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भरण पोषण और गुजारा भत्ता के मामलों में सभी नागरिकों के लिए हो एक जैसी व्यवस्था, सुप्रीम कोर्ट से दखल देने की मांग

सुप्रीम कोर्ट से भरण पोषण और गुजारा भत्ता के मामलों में सभी नागरिकों के लिए समान आधारों वाली व्यवस्था बनाए जाने की गुजारिश की गई है। जनहित याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार नागरिकों के लिए गुजारा भत्ता के समान आधार मुहैया कराने में विफल रही है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 03 Oct 2020 05:13 PM (IST)Updated: Sun, 04 Oct 2020 01:45 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट से गुजारा भत्ता के मामलों में सभी नागरिकों के लिए समान व्यवस्था बनाने की मांग की गई है।

नई दिल्‍ली, पीटीआइ। एक जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट से भरण पोषण और गुजारा भत्ता के मामलों में सभी नागरिकों के लिए समान आधारों वाली व्यवस्था बनाए जाने की गुजारिश की गई है। याचिका में कहा गया है कि व्यवस्था लैंगिंक एवं धार्मिक रूप से तटस्थ होने के साथ ही संविधान एवं अंतरराष्ट्रीय संधियों के अनुरूप होनी चाहिए। भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से यह जनहित याचिका दाखिल की गई है।

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याचिका में सुप्रीम कोर्ट से यह भी गुजारिश की गई है कि वह केंद्रीय गृह एवं कानून मंत्रालयों को निर्देश दे कि वे भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता के आधारों में मौजूदा विसंगतियों को दूर करने के लिए यथोचित कदम उठाएं। नई व्‍यवस्‍था धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव से परे होनी चाहिए और सभी नागरिकों के लिए एक जैसी होनी चाहिए। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार नागरिकों के लिए गुजारा भत्ता के समान आधार मुहैया कराने में विफल रही है।

याचिका में दलील दी गई है कि भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता आजीविका का इकलौता जरिया होता है। हिंदू, बौद्ध, सिख एवं जैन समुदाय के लोगों पर हिंदू विवाह कानून 1955 और हिंदू दत्तक एवं भरण पोषण कानून 1956 लागू होता है। मुसलमानों के मामलों पर मुस्लिम महिला कानून 1986 लागू होता है। ईसाई भारतीय तलाक कानून 1869 और पारसी लोग पारसी विवाह एवं तलाक कानून 1936 के अधीन आते हैं। इनमें से कोई भी कानून लैंगिक रूप से तटस्थ नहीं है।

ऐसे में धर्म, जाति, नस्ल, लिंग के आधार पर भेदभाव संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार अधिकार पर सीधा हमला है। याचिका में भरण पोषण एवं गुजारा भत्ता के कथि‍त भेदभावपूर्ण आधारों को संविधान के अनुच्छेद-14, 15 और 21 का उल्लंघन करार दिए जाने की मांग की गई है। याचिका मांग की गई है कि शीर्ष अदालत विधि आयोग को निर्देश दे कि वह घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय कानूनों की समीक्षा करे और गुजारा भत्ता के समान आधारों पर तीन महीने में रिपोर्ट तैयार करे। 


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