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    महाराष्ट्र में UAPA की वैधता को चुनौती वाली याचिका खारिज, बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा- इसे राष्ट्रपति की मंजूरी

    By Agency Edited By: Jeet Kumar
    Updated: Fri, 18 Jul 2025 07:00 AM (IST)

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश एएस गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने कहा कि यूएपीए अपने वर्तमान स्वरूप में संवैधानिक रूप से वैध है। अत इसके प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग अस्वीकार्य है।

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    महाराष्ट्र में UAPA की वैधता को चुनौती वाली याचिका खारिज (फाइल फोटो)

    पीटीआई, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है।

    मुख्य न्यायाधीश एएस गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने कहा कि यूएपीए अपने वर्तमान स्वरूप में संवैधानिक रूप से वैध है। अत: इसके प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग अस्वीकार्य है।

    यह याचिका अनिल बाबूराव बैले ने 2021 में दायर की थी

    यह याचिका अनिल बाबूराव बैले ने 2021 में दायर की थी, जिन्हें वर्ष 2020 में एल्गार परिषद मामले में एनआइए द्वारा नोटिस भेजा गया था।

    बैले ने अपनी याचिका में यूएपीए के साथ ही भारतीय दंड संहिता की अब निलंबित की जा चुकी धारा 124ए (देशद्रोह) को भी असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी।

    यूएपीए धारा को रद करने की मांग की

    साथ ही उन्होंने 10 जुलाई, 2020 को जारी नोटिस को रद करने की भी मांग की थी। याचिका में दावा किया गया था कि यूएपीए के प्रावधान कार्यपालिका को यह अधिकार देते हैं कि वह किसी व्यक्ति या संगठन को गैरकानूनी घोषित कर दे, जबकि कानून में इस गैरकानूनी गतिविधि की स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है।

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    अनिल बाबूराव बैले ने याचिका में दिया था यह तर्क

    बैले ने यह भी तर्क दिया कि यूएपीए में वर्ष 2001 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को अपनाने के लिए किया गया संशोधन सरकार को यह अधिकार देता है कि वह किसी भारतीय नागरिक या संगठन को आतंकवादी घोषित कर सके, जो अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का समर्थन करता हो।

    याचिका में कहा गया, ‘‘भारत का संविधान कार्यपालिका को किसी संगठन को अवैध घोषित करने का पूर्णाधिकार नहीं देता और संसद को भी ऐसा असीमित अधिकार नहीं दिया जा सकता।’’

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