अब प्राकृतिक आपदाओं की पहले मिल जाएगी जानकारी, जानें कैसे
बढ़ जाएगी मौसम विभाग की कार्य क्षमता, मौसम का पूर्वानुमान होगा और आसान, आसमानी प्राकृतिक आपदाओं की भी कर सकेगा सटीक भविष्यवाणी।
नई दिल्ली (संजीव गुप्ता)। भारतीय मौसम विभाग की भविष्यवाणी कई अवसरों पर फेल हो जाती है। लेकिन निकट भविष्य में यह साबित होगी। मौसम विभाग अपनी तकनीकी क्षमता को बढ़ाने जा रहा है। जिसके बाद मौसम के अलावा बादल फटने, बर्फबारी, ओलावृष्टि और मूसलाधार बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाओं की
भविष्यवाणी समय रहते संभव हो सकेगी।
उत्तर भारत से शुरुआत
इस प्रोजेक्ट के तहत प्रादेशिक मौसम पूर्वानुमान केंद्र दिल्ली की ओर से हिमालय क्षेत्र में 10 एक्स बैंड डॉप्लर वेदर रडार लगाए जाएंगे।
विशेषज्ञों के मुताबिक हिमालय क्षेत्र में होने वाले पश्चिमी विक्षोभ का सबसे अधिक असर उत्तर भारत के मौसम पर पड़ता है। दिल्लीएनसीआर भी इसमें शामिल हैं।
इन रडार से उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा सहित उत्तर भारत के मौसम का पूर्वानुमान आसान हो जाएगा। अगले डेढ़ साल में इन्हें स्थापित करने का काम भी पूरा हो जाएगा। इस तरह के एक उपकरण की रेंज लगभग 100 किलोमीटर रेडियस होती है।
ऐसे काम करेगा वेदर रडार
डॉप्लर रडार के जरिए वातावरण में रेडियो तरंगे भेजी जाती हैं, जो पानी की बूंदों व धूल कणों से टकराकर वापस लौटती हैं। रेडियो तरंगें बादलों में बूंदों की तीव्रता का आंकलन कर बताती हैं कि बारिश कहां होगी, कितनी देर तक होगी और उसकी मात्रा कितनी रहेगी।
अगर एक घंटे में कहीं 10 सेंटीमीटर मीटर बारिश होने के आसार हैं तो यह मूसलाधार बारिश होने की स्थिति को दर्शाता है।
क्या है डॉप्लर रडार
डॉप्लर रडार भौतिकी के प्रामाणिक नियम डॉप्लर प्रभाव के आधार पर काम करता है। इसके तहत ध्वनि-प्रतिध्वनि या प्रकाश की परावर्तनीय गति की ठीक-ठीक गणना की जाती है। विश्व के कई देशों में आधुनिक डॉप्लर रडार का प्रयोग शुरू हो चुका है।
उत्तराखंड आपदा के बाद भारत में भी ऐसे रडार लगाने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी थी।
यहां लगेंगे यह रडार
तीन-तीन एक्स बैंड डॉप्लर वेदर रडार जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में लगाए जाएंगे जबकि एक रडार अमरनाथ के बालटाल क्षेत्र में लगाया जाएगा। प्रत्येक रडार की रेंज 100 किलोमीटर की होगी।
ये है वर्तमान तरीका
मौसम विभाग फिलहाल रेडियो सोंडे तकनीक का प्रयोग करता है। पूर्वानुमान के लिए रेडियो सोंडे उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन उपकरणों को हाइड्रोजन गैस के गुब्बारे से ऊंचाई पर छोड़ा जाता है। ऊपर जाकर यह हवा की गति, उसकी दिशा, नमी और तापमान इत्यादि की जानकारी देता है।
अब इनके अलावा वेदर रडार भी पूर्वानुमान में सहायक होंगे। साथ ही अब गुब्बारे में ऑटोमेटिक जीपीएस लगाया जा रहा है। इससे गुब्बार की सटीक स्थिति का पता लगाया जा सकेगा।
अगले दो सालों में हम मौसम की काफी सटीक व प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध करा सकेंगे। हम इस स्थिति में आने वाले हैं कि हिमालय क्षेत्र में होने वाले हर बदलाव की गणना भी कर सकेंगे।
-डॉ. देवेंद्र प्रधान, उप महानिदेशक,
प्रादेशिक मौसम पूर्वानुमान केंद्र, दिल्ली
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