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    Supreme Court में विचाराधीन कैदियों की पेशी VC के जरिए कराने को लेकर याचिका, अगले हफ्ते होगी सुनवाई

    देशभर की निचली अदालतों में सुरक्षा चिंताओं से संबंधित उस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 11 अक्टूबर को सुनवाई करेगा जिसमें कहा गया है कि विचाराधीन कैदियों को सुनवाई की प्रत्येक तिथि पर नियमित रूप से अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश नहीं दिया जाना चाहिए।

    By AgencyEdited By: Amit SinghUpdated: Fri, 07 Oct 2022 04:55 AM (IST)
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    वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए पेशी को लेकर याचिका

    नई दिल्ली, प्रेट्र: देशभर की निचली अदालतों में सुरक्षा चिंताओं से संबंधित उस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 11 अक्टूबर को सुनवाई करेगा, जिसमें कहा गया है कि विचाराधीन कैदियों को सुनवाई की प्रत्येक तिथि पर नियमित रूप से अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश नहीं दिया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई सूची के अनुसार, याचिका मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

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    वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए हो सकती है पेशी

    अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि यदि निचली अदालत विचाराधीन कैदी की निजी तौर पर पेशी को उपयुक्त समझती है तो उसके लिए जेलों से वीडियो-कान्फ्रेंसिंग से पेशी के आदेश दिए जा सकते हैं, खासकर गैंगस्टर मामले में, ताकि सार्वजनिक सुरक्षा और न्यायिक अधिकारियों की सुरक्षा प्रभावित न हो और अभियुक्तों के अधिकार संतुलित रहें। याचिका में निचली अदालतों में कई घटनाओं का उल्लेख किया गया है, जिसमें दिल्ली की एक जिला अदालत में पिछले साल सितंबर की गोलीबारी की घटना भी शामिल है। इस घटना में जेल में बंद एक गैंगस्टर सहित तीन लोग मारे गए थे।

    विचाराधीन कैदियों के भागने के कई उदाहरण

    याचिका में कहा गया है, 'इसके अलावा, भारत में सभी निचली अदालतों में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां एक विचाराधीन कैदी को निचली अदालत में पेश करने के क्रम में या तो जन सुरक्षा जोखिम में डाल दी गई या उक्त विचाराधीन कैदी पुलिस हिरासत से फरार हो गया।' याचिका में सीआरपीसी के विभिन्न प्राविधानों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि ये प्रविधान संबंधित अदालत को सामान्य सुनवाई के दौरान जेल से लाए जाने वाले विचाराधीन कैदियों को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट देने की शक्ति प्रदान करते हैं। याचिका में कहा गया है, 'पूरे भारत में नियमित रूप से विचाराधीन कैदियों को प्रत्येक तिथि पर जेलों से संबंधित निचली अदालतों में पेश किया जाता है, जिससे न केवल सरकारी खजाने पर अनावश्यक बोझ बढ़ता है, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा और संबंधित विचाराधीन कैदी की सुरक्षा भी खतरे में पड़ती है।'