पहले बच्चे के बाद हर बच्चे पर अभिभावकों का 13 प्रतिशत अतिरिक्त होता है खर्च, इन देशों में घट रही जनसंख्या
दो-तीन दशक पहले भारतीय परिवारों में यह सोच पाई जाती थी कि परिवार में जितने ज्यादा हाथ होंगे, उतनी ही ज्यादा कमाई होगी। इसी सोच के चलते लोग औसतन तीन- चार बच्चे पैदा करते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अब परिवार एक या दो बच्चों से अधिक के बारे में सोचने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। वजह है बच्चों को बड़ा करने में आने वाला भारी खर्च।

पहले बच्चे के बाद हर बच्चे पर अभिभावकों का 13 प्रतिशत अतिरक्त होता है खर्च (फाइल फोटो)
जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। दो-तीन दशक पहले भारतीय परिवारों में यह सोच पाई जाती थी कि परिवार में जितने ज्यादा हाथ होंगे, उतनी ही ज्यादा कमाई होगी। इसी सोच के चलते लोग औसतन तीन- चार बच्चे पैदा करते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अब परिवार एक या दो बच्चों से अधिक के बारे में सोचने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। वजह है बच्चों को बड़ा करने में आने वाला भारी खर्च।
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अध्ययन के मुताबिक कम आय वाले परिवार पहले बच्चे के पालन पोषण पर अपनी आय का करीब 17 प्रतिशत खर्च करते हैं और इसके बाद होने वाले प्रति बच्चे पर 13 प्रतिशत खर्च करते हैं।
यही वजह है कि भारत में शिक्षित परिवार कम बच्चे पैदा कर रहे हैं, जिसका नतीजा यह हुआ है कि देश में प्रजनन दर प्रतिस्थापान दर 2.1 पर आ गई है। प्रतिस्थापन दर का मतलब है कि जितने बच्चे पैदा हो रहे हैं, उतने ही लोगों की मौत हो रही है। इसका मतलब है आने वाले समय में हम युवा देश नहीं रह जाएंगे। भविष्य में काम करने के लिए मानव संसाधन की कमी हो सकती है।
इन बच्चों पर आता है ज्यादा खर्च
अध्ययन के अनुसार कम आय वाले परिवार अपनी आय का बड़ा हिस्सा करीब 17 प्रतिशत पहले बच्चे पर इसके बाद होने वाले बच्चे पर आय का 13 प्रतिशत खर्च करते हैं। हालांकि ये परिवार कुल मिला कर बच्चों पर कम रकम खर्च करते हैं। अध्ययन में इस सवाल का जवाब भी जानने का प्रयास किया गया है कि क्या बच्चों की उम्र के हिसाब से उनको बड़ा खर्च में खर्च बदल जाता है।
ताजा शोध से चला है कि छह से 12 वर्ष तक की उम्र के बच्चों की तुलना में कम उम्र के और अधिक उम्र के बच्चों का पालन पोषण पर अधिक लागत आती है। इसका कारण यह है छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। ऐसे में इनके बार बार बीमार होने की संभावना अधिक रहती है। ऐसे में मेडिकल खर्च बढ़ जाता है। वहीं बड़े बच्चों की शिक्षा और दूसरी जरूरत पर ज्यादा खर्च आता है।
2063 से घटने लगेगी भारत की आबादी
भारत में कम बच्चे पैदा करने के मौजूदा ट्रेंड के आधार पर संयुक्त राष्ट्र ने एक अनुमान में कहा है कि 2062 तक भारत की जनसंख्या अपने अधिकतम स्तर पहुंच जाएगी और उस समय देश की आबादी करीब 1.70 अरब होगी। इसी वर्ष करीब 2,22,000 लोग आबादी में जुड़ेंगे। इसके बाद 2063 से देश की आबादी घटने लगेगी और इस इस वर्ष करीब देश की जनसंख्या में करीब 1,15,000 लोग कम हो जाएंगे। 2064 में यह संख्या 4,37,000 और 2065 में संख्या बढ़ कर 7,93,000 हो जाएगी।
दुनिया में बढ़ रहा है कम बच्चे पैदा करने चलन
भारत ही पूरी दुनिया में कम बच्चे पैदा करने का चलन बढ़ रहा है। आस्ट्रेलिया, चीन और जापान और दक्षिण कोरिया में जनसंख्या कम हो रही है। आस्ट्रेलिया में प्रजनन दर घट कर रिकार्ड निचले स्तर 1.5 पर आ गई है। इसका मतलब है कि वहां एक महिला औसतन 1.5 बच्चे पैदा कर रही है।
यूरोप पहले से ही जनसंख्या में गिरावट का सामना कर रहा है
चीन और जापान में युवा आर्थिक दबाव से बचने के लिए शादी से परहेज कर रहे हैं। जापान में युवाओं की आबादी कम होने की वजह से वहां काम करने वालों की कमी हो गई है। कई संस्थाओं का अनुमान है कि दक्षिण कोरिया और जापान ने अगर जनसंख्या बढ़ाने के उपाय नहीं किए तो 21 वीं सदी के अंत तक इन देशों का अस्तित्व खत्म हो सकता है। यूरोप पहले से ही जनसंख्या में गिरावट का सामना कर रहा है।

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