Plastic Pollution: हर 30 सेकेंड में एक इंसान की जान ले रहा है प्लास्टिक, कई प्रकार का प्रदूषण बढ़ा रहा खतरा
प्लास्टिक प्रति 30 सेकेंड में एक इंसान की जान ले रहा है। कई प्रकार का प्रदूषण जलवायु परिवर्तन के खतरों को बढ़ा रहा है। इसमें प्लास्टिक प्रदूषण का भी अहम योगदान है। एक तरफ प्लास्टिक ने हमारे जीवन को काफी आसान बनाया है। वहीं दूसरी तरफ प्लास्टिक आज के समय धरती के लिए एक बड़ी चुनौती भी बन गया है।

जागरण टीम, नई दिल्ली। कई प्रकार का प्रदूषण जलवायु परिवर्तन के खतरों को बढ़ा रहा है। इसमें प्लास्टिक प्रदूषण का भी अहम योगदान है। एक तरफ प्लास्टिक ने हमारे जीवन को काफी आसान बनाया है।
प्लास्टिक आज धरती के लिए एक बड़ी चुनौती
वहीं दूसरी तरफ प्लास्टिक आज के समय धरती के लिए एक बड़ी चुनौती भी बन गया है। सस्ता और टिकाऊ होने की वजह से प्लास्टिक का उपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है। इस कारण हर साल लाखों टन का प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, जो कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है।
प्लास्टिक कचरा नदियां, समुद्र, वायु हर जगह पर फैल चुका है
प्लास्टिक कचरा नदियां, समुद्र, वायु हर जगह पर फैल चुका है। इस कारण प्लास्टिक कचरे को वैश्विक आपदा की संज्ञा देना गलत नहीं होगा। ऐसे में इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर प्लास्टिक के बढ़ते संकट को समझना और उसका समाधान करने की दिशा में ठोस कदम उठाना जरूरी हो गया है।
70 वर्षों के दौरान प्लास्टिक का उत्पादन तेजी से बढ़ा
45 करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक का उत्पादन पिछले 70 वर्षों के दौरान प्लास्टिक का उत्पादन तेजी से बढ़ा है। 1950 में दुनिया सिर्फ 20 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन करती थी। अब प्लास्टिक का उत्पादन बढ़ कर 45 करोड़ टन से अधिक हो गया है।
क्या है प्लास्टिक प्रदूषण
प्लास्टिक से बनी चीजें जैसे बोतल, पॉलीथीन, खिलौने आदि सही ढंग से नष्ट या रिसाइकल नहीं होते हैं और मिट्टी, नदियों, समुद्र में मिल जाते हैं तो इसे ही प्लास्टिक प्रदूषण कहा जाता है। प्लास्टिक सैकड़ों वर्षों तक पर्यावरण में बने रहते हैं। समय के साथ-साथ प्लास्टिक के ये टुकड़े टूटकर माइक्रोप्लास्टिक का रूप ले लेते हैं।
माइक्रोप्लास्टिक का बढ़ रहा खतरा
माइक्रोप्लास्टिक हवा, पानी और भोजन तक में मिल चुके हैं। माइक्रोप्लास्टिक जानवर, इंसानों के शरीर में पहुंच रहे हैं, जिसकी वजह से कैंसर जैसी कई तरह की खतरनाक बीमारियां हो रहीं हैं। रिसर्च में पता चला है कि औसतन एक इंसान हर हफ्ते पांच ग्राम माइक्रोप्लास्टिक निगल रहा है। यह हमारे हार्मोन सिस्टम, लिवर, ब्रेन फंक्शन एवं शरीर की कई प्रणालियों को प्रभावित कर सकता है।
समुद्री जीवों को कर रहा प्रभावित
यही नहीं मछली, कछुए, व्हेल और कई समुद्री पक्षी इन माइक्रोप्लास्टिक को भोजन समझकर खा रहे हैं। ये माइक्रोप्लास्टिक उनके शरीर के भीतर जहरीले रसायन फैला रहे हैं, जिसकी वजह से उनकी प्रजनन क्षमता घट रही है।
समुद्र में पहुंच रहा है 0.5 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा
प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, 35.3 करोड़ टन सालाना 23 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन सही तरीके से नहीं होता है। बाकी कचरे को जमीन में दबा दिया जाता है, रीसाइकल किया जाता है या जला कर राख में बदल दिया जाता है।
बिना रिसाइकल के और बिखरा हुआ प्लास्टिक कचरा, 8.2 करोड़ टन पर्यावरण में पहुंच जाता है, 1.9 करोड़ टन नदियों और तटों पर पहुंचता है, 60 लाख टन समुद्र में पहुंचता है, 17 लाख टन करीब 0.5 प्रतिशत वैश्विक प्लास्टिक कचरा पहुंच जाता है
प्लास्टिक से जुड़े अहम तथ्य
- 99 प्रतिशत प्लास्टिक जीवाश्म ईंधन से बनाया जाता है
- हर 30 सेकेंड में प्लास्टिक और कचरे से होने वाली बीमारियों के एक व्यक्ति की मौत हो जाती है
- लाखों जंगली जानवरों की मौत हो जाती है प्रति वर्ष प्लास्टिक के कारण पर्यावरण पर प्रभाव
- एक रिसर्च के अनुसार एक बार पर्यावरण में जाने के बाद प्लास्टिक प्रदूषण लंबे समय तक बना रहता है। पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर इसे विघटित होने में 100 से 1,000 वर्ष तक लग सकते हैँ।
- 1500 प्रजातियां (समुद्र और धरती पर रहने वाले जानवरों की) प्लास्टिक निगलने के लिए जानी जाती हैं
- कुल तेल खपत का 20 प्रतिशत ग्लोबल प्लास्टिक इंडस्ट्री में होगा और 15 प्रतिशत वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार होगी
प्लास्टिक इंडस्ट्री 2050 तक वैश्विक प्लास्टिक संधि पर नहीं हो पाया समझौता
2024 में दक्षिण कोरिया के बुसान में प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए वैश्विक संयुक्त राष्ट्र संधि के लिए सरकारें एक समझौते पर पहुंचने में विफल रहीं। इसकी वजह यह रही क्योंकि तेल उत्पादक देशों ने प्लास्टिक के उत्पादन को सीमित करने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
2022 में संयुक्त राष्ट्र की एक संधि पर बातचीत शुरू हुई थी, जिसका उद्देश्य 2024 के अंत तक प्लास्टिक प्रदूषण कम करने के लिए दुनिया के पहले कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते को अंतिम रूप देना था।
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