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    न्यायपालिका को सांप्रदायिकरण से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका, तुरंत सुनवाई की मांग

    Updated: Mon, 15 Dec 2025 11:24 PM (IST)

    मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जीआर स्वामीनाथन के हालिया फैसलों से उपजे विवाद के बाद, न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में ए ...और पढ़ें

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    न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बचाने हेतु याचिका दायर

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मद्रास हाई कोर्ट के न्यायाधीश जीआर स्वामीनाथन के हाल के फैसलों से उभरे विवाद के बाद न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बचाने और न्यायिक आदेशों को डराने-धमकाने और सांप्रदायिक बनाने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक जनहित याचिका दायर की गई और तुरंत निर्देश देने की मांग की गई है।

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    वकील जीएस मणि ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करते हुए कहा कि ये याचिका किसी एक जज का बचाव करने के लिए नहीं, बल्कि न्यायपालिका की संस्था की रक्षा करने, कानून का शासन सुनिश्चित करने, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को रोकने और देश भर में संवैधानिक नियमों को समान रूप से लागू करने के लिए दायर की गई है।

    न्यायमूर्ति स्वामिनाथन के तिरुपरनकुंद्रम दीपम मामले से जुड़े आदेशों के बाद पैदा हुए विवाद का उल्लेख करते हुए याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि राजनीतिक बयानों, विरोध प्रदर्शनों, वकीलों के प्रदर्शन और सोशल मीडिया अभियानों सहित व्यापक जन प्रतिक्रियाएं संवैधानिक रूप से स्वीकार्य आलोचना की सीमा पार कर चुकी हैं।

    उनके अनुसार, यह स्थिति अब न्यायपालिका को बदनाम करने, न्यायिक कार्यों को सांप्रदायिक रंग देने और न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप के दायरे में प्रवेश कर चुकी है।याचिका में कहा गया है कि न्यायाधीशों के फैसलों को लेकर उन पर सड़क पर प्रदर्शन या आनलाइन गालियों के जरिए दबाव नहीं बनाया जा सकता।

    इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि किसी न्यायिक फैसले के खिलाफ संविधान में मान्य एकमात्र रास्ता अपील, पुनर्विचार या अन्य कानूनी प्रक्रियाएं ही हैं।जनहित याचिका में चेतावनी दी गई है कि अगर मौजूदा न्यायाधीशों के खिलाफ ऐसे अभियानों को अनुमति दी गई, तो इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर नकारात्मक असर पड़ेगा और न्यायाधीश अपने कर्तव्यों का निडर होकर निर्वहन करने से हतोत्साहित हो सकते हैं।

    याचिका में कहा गया है कि किसी न्यायिक फैसले को धार्मिक भावना से प्रेरित बताकर पेश करना संवैधानिक अदालतों में लोगों के भरोसे को कमजोर करता है और भीड़ के दबाव से न्याय को बढ़ावा देता है। इससे तमिलनाडु में कानून-व्यवस्था और सांप्रदायिक सौहार्द को तत्काल और गंभीर खतरा पैदा होता है।

    (न्यूज एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ)