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    चुनावी साल में छत्तीसगढ़ सरकार के सामने पत्थलगड़ी का संकट

    By Manish NegiEdited By:
    Updated: Thu, 12 Jul 2018 08:16 AM (IST)

    पत्थलगड़ी के नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में सर्व आदिवासी समाज सड़क पर उतरा और एलान किया कि अब आदिवासी बहुल हर गांव में पत्थलगड़ी की जाएगी।

    चुनावी साल में छत्तीसगढ़ सरकार के सामने पत्थलगड़ी का संकट

    अनिल मिश्रा, रायपुर। छत्तीसगढ़ में चार महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में प्रदेश के आदिवासी इलाकों में शुरू हुई पत्थलगड़ी की मुहिम ने सरकार के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है। जशपुर के दर्जन भर गांवों से शुरू हुआ पत्थलगड़ी अभियान अब और जोर पकड़ रहा है। पत्थलगड़ी के नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में सर्व आदिवासी समाज सड़क पर उतरा और एलान किया कि अब आदिवासी बहुल हर गांव में पत्थलगड़ी की जाएगी।

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    छत्तीसगढ़ में पत्थलगड़ी आंदोलन झारखंड के रास्ते पहुंचा है। 22 अप्रैल को ओएनजीसी के पूर्व अधिकारी जोसेफ तिग्गा और उनके सहयोगी पूर्व आइएएस एचपी किंडो ने जशपुर जिले के बगीचा इलाके के बछरांव गांव में आदिवासियों की एक सभा करके पत्थलगड़ी आंदोलन की शुरूआत की थी। यह इलाका झारखंड की सीमा से सटा हुआ है। पत्थलगड़ी के आयोजनों में भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा केंद्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय भी शामिल हुए। हालांकि भाजपा इसे धर्मांतरित आदिवासियों की साजिश बताती रही है।

    बगीचा ब्लॉक के गांवों में एक के बाद एक ग्राम सभाओं का आयोजन होने लगा। हर आयोजन के बाद गांव की सीमा पर पत्थर गाड़े गए जिससे कई जगहों पर तनाव की स्थिति बनी। तब सरकार हरकत में आई और पत्थलगड़ी का नेतृत्व करने वाले जोसेफ तिग्गा तथा एचपी किंडो समेत आठ आदिवासी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इन पर देशद्रोह जैसी धाराएं लगाई गईं। इसी बीच जशपुर के पूर्व सांसद दिलीप सिंह जूदेव के बेटे युद्धवीर सिंह ने पत्थलगड़ी के खिलाफ सद्भावना यात्रा का आयोजन किया। इस आयोजन में केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय और भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेता भी शामिल हुए। रैली के दौरान पत्थलगड़ी के पत्थर तोड़ दिए गए जिससे माहौल और खराब हो गया।

    सर्व आदिवासी समाज ने जून में जशपुर जिले के कुनकुरी में बड़ा सम्मेलन कर सरकार के विरूद्ध बिगुल फूंक दिया। आदिवासी नेताओं की निशर्त रिहाई की मांग की गई। अब दोनों आदिवासी नेताओं की रिहाई तो हो गई है लेकिन पत्थलगड़ी का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। आदिवासी समाज ने चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा भी कर दी है। 

    पुलिस से हुई झड़प के बाद हरकत में आई सरकार

    28 अप्रैल को बगीचा इलाके के नारायणपुर थाना क्षेत्र के बठूंगा गांव में पत्थलगड़ी की सभा के बाद आदिवासियों ने पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों का घेराव किया और उन्हें बंधक बना लिया। पत्थलगड़ी आंदोलन के तहत गांवों में पत्थर गाड़ कर बाहरी लोगों का प्रवेश निषिद्ध करने की सूचना पर प्रशासनिक अधिकारियों का दल वहां पहुंचा था। इस घटना के बाद आठ लोगों की गिरफ्तारी की गई और कई दिनों तक इलाके में तनाव रहा।

    सबसे ऊंची ग्रामसभा

    जिन गांवों में पत्थरगड़ी की गई है वहां गांव की सीमा पर पत्थर गाड़कर उसमें लिखा गया है सबसे ऊंची ग्राम सभा। पत्थर में कहा गया है कि जनजातियों की रूढ़ि और प्रथा को विधि का बल प्राप्त है। यहां विधानसभा या राज्यसभा द्वारा पारित कोई भी कानून सामान्य क्षेत्रों की तरह लागू नहीं होगा। आदिवासी ही देश के असली मालिक हैं। लोकसभा और विधानसभा से ऊंचा स्थान ग्रामसभा का है।

    पत्थलगड़ी को लेकर शुरू हुई राजनीति

    पत्थलगड़ी को लेकर प्रदेश में जमकर राजनीति हो रही है। सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम कहते हैं कि आदिवासी हितों के कई कानून बने लेकिन उनका पालन नहीं हुआ। इससे आदिवासी समाज खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। वहीं विपक्षी कांग्रेस कह रही राज्य सरकार अनुसूचित क्षेत्रों में संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने में असफल रही है इसलिए ऐसे आंदोलन हो रहे हैं। इधर मुख्यमंत्री रमन सिंह इस आंदोलन को असंवैधानिक करार दे चुके हैं।

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