सरकार ने पोषक फसलों में से एक माना है। इसकी एक खूबी यह भी है कि इसमें अधिक तापमान झेलने की क्षमता है इसलिए जलवायु परिवर्तन के लिहाज से भी यह बेहतर है।

    इसका भी एक जमाना था
    मनमोहक खुशबू के कारण अंग्रेजों के जमाने में ही यह चावल पूरी दुनिया में मशहूर था। पूर्वी उप्र के कुछ क्षेत्रों में कभी इसकी बंपर पैदावार होती थी। रासायनिक खादों के प्रयोग व उपेक्षा से यह लुप्त होने की स्थिति में जा पहुंचा।

    खुशबू ऐसी कि बासमती को भी भूल जाएंगे
    हल्का नमकीन स्वाद और काली भूसी होने के कारण इस चावल का नाम कालानमक पड़ा है। इसकी खुशबू ऐसी है कि आप बासमती चावल को भूल जाएंगे। यह सुपाच्य है। इसमें लवण की प्रचुरता है। 40 प्रकार के खनिज होने के कारण यह यकृत और हृदय रोगों में भी लाभकारी है। इसमें लोहा और जस्ता पर्याप्त है। साधारण धान की फसल जहां 130 दिन में तैयार होती है, वहीं इसकी फसल को तैयार होने में 140 दिन लगते हैं।  

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