'ऑपरेशन सिंदूर में भाग लेने से अपराध करने की छूट नहीं मिलती', SC ने पत्नी हत्या के आरोपी को लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या के दोषी एक व्यक्ति को आत्मसमर्पण से छूट देने से इनकार कर दिया, जिसने ऑपरेशन सिंदूर में अपनी भागीदारी का हवाला दिया था। जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि सैन्य सेवा घर पर अत्याचार करने की छूट नहीं देती। कोर्ट ने टिप्पणी की कि उसकी शारीरिक फिटनेस का इस्तेमाल अपनी पत्नी की हत्या करने में किया गया। याचिकाकर्ता को जुलाई 2004 में दहेज मौत के लिए दोषी ठहराया गया था।

सुप्रीम कोर्ट। (फाइल फोटो)
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक दोषी को दहेज के लिए अपनी पत्नी की हत्या के मामले में यह कहते हुए आत्मसमर्पण से छूट देने से इनकार कर दिया कि ऑपरेशन सिंदूर में भाग लेने से घर पर अत्याचार करने की छूट नहीं मिलती।
उसने यह दलील दी थी कि वह ऑपरेशन सिंदूर में शामिल रहा और पिछले 20 वर्षों से राष्ट्रीय राइफल्स में ब्लैक कमांडो के तौर पर तैनात है। जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसने उसकी अपील को खारिज कर दिया था और उसकी सजा को बरकरार रखा था।
'आपको अपराध करने की छूट नहीं मिलती'
सर्वोच्च न्यायालय ने प्रारंभ में ही उसे छूट देने में अनिच्छा व्यक्त की। याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील विक्रम चौधरी ने कहा कि वह ऑपरेशन सिंदूर में शामिल था। इस पर पीठ ने कहा, 'इससे आपको घर पर अत्याचार करने से छूट नहीं मिलती। इससे जाहिर होता है कि आप शारीरिक रूप से कितने फिट हैं और अकेले अपनी पत्नी की हत्या कर दी और उसका गला घोंट दिया।'
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता गंभीर अपराध में दोषी ठहराया गया है और छूट देने का यह उपयुक्त मामला नहीं है। उल्लेखनीय है कि अमृतसर की एक ट्रायल कोर्ट ने जुलाई 2004 में याचिकाकर्ता बलजिंदर सिंह को आइपीसी की धारा 304-बी (दहेज मौत) के तहत दोषी ठहराया था।

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