स्कन्द विवेक धर, नई दिल्ली। राजस्थान के दौसा के रहने वाले शिवलाल साल 2018 से शिक्षक भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। 2020 में जब भर्ती की घोषणा हुई तो उम्मीद जगी कि उनकी बेरोजगारी जल्द दूर हो जाएगी। सितंबर 2021 में जब वो परीक्षा दे ही रहे थे, तब पता चला कि परीक्षा के पेपर लीक हो चुके हैं। इसके साथ ही वह परीक्षा रद्द कर दी गई। शिवलाल आज भी नौकरी का इंतजार कर रहे हैं और देश में पेपर लीक का शिकार होने वाले वे अकेले नहीं हैं। बीते सात वर्षों में देश में 70 से अधिक पेपर लीक और परीक्षा में धोखाधड़ी के मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें डेढ़ करोड़ परीक्षार्थी प्रभावित हुए हैं।

हालांकि, इतनी विकराल समस्या होने के बाद भी हमारे दो-तिहाई राज्य नकल रोधी कानून बनाने की जहमत नहीं उठा रहे हैं। सिर्फ तीन राज्यों उत्तराखंड, गुजरात और राजस्थान ने पेपर लीक की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कानून बनाए हैं। इन तीनों राज्यों में एक साल के भीतर ये कानून बने हैं। जबकि सात अन्य राज्यों छत्तीसगढ़ (2008), झारखंड (2001), यूपी (1998), आंध्र प्रदेश और तेलंगाना (1997), ओडिशा (1988) और महाराष्ट्र (1982) में पुराने नकल रोधी कानून हैं, जो अपेक्षाकृत नरम हैं। उदाहरण के लिए तीनों नए कानून जहां अपराधियों के लिए 10 साल कैद से आजीवन कारावास और एक करोड़ से 10 करोड़ रुपए तक जुर्माने का प्रावधान करते हैं, वहीं पुराने कानून में एक से 7 साल तक सजा और चंद हजार रुपयों के जुर्माने का ही प्रावधान है।

सरकारी नौकरी की चाहत, नौकरियों की संख्या की तुलना में कई गुना अधिक अभ्यर्थियों की संख्या, शिक्षा माफिया के उदय और तकनीकी की सहज उपलब्धता ने देश में पेपर लीक की घटनाओं की बाढ़ सी ला दी है। प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान सुपर-30 के संस्थापक आनंद कुमार कहते हैं, “सरकारी नौकरियों की चाह में लोग लाखों रुपए खर्च करने को तैयार हैं। मौके का फायदा उठाते हुए शिक्षा माफिया ने इसका बाजार खड़ा कर लिया है। पैसे के दम पर परीक्षा तंत्र से जुड़े लोगों को खरीद कर पेपर लीक जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। इसका खामियाजा उन अभ्यर्थियों को उठाना पड़ रहा है, जो उस नौकरी के लिए सालों-साल मेहनत करते हैं।”

जागरण प्राइम ने बीते वर्षों में देशभर में पेपरलीक की घटनाओं का जायजा लिया। इसमें कश्मीर से लेकर केरल तक और गुजरात से लेकर पश्चिम बंगाल तक लगभग सभी राज्यों में पेपर लीक की घटनाएं सामने आईं। राजस्थान और गुजरात में तो बीते चार वर्षों में 13 से 14 पेपर लीक के मामले सामने आए हैं। राज्य लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग से लेकर राज्यों के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, भर्ती बोर्ड भी पेपर लीक की घटना से अछूता नहीं रह गया है।

गैर-सरकारी संगठन पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के प्रतिनव दमानी और सिद्धार्थ राव अपनी एनालिसिस में कहते हैं, बीती जनवरी में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के पेपर लीक होने से उत्तराखंड में विरोध और अशांति फैल गई। इसके बाद, 11 फरवरी को राज्य सरकार ने सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित साधनों के उपयोग पर रोक लगाने और दंडित करने के लिए एक अध्यादेश जारी किया।

अध्यादेश के लागू होने के बाद फॉरेस्ट गार्ड और सचिवालय गार्ड जैसे पदों के लिए हुई भर्ती परीक्षा में अनुचित प्रयास कर रहे उम्मीदवारों को गिरफ्तार किए जाने और नकल पर रोक लगाने की कई रिपोर्टें आई हैं। उत्तराखंड विधानसभा ने मार्च 2023 में अध्यादेश की जगह विधेयक पारित कर दिया। दूसरे कुछ राज्यों में भी नकल रोधी कानून पारित किए गए।

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक, गुजरात और उत्तराखंड नकल रोधी कानून में धोखाधड़ी के लिए अपेक्षाकृत कड़े प्रावधान हैं। उत्तराखंड अधिनियम में पहले अपराध के लिए 3 साल जेल की सजा का प्रावधान है। दोषसिद्धि के बजाय चार्जशीट दायर करने पर ही परीक्षार्थी को दो से पांच साल के लिए राज्य प्रतियोगी परीक्षाओं से वंचित कर दिया जाता है। गुजरात और राजस्थान के कानून भी उम्मीदवारों को दो साल के लिए निर्दिष्ट परीक्षाओं में बैठने से रोकते हैं, लेकिन दोष सिद्ध होने पर।

विभिन्न राज्यों में कानूनों का दायरा भी अलग-अलग है। उत्तराखंड और राजस्थान में कानून केवल राज्य सरकार के किसी विभाग (जैसे लोक सेवा आयोग) में भर्ती के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं पर लागू होते हैं। अन्य 8 राज्यों में ये कानून शैक्षणिक योग्यता जैसे डिप्लोमा और डिग्री प्रदान करने के लिए शैक्षिक संस्थानों द्वारा आयोजित परीक्षाओं पर भी लागू होते हैं। उदाहरण के लिए, गुजरात में, गुजरात माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित परीक्षाएं भी गुजरात सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2023 के अंतर्गत आती हैं। दमानी और राव सवाल उठाते हुए कहते हैं कि क्या शैक्षिक परीक्षाओं और भर्ती परीक्षाओं में नकल पर समान दंड देना उचित है?

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विराग गुप्ता कहते हैं, माफिया पैसों के लिए पर्चे लीक करता है या फिर हेराफेरी करता है। मोबाइल, व्हाट्सएप और सोशल मीडिया के युग में इन्हें फैलने से रोकना मुश्किल है। पेपर लीक और नकल से रोजगार का अधिकार, जो कि संविधान प्रदत्त अधिकार है, बाधित हो रहा है। इसमें कोचिंग माफिया की संलिप्तता की बात भी सामने आती है, यह एक चिंता का विषय है।

पेपर लीक रोकने एनआईए जैसी केंद्रीय एजेंसी की जरूरत

मेडिकल की परीक्षाओं में कई बार गड़बड़ियों को उजागर कर चुके मध्य प्रदेश के व्हिसिलब्लोअर डॉ. आनंद राय जागरण प्राइम से बातचीत में कहते हैं, सिर्फ कानूनों से कुछ नहीं होने वाला। पेपर लीक जैसी घटनाएं रोकने के लिए भारत सरकार को एनआईए जैसी एक केंद्रीय एजेंसी बनानी चाहिए। पेपर लीक बहुत हाईटेक हो गया है। ज्यादातर मामलों में तो यह सर्वर से ही हैक हो जाता है। ये सब स्टेट लेवल पर नहीं, बल्कि नेशनल लेवल पर चलता है। इसलिए एक स्पेशलाइज्ड केंद्रीय एजेंसी ही इनकी जांच कर सकती है। इसमें भी ऐसे लोग होने चाहिए जो चीजों को समझते हों। चोरी-हत्या जैसे मामलों की जांच करने वाले जांच अधिकारी सर्वर हैक जैसी चीजें कैसे समझेंगे।

पेपर लीक की घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित राजस्थान में बेरोजगारों की आवाज उठाने वाले राजस्थान बेरोजगार एकृकत महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष उपेन यादव कहते हैं, राजस्थान में सबसे ज्यादा भर्तियां आ रही हैं, इसकी वजह से पेपर लीक के मामले भी यहां सबसे अधिक हैं। यहां जितने भी लोग पेपर लीक के मामले में पकड़े जाते हैं, वो सब जल्द ही जमानत पर छूट जाते हैं। रीट पेपर लीक का उदाहरण देते हुए यादव कहते हैं, रीट मामले में 100 से ज्यादा लोग पकड़े गए थे, इससे में 99% लोग जेल से छूट गए। जो मुखिया था, वो भी छूट गया। ये लोग छूट कर फिर से कांड करते हैं। पेपर लीक होता है, हंगामा होता है थोड़ी देर सरकार ध्यान देती है, फिर वह भी ढीली पड़ जाती है।

माफियाओं को कहीं न कहीं राजनीतिक संरक्षण

यादव कहते हैं, राजस्थान लोकसेवा आयोग में पेपर लीक के मामले में आयोग सदस्य बाबूलाल कटारा पकड़ा गया। इसके पहले भी इंटरव्यू घूसकांड मामले में आरपीएससी के एक सदस्य का नाम आया था, लेकिन मामले को रफादफा कर दिया गया। अगर उस समय उस सदस्य पर कार्रवाई हो जाती तो क्या बाबूलाल कटारा कभी पेपर लीक की हिम्मत जुटा पाता? पेपर लीक माफियाओं को कहीं न कहीं राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है। राजस्थान सरकार पिछले साल नकल और पेपरलीक रोधी सख्त कानून लेकर आई, लेकिन इस कानून के आने के बाद से पांच भर्ती परीक्षा के पेपर लीक हो चुके हैं। कानून होने के बाद भी कार्रवाई नहीं हो पाई।

एडवोकेट विराग गुप्ता भी कहते हैं, शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची में आती है, जहां राज्य और केंद्र दोनों को कानून बनाने का अधिकार है। कानून जरूर होने चाहिए, लेकिन कानून कितना प्रभावशाली होगा ये इस पर निर्भर करेगा कि उसे लागू कैसे किया जाता है? ये कानून परीक्षा में गड़बड़ी हो जाने के बाद एक्शन लेने के बारे में है। इसमें भी कई बार पेपर लीक के बाद उसके सोर्स को टार्गेट करने के बजाय, व्हिसिल ब्लोअर को ही टार्गेट करने की कोशिश की जाती है।

इज्जत बचाने के लिए दबा देते हैं मामला

उपेन यादव कहते हैं, राजनीति के चलते भी कई बार सरकारें मामला दबा देती हैं। सरकार को ये लगता है कि पेपर लीक की जांच बड़ी करने से उसकी बदनामी होगी और विपक्ष को इसका फायदा मिलेगा। इसलिए वे खुद ही मामले को रफादफा कर देती हैं। इससे अपराधी बच जाता है और उसके हौसले बढ़ जाते हैं।

यादव अपील करते हुए कहते हैं, सरकार को नकल या पेपर लीक में शामिल अपराधियों को कम से कम दो साल तक जमानत न देने का प्रावधान करना चाहिए। इनकी संपत्ति जब्त की जाए, ताकि इनकी कमर टूट जाए। क्योंकि इनके पास करोड़ों-अरबों रुपए होते हैं, जेल से बाहर आते ही ये अपने पैसों के दम पर मामला दबा देते हैं।

पेपर लीक की घटनाएं रोकने पर राज्य सरकारों का पक्ष जानने के लिए राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सरकारों से संपर्क किया गया है। जवाब आने पर कॉपी अपडेट कर दी जाएगी।