संदीप राजवाड़े, नई दिल्ली।

फास्ट फूड से हार्ट अटैक और कैंसर के साथ किडनी की बीमारी भी होने का खतरा बढ़ गया है। जी हां, यह सही है। देश के बड़े नेफ्रोलॉजिस्टों का कहना है कि हमारी लाइफ स्टाइल और फास्ट फूड का अधिक सेवन हमारे लिए बड़ी बीमारियां होने का बड़ा फैक्टर बनता जा रहा है। बिगड़ी लाइफ स्टाइल व खानपान के कारण ही भारत में अधिकांश लोगों को ब्लड प्रेशर औैर डायबिटीज हो रहे हैं, जो किडनी खराब करने के मुख्य कारक है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत में पिछले कुछ सालों के दौरान किडनी की बीमारी के मरीजों में अधिकतर युवा सामने आ रहे हैं, जिनकी उम्र 50 से कम होती है। इनमें से आधे डायलिसिस कराने आ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि अगर किडनी के साथ अन्य बड़ी बीमारियों से बचना है तो लोगों को अपनी लाइफ स्टाइल को लेकर जागरूक होना होगा। किडनी के केस में तो प्रारंभिक स्टेज में बीमारी की पहचान होने पर ही इसे आगे बढ़ने से रोका जा सकता है, लेकिन जब तक लोगों को इसकी जानकारी लगती है, किडनी बुरी तरह प्रभावित हो चुका होता है। अगर संतुलित खानपान, स्मोकिंग- शराब का सेवन न करने और एक्सरसाइज से लोगों को बीपी और डायबिटीज होने से बचाया जा सकता है। इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के अनुसार दुनिया में 850 मिलियन से ज्यादा क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीज हैं, जिनकी संख्या हर साल बढ़ती जा रही है।

किडनी मरीजों की संख्या कैंसर से कई गुना ज्यादा

इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 850 मिलियन से ज्यादा लोग किडनी की बीमारी से जूझ रहे हैं। यह संख्या दुनिया में डायबिटीज के कुल मरीज 422 मिलियन की तुलना में दोगुना और 42 मिलियन कैंसर मरीजों की तुलना में 20 गुना है। इसके अलावा विश्व में एड्स- एचआईवी के 36.7 मिलियन से ज्यादा क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीज हैं। यह भी अनुमान लगाया गया है कि आने वाले सालों में हर साल सीकेडी और किडनी फेलियर के 13.3 मिलियन मरीज सामने आएंगे।

50 साल के अंदर वाले मरीजों की संख्या बढ़ी, साल में एक बार जांच कराने से बच सकते हैं- डॉ. गुप्ता

भारत में भी अब किडनी के नए मरीजों में आधे युवा वर्ग के लोग सामने आ रहे हैं। इसे लेकर दिल्ली एनसीआर के पारस हॉस्पिटल के नेफ्रोलॉजी विभाग के डायरेक्टर व एचओडी डॉ. पीएन गुप्ता बताते हैं कि टोटल मरीजों में करीबन 35 फीसदी तक के पेशेंट में किडनी की बीमारी होने के पीछे हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज है। आने वाले समय में बीपी व डायबिटीज के कारण और मरीज बढ़ेंगे, क्योंकि इन दोनों बीमारियों के मरीजों की संख्या दिनोंदिन लगातार बढ़ती जा रही है। इसका असर किडनी के मरीजों की बढ़ती संख्या के तौर पर देखा जाएगा। इसके पीछे लाइफ स्टाइल बहुत बड़ा कारण है, अगर संतुलित जीवनशैली है तो व्यक्ति के किडनी का ब्लड सर्कुलेशन सही रहता है, डायबिटीज भी कंट्रोल में रहता है। मेरा आकलन है कि 100 किडनी के मरीजों में से 40-50 फीसदी मरीज युवा होते हैं। पिछले कुछ सालों के दौरान 40 से 50 साल के बीच के मरीजों की संख्या बढ़ा है। इनमें सबसे बड़ा कारण उनकी जीवनशैली और खानपान है। इसका ही दुष्प्रभाव है कि किडनी के मरीज अब बढ़ रहे हैं। डॉ. गुप्ता बताते हैं कि जहां तक इसके प्रारंभिक लक्षण या पहचान की बात है तो किडनी की बीमारी की आशंका या जांच को लेकर जितने भी डायबिटीज व हाई बीपी के मरीज हैं, वे साल में एक बार अपनी नियमित जांच जरूर करवा लें। इसके अलावा अगर किसी की फैमिली में किडनी की बीमारी की हिस्ट्री है तो उन्हें भी साल में अपनी स्क्रीनिंग करानी चाहिए। दोनों टेस्ट नॉर्मली हैं, यह महंगे भी नहीं है। एक टेस्ट है यूरीन रूटीन और दूसरा है सीरम क्रिएटिनिन टेस्ट, जो छोटे से बड़े अस्पतालों व लैब सेंटर में उपलब्ध हैं।

इसके अलावा हार्ट के मरीजों को भी किडनी की बीमारी होने की आशंका रहती है। एक चीज देखने में आया है कि भारत में लोग थोड़ा से भी दर्द या तकलीफ होने पर पेनकिलर ले लेते हैं, जो किडनी के लिए बहुत ही नुकसानदायक है। पेन किलर खाने के मामलों में अधिकतर महिलाएं होती हैं, जिन्हें यह आदत लग जाती है और बाद में किडनी की बीमारी से ग्रसित हो जाती हैं। वे अपनी जिम्मेदारियों के चक्कर में अपना ख्याल नहीं रखती हैं, तत्काल रिलीफ लेने के लिए पेनकिलर लेती रहती हैं। जहां तक किडनी की बीमारी की पहचान होने के बाद उसे ठीक करने की बात है तो क्रोनिक किडनी डिजीज होने पर उसे ठीक नहीं कर सकते हैं, उसके स्टेज को आगे बढ़ने से रोक सकते हैं। सही डाइट, दवाई और चेकअप से उस पर नजर रखी जा सकती है। सरकार की तरफ से डायलिसिस की सुविधा अब शहरों से लेकर ब्लॉक व गांव तक के हेल्थ सेंटर में खोल दिए गए हैं। इसके अलावा नए-नए मेडिकल कॉलेज खुलने से भी दूरदराज के क्षेत्रों में सुविधाएं बढ़ी हैं।

50 फीसदी कारण डायबिटीज व बीपी ही, स्ट्रेस भी बढ़ा रहा यह बीमारी- डॉ. सुंदर

बेंगलुरु के एस्टर इंस्टीट्यूट ऑफ रिनल ट्रांसप्लांटेशन के प्रोग्राम डायरेक्टर व सीनियर नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. सुंदर शंकरन का कहना है कि भारत में किडनी के मरीजों के बढ़ने के पीछे सबसे बड़ा कारण डायबिटीज- शुगर है। 40 साल पहले भारत में सिर्फ एक फीसदी के आसपास डायबिटीज व शुगर के मरीज थे, लेकिन आज किडनी के मरीजों में 50 फीसदी इन बीमारियों से ग्रसित होते हैं। मेरे आकलन में बढ़ते डायबिटीज के मरीजों के कारण आज किडनी के पेशेंट बढ़ते जा रहे हैं। आज डायलिसिस व ट्रांसप्लांट के लिए आने वाले 50 फीसदी मरीज डायबिटिक होते हैं, जबकि 40 साल पहले यह सिर्फ एक प्रतिशत था। आने वाले समय में इसकी संख्या बढ़ने का अनुमान है। इसके पीछे वेटर्न डाइट, फास्ट फूड, स्मोकिंग और लाइफ स्टाइल ही बड़ा कारण है। 15 साल से कम उम्र के किडनी के मरीजों में यह बीमारी होने के कारण पारिवारिक होता है, फैमिली में किसी को पहले यह बीमारी रही होगी, उससे ही आगे के जनरेशन में यह आता है। इससे ज्यादा उम्र वाले युवा लोगों में किडनी की बीमारी होने के पीछे उनका रहन-सहन व खानपान है। इसके साथ मोटापा बढ़ना भी डायबिटीज होने के साथ किडनी फेलियर का एक कारण माना जाता है। डॉ. सुंदर ने बताया कि स्कूल टाइम से स्मोकिंग की लत, मोटापा के कारण फिजिकल एक्टिविटीज का न होना और फास्ट फूड का क्रेज बढ़ने के साथ स्ट्रेस बढ़ने से कम उम्र में किडनी की समस्या सामने आ रही है। ट्रांसप्लांट की बात करें तो मेरे केस में पांच के बच्चे और सबसे उम्रदराज 85 की उम्र में किया है। अब युवा उम्र के लोग भी डायलिसिस के लिए आ रहे हैं, जिनकी उम्र औसतन 42-45 साल होती है। अगर 100 किडनी के मरीज देख रहे हैं तो 50 फीसदी मरीज युवा ही होते हैं।

किडनी की बीमारी के पीछे एक और कारक है, जिसे शामिल किया जाना चाहिए, वह है नमक का ज्यादा सेवन। इससे भी किडनी के डैमेज होना का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए अगर किडनी या डायबिटीज जैसी बीमारियों से बचना है तो 4एस फॉर्मूला को अपनाना होगा। पहला एस का मतलब शुगर कम, दूसरा एस का मतलब साल्ट कम, तीसरे एस मतलब स्मोकिंग कम और चौथा एस से स्ट्रेस कम.. अगर इसे जीवन में लागू कर लेंगे तो किडनी की बीमारी होने से बचा जा सकता है।

जितनी जल्दी किडनी बीमारी के लक्षण पहचान लें, उतनी रोकने में मदद मिलती है- डॉ. सचदेव

नारायण हॉस्पिटल गुरुग्राम के नेफ्रोलॉजी, हाइपरटेंशन एंड रिनल ट्रांसप्लांटेशन के डायरेक्टर व सीनियर कंसल्टेंट डॉ. सुदीप सिंह सचदेव का कहना है कि लोगों की खाने की आदतें ठीक नहीं होना, अनियमित जीवनशैली के होने जैसे कारण के अलावा डायबिटीज व शुगर के मामले बढ़ने से किडनी के मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। लाइफ स्टाइल व फास्ट फूड का बड़ा रोल है। इससे बचना होगा। अब यह जरूर कह सकते हैं कि जिस तरह के किडनी के मरीज आ रहे हैं, यह बीमारी अब युवाओं वाली हो गई है। यह बीमारी 60 प्लस के आसपास के लोगों में मिलती थी, अब यह 10 साल पीछे हो गई है, 45 उम्र वालों में भी यह केसेज सामने आ रहे हैं। 100 मरीजों में बात करें तो 35-40 फीसदी मरीज युवा वर्ग के ही सामने आ रहे हैं और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ब्लड प्रेशर, शुगर के साथ किडनी को खराब करने के लिए पेन किलर भी कारण है। किडनी को डैमेज करने के लिए मल्टी फैक्टर हैं, जिसे लेकर लोगों को सचेत या जागरूक रहना होगा। अगर लोगों में किडनी की बीमारी को लेकर जागरूकता या लक्षण की बात है तो कई तरह के संकेत दिखाई देते हैं, पेशेंट को आंखों के आसपास सूजन आती है, पैरों में सूजन, भूख कम लगती है, सांस फूलने लगती है, ड्राई स्किन होती है और हीमोग्लोबिन की कमी होने के साथ ब्लड प्रेशर बढ़ता है। यह जरूर है कि किडनी की बीमारी को लेकर इन लक्षणों की पहचान करना मुश्किल होता है, लेकिन समय-समय पर जांच करने से पहचान सकते हैं। किडनी की बीमारी बढ़ने व अपर स्टेज के बाद ही लोग आते हैं। किडनी की बीमारी से जुड़े हुए प्रारंभिक लक्षणों को लेकर लोग पहचान नहीं कर पाते हैं, उसे लेकर कन्फ्यूज रहते हैं, उसे अन्य बीमारी के कारण मानते हैं। खून की कमी को लोग कमजोरी मानते हैं, हाईपरटेंशन और ब्लड प्रेशर भी किडनी की बीमारी से जुड़े हुए हैं। फैमिली हिस्ट्री है, शुगर है या ब्लड प्रेशर है, उम्र 60 से ज्यादा है, हार्ट डिजीज है, इनमें से कोई भी एक कारक है तो तो साल में एक बार अपना रुटीन चेकअप जरूर कराएं। किडनी फंक्शन टेस्ट व यूरीन टेस्ट जरूर कराएं। जितनी जल्दी किडनी की बीमारी की पहचान कर लेंगे, उतना ही सही होगा और इसे रोकने में मदद मिल पाएगी।

15 साल के बेटे को किडनी ट्रांसप्लांट की, अब हजारों मरीजों का सहारा बनी वसुंधरा, हर महीने 100 पेशेंट की करती हैं आर्थिक मदद

मुंबई की वसुंधरा राघवन कोई प्रोफेशनल डॉक्टर या नेफ्रोलॉजिस्ट नहीं है, लेकिन वे किडनी के मरीजों के लिए उससे कम भी नहीं हैं। अपने 15 साल के बेटे को 1999 में ट्रांसप्लांट के जरिए किडनी देने वाली वसुंधरा आज हजारों किडनी मरीजों व उनके परिवारवालों के लिए उम्मीद, पहल और मदद का पर्याय हैं। वसुंधरा ने जागरण प्राइम के साथ बातचीत में बताया कि उनका बेटा 15 साल को होने के बाद भी बेड वेटिंग करता था। इस समस्या को लेकर वे 10 साल की उम्र में भी डॉक्टर के पास गईं, लेकिन उस दौरान किडनी आशंका को लेकर किसी तरह की जांच नहीं की गई न ही कोई जानकारी दी गई। बच्चे के 15 साल होने के दौरान जांच में पता चला कि उसकी किडनी फेल हो गई है। किडनी रोग के बड़े डॉक्टरों को दिखाया तो उन्होंने कहा कि अगर चार-पांच साल पहले आते तो किडनी डैमेज नहीं होती, लेकिन उस दौरान इसके बारे में पता ही नहीं चला। बेटे के 10वीं पढ़ने के दौरान 1999 में उन्होंने उसे किडनी ट्रांसप्लांट की। किडनी ट्रांसप्लांट होने के कुछ समय पहले ही उन्हें ब्रेस्ट कैंसर हो गया था, जिसका लंबा इलाज चला और ठीक होने के बाद वे अपने बेटे को किडनी दे पाईं। वसुंधरा ने बताया कि इसके बाद मुझे लगा कि किडनी बीमारी को लेकर जो परेशानी उठानी पड़ती है, बेड विटिंग को लेकर लोग उसे नजरअंदाज कर देते हैं, उन्हें किडनी की बीमारी को लेकर जागरुकता नहीं है, इस पर एक बुक लिखने का सोची। इसके बाद मैंने किताब लिखी और अपनी आप बीती को बताया। किताब लिखने के पहले मैंने किडनी बीमारी को लेकर खूब रिसर्च किया और जानकारी जुटाई।

इसके बाद किडनी मरीजों की मदद, जागरुकता व उनकी बात शेयर करने के लिए एक प्लेटफॉर्म फेसबुक पर द किडनी वॉरियर्स पेज बनाया, इसके बाद अपने पति श्रीनिवास राघवन के साथ मिलकर किडनी वॉरियर्स फाउंडेशन की स्थापना की। अब किडनी मरीजों की मदद और जागरुकता के लिए भारत का यह सबसे बड़ा किडनी फाउंडेशन है, जो स्वतंत्र बॉडी है। यह किसी डॉक्टर या हॉस्पिटल के अधीन नहीं है, यह पूरी तरह से मरीजों के लिए बनाया गया है। उन्हें सही जानकारी मिल पाए, उन्हें गाइड हो पाए और वे अपनी परेशानी को सामने रख पाएं। किडनी के मरीजों की डाइट कैसी होनी चाहिए, डायलिसिस के दौरान पानी व खानपान कैसे रखें। इसे लेकर बताया जाता है। इस बीमारी में तकलीफ के साथ पैसा बहुत खर्च होता है। फाउंडेशन के जरिए लोगों को मदद करने के लिए पति ने दुबई जाकर नौकरी शुरू की और वहां टैक्स फ्री है, इससे लोगों की मदद कर रहे हैं। केंद्र सरकार व मोदी जी के भी पत्र लिखा है, किडनी से जुड़े मरीजों की समस्याओं को सामने रखती हूं, उनकी तरफ से भी जवाब आता है। इस फाउंडेशन के माध्यम से किडनी के बड़े डॉक्टर जुड़ते हैं, अलग-अलग जगहों में सेमिनार व वर्कशॉप किया जाता है। मैं व मेरे पति हर महीने 1200-1200 रुपए किडनी पीड़ित 100 जरूरतमंद मरीजों को देते हैं, छह महीने तक उन मरीजों को देते हैं, इसके बाद नए 100 मरीजों को चुनते हैं और प्रति महीने 1200-1200 रुपए की आर्थिक मदद देते हैं। किडनी डायलिसिस की सुविधा बढ़ाने को लेकर सरकार से लगातार मांग करते रहे, अब कई सरकारी अस्पतालों व छोटे जिलों- कस्बों में भी इसकी सुविधा हो गई है। केंद्र सरकार के अब मुझे नेशनल कमेटी ऑफ डायलिसिस में सदस्य के रूप में जोड़ा है। अब एक ही मकसद है कि किडनी पीड़ितों को ज्यादा से ज्यादा सुविधा मिले, सरकार की तरफ अस्पतालों में इसकी जांच व दवा गांव स्तर तक उपलब्ध कराएं। किडनी बीमारी की जागरुकता के लिए अगर किसी की फैमिली हिस्ट्री है, हार्ट, डायबिटीज, बीपी के मरीज हैं तो एक बार फुल बॉडी चेकअप जरूर कराएं।