कम्यूटेशन चुननेवाले पूर्व जजों को पूरी पेंशन बहाली अवधि में बदलाव के लिए याचिका, केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी
कम्यूटेशन चुननेवाले पूर्व जजों ने पूरी पेंशन बहाल करने की अवधि में बदलाव की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि कम्यूटेड रकम की वसूली पूरी होने के तुरंत बाद पूर्ण पेंशन जारी करने का आदेश दिया जाए। मौजूदा नियमों के मुताबिक कम्यूटेशन के लिए 15 वर्ष का समय फिक्स है जबकि वसूली इस अवधि से काफी हो जाती है।

पीटीआई, नई दिल्ली। कम्यूटेशन चुननेवाले पूर्व जजों ने पूरी पेंशन बहाल करने की अवधि में बदलाव की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि कम्यूटेड रकम की वसूली पूरी होने के तुरंत बाद पूर्ण पेंशन जारी करने का आदेश दिया जाए।
कम्यूटेशन के लिए 15 वर्ष का समय फिक्स है
मौजूदा नियमों के मुताबिक कम्यूटेशन के लिए 15 वर्ष का समय फिक्स है, जबकि वसूली इस अवधि से काफी हो जाती है। लेकिन कटौती 15 वर्षों तक जारी रहती है। इससे रिटायर न्यायिक अधिकारियों को नुकसान हो रहा है।
बता दें कि कम्यूटेशन का अर्थ है अपनी पेंशन का कुछ हिस्सा एकमुश्त भुगतान के रूप में प्राप्त करना, जिससे मासिक पेंशन की राशि कम हो जाती है, लेकिन एक निश्चित अवधि के बाद पूरी पेंशन फिर से बहाल कर दी जाती है। यह एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है जो सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों को अपनी पेंशन का एक हिस्सा तुरंत लेने का अवसर देती है।
केंद्र व राज्यों को नोटिस जारी किया
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और एनवी अंजारिया की पीठ ने अखिल भारतीय सेवानिवृत्त न्यायाधीश संघ (एयरजा) की तरफ से वकील गोपाल झा की दायर याचिका पर संज्ञान लिया और केंद्र व राज्यों को नोटिस जारी किया।
संघ के अध्यक्ष पूर्व न्यायमूर्ति एन सुकुमारन ने कहा कि जिन पेंशनभोगियों ने कम्यूटेशन का विकल्प चुना, उन्हें सेवानिवृत्त होने पर एक ही बार में इच्छित राशि मिल गई, जिससे उन्होंने तात्कालिक जरूरतें, जैसे आवास, बच्चों की पढ़ाई या शादी के खर्चे निपटाए।
सरकार उनकी पेंशन से किस्तों में कटौती करके उक्त राशि वसूलती है, जैसे कर्ज का ईएमआइ के माध्यम से पुनर्भुगतान होता है। संघ की तरफ से उदाहरण दिया गया कि जे7 स्तर का न्यायिक अधिकारी सेवानिवृत्त होने पर अपनी पेंशन के एक हिस्से को कम्यूट कराकर लगभग 51.94 लाख रुपये एकमुश्त रकम प्राप्त करता है।
आठ प्रतिशत की सालाना ब्याज दर के साथ उसे कुल 69.13 लाख रुपये लौटाने होते हैं। लेकिन 15 साल की अवधि में वह कुल 95.08 लाख रुपये का भुगतान कर चुका होता है।
इस तरह उससे अतिरिक्त 26 लाख रुपये वसूले जाते हैं। याचिका में द्वितीय न्यायिक वेतन आयोग की रिपोर्ट का उल्लेख भी किया गया, जिसमें पूर्ण पेंशन जारी करने के लिए 12 की अवधि काफी बताई गई है।
चेक और डिमांड नोटिस में अंकित राशि में अंतर केस के लिए घातक : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि चेक पर लिखी राशि और उसके डिसआनर होने पर जारी डिमांड नोटिस पर अंकित राशि के बीच का अंतर नेगोशिएबिल इंस्ट्रूमेंट (एनआइ) एक्ट के तहत किसी भी केस के लिए घातक है।
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने कहा कि उल्लिखित राशि में अंतर होने पर एनआइ एक्ट की धारा-138 के तहत सभी कार्यवाही कानूनी रूप से गलत मानी जाएंगी। धारा-138 खाते में अपर्याप्त धनराशि आदि के कारण चेक के डिसऑनर होने से संबंधित है।
शीर्ष अदालत ने कहा, वैधानिक नोटिस में मांग और डिसआनर चेक की वास्तविक राशि का बराबर होना अनिवार्य है। पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों पर अपना फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने एनआइ एक्ट के तहत एक आपराधिक शिकायत को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि नोटिस में उल्लिखित राशि चेक की राशि के बराबर नहीं थी।
शिकायत एक करोड़ रुपये के चेक डिसऑनर से संबंधित थी
पीठ ने कहा कि शिकायत एक करोड़ रुपये के चेक डिसऑनर से संबंधित थी। बाद में दो नोटिसों में शिकायतकर्ता ने राशि दो करोड़ रुपये बताई। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क दिया गया कि नोटिस में अलग राशि का उल्लेख करने में शिकायतकर्ता की ओर से मुद्रण की त्रुटि हो गई थी।
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