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    पतंजलि की फसल खरीदने की गारंटी के कारण हो रहा किसानों की आय में इजाफा

    Updated: Fri, 13 Jun 2025 04:11 PM (IST)

    पतंजलि ने खेती को प्राकृतिक और लाभदायक बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं जो किसानों और पर्यावरण दोनों के लिए बेहद फायदेमंद हैं। वैदिक कृषि सिद्धांतों पर आधारित पतंजलि केमिकल-फ्री खेती और जैविक खाद के उपयोग को बढ़ावा देता है। किसान सेवा केंद्र के माध्यम से किसानों को जैविक खेती और मिट्टी की जांच की ट्रेनिंग दी जाती है।

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    खेती को टिकाऊ और लाभदायक बनाने के लिए पतंजलि की पहल

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कृषि के लिए सबसे ज़रूरी है अच्छी फसल लेकिन रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग, जलवायु परिवर्तन और मिट्टी की गिरती गुणवत्ता के कारण खेती का भविष्य खतरे में दिखाई देता है। Sustainable agriculture या टिकाऊ खेती आजकल काफी ट्रेंड में है और इसमें कृषि का उज्ज्वल भविष्य भी साफ नजर आता है। ऐसे में पतंजलि ने खेती को प्राकृतिक, टिकाऊ और लाभदायक बनाने के लिए कई अहम कदम उठाये हैं जो न केवल किसानों के हित में हैं बल्कि पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए भी कारगर साबित हो सकते हैं।

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    वैदिक खेती की वापसी

    पतंजलि की खेती का तरीका प्राचीन वैदिक कृषि सिद्धांतों पर आधारित है, जिसमें प्रकृति, मिट्टी और मनुष्य के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया जाता है। इस दिशा में सोच रखते हुए पतंजलि ने केमिकल-फ्री खेती, गोबर की खाद और प्राकृतिक कीटनाशक के उपयोग को बढ़ावा दिया है।

    Journal of Agroecology and Natural Resource Management की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, प्राकृतिक या जैविक खेती से 40 से 50 प्रतिशत पानी की बचत होती है, साथ ही मिट्टी का उपजाऊपन भी लंबे समय तक बना रहता है।

    मिट्टी की सेहत में सुधार

    आपको बता दें कि सालों से होती आ रही रासायनिक खेती या केमिकल्स का उपयोग कर की जाने वाली खेती ने मिट्टी की उर्वरता को काफी कमजोर कर दिया है। उपजाऊपन को सुधारने के लिए पतंजलि अपनी कृषि पहलों के माध्यम से किसानों को जैविक खाद जैसे गोबर और बायो-एंजाइम्स का इस्तेमाल करके मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद कर रहा है।

    Indian Journal of Soil Conservation की एक फील्ड स्टडी बताती है कि पतंजलि की तकनीक अपनाने वाले खेतों में 25 प्रतिशत ज्यादा जैविक तत्व (Organic Carbon) पाए गए, जिससे फसलें सूखे के समय भी बेहतर रहीं।

    किसानों को प्रशिक्षण और सहायता

    पतंजलि ने 'किसान सेवा केंद्र' नाम से कई ट्रेनिंग सेंटर शुरू किए हैं, जहां किसानों को जैविक खेती, कीट नियंत्रण (pest control) और मिट्टी की जांच की जानकारी दी जाती है। इसके अलावा पतंजलि ने देशभर के कई कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि विश्वविद्यालयों से भी साझेदारी की है जिससे किसानों को परंपरागत ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक दोनों की ट्रेनिंग दी जा सके।

    एक और अनूठी पहल जिसने किसानों की परेशानी कम की है वो है बाजार तक सीधी पहुंच और गारंटीड खरीद। चूंकि ऑर्गेनिक फार्मिंग में लागत थोड़ी ज़्यादा आती है जिसकी वजह से उससे उगाई फसलों की कीमत भी ज़्यादा होती है, किसानों को अपने उत्पाद बेचने में थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

    इस मुश्किल को हल करने के लिए पतंजलि जैविक खेती करने वाले किसानों को उनकी फसल की खरीद की पूरी गारंटी देता है। इससे न सिर्फ उन्हें फसल की उचित कीमत मिलती है बल्कि उन्हें मुनाफा भी होता है क्यूंकि इस प्रक्रिया में किसानों को बिचौलियों की जरूरत नहीं पड़ती।

    Journal of Sustainable Rural Development की हाल ही की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पतंजलि से जुड़े किसानों की आमदनी में 30 से 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है।

    आपको बता दें कि पतंजलि की खेती प्रणाली से केवल किसान ही नहीं, बल्कि पर्यावरण को भी फायदा होता है जैसे कि बायोडायवर्सिटी में बढ़त, केमिकल कीटनाशकों के काम इस्तेमाल से जलस्रोतों की सुरक्षा, कम ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन और भूजल स्तर में सुधार।

    पतंजलि की खेती को लेकर पहलें सिर्फ CSR गतिविधि तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह एक ऐसा कृषि मॉडल है जो प्रशिक्षण, वैज्ञानिक रिसर्च और बाजार की मदद से किसानों को आत्मनिर्भर बना रहा है। यह पहल sustainable agriculture या स्थाई खेती को भारत में व्यवहारिक और लाभदायक बना रही है जिसकी वजह से यह सच में खेती के क्षेत्र में गेम-चेंजर साबित हो रही है।