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कोरोना के इलाज के खर्च ने लोगों के सिर पर बढ़ाया कर्ज का बोझ, पहले नहीं देखा था ऐसा दौर

कोरोना काल में पीडि़त हुए लोगों पर इस बीमारी का खर्च इस कदर बढ़ा कि उन्‍हें इसके इलाज के लिए कर्ज तक लेना पड़ा। इस दौरान लोगों सिर पर कर्ज का बोझ भी बढ़ गया और मानसिक तनाव भी बढा।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 27 Jul 2021 02:53 PM (IST)Updated: Tue, 27 Jul 2021 02:58 PM (IST)
कोरोना के इलाज के खर्च ने लोगों के सिर पर बढ़ाया कर्ज का बोझ, पहले नहीं देखा था ऐसा दौर
कोविड का इलाज भारतीयों पर पड़ा बहुत भारी

नई दिल्‍ली (एपी)। अनिल शर्मा उन लोगों में शामिल हैं जिनका 24 वर्षीय बेटा कोरोना संक्रमित होने के बाद बेहद खराब हालत में अस्‍पताल में भर्ती कराया गया था। प्राइवेट अस्‍पताल में उनका बेटा करीब दो माह से भी अधिक माह तक भर्ती रहा। मई में जिस वक्‍त कोरोना की वजह से पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ था उस वक्‍त अनिल के बेटे सौरव को वेंटिलेटर पर रखा गया था। सौरव में मुंह में लगी एक नली के दम पर सब कुछ चल रहा था। अनिल उस वक्‍त को अब तक नहीं भूल सके हैं। उन्‍होंने बताया कि वो बहुत मजबूती के साथ अपने बेटे के पास मौजूद थे। लेकिन सौरव के वेंटिलेटर पर जाने के बाद अनिल खुद को नहीं संभाल सके और आंखों में आंसू लिए उस कमरे से बाहर निकल गए।

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सौरव अब अपने घर में है, लेकिन उसकी हालत अब भी पूरी तरह से ठीक नहीं है। बीमारी के बाद सौरव काफी कमजोर हो चुका है। इस वजह से अनिल की सौरव के घर वापस आने की खुशी काफूर बनी हुई है। ऐसा होने की केवल एक ही वजह नहीं है बल्कि इसकी एक बड़ी वजह लगातार बढ़ते मेडिकल के खर्च है। अनिल के लिए इस कर्ज के पहाड़ को पाटना मुश्किल हो गया है। भारत में भले ही अब कोरोना के मामले कम हो चुके हैं लेकिन अनिल समेत लाखों लोगों के लिए मेडिकल बिल का खर्च परेशानी का सबब बना हुआ है। भारत में अधिकतर लोगों के पास हेल्‍थ इंश्‍योरेंस नहीं है। यही वजह है कि कोविड-19 महामारी का खर्च लोगों के लिए परेशानी का कारण बन गया।

अनिल शर्मा ने एंबुलेंस, टेस्टिंग, दवाओं और आईसीयू के बिल को चुकाने के लिए अपनी बचत का इस्‍तेमाल किया था। इसके बाद उनको अपने बेटे के इलाज के लिए बैंक से कर्ज लेना पड़ा। इतना ही नहीं इलाज के लिए उन्‍हें अपने दोस्‍तों और रिश्‍तेदारों से भी कर्ज लेना पड़ा। इसके बाद उन्‍हें केटो का पता चला जो कि एक क्राउड फंडिंग वेबसाइट का पता चला। उन्‍होंने इसके बाद लाखों का बिल चुका दिया। इससे उन्‍हें और कर्ज भी मिला। उनके जीवन में इस तरह का दौर पहली बार आया था।

भारत में इस महामारी से पहले इलाज एक बड़ी समस्‍या थी। लेकिन इस महामारी के बाद इसका खर्च सबसे बड़ी समस्‍या बन गई। भारत में काफी लोग सैलरी क्‍लास हैं। वहीं मेडिकल इंश्‍योरेंस को काफी लोग गैर जरूरी मानते हैं। भारत में करीब 63 फीसद लोगों ने इसके इलाज के खर्च के लिए अपनी सारी जमापूंजी दांव पर लगा दी। हालांकि दुनिया के दूसरे देशों में भी इसके इलाज पर खर्च पर काफी था लेकिन इसका सबसे अधिक असर भारत में ही दिखाई दिया।   

कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन के दौरान जिन सवा करोड़ लोगों की नौकरियांं गईं उनमें अनिल भी शामिल थे। पियू रिसर्च स्‍टडी के मुताबिक इस महामारी ने भारत में लोगों को आर्थिक दृष्टि से और अधिक नीचे गिरा दिया। पब्लिक हेल्‍थ इंडिया फाउंडेशन के अध्‍यक्ष का कहना है कि यहां के इन लोगों के मुकाबले इलाज का खर्च कहीं अधिक था। हालांकि इन सब परेशानियों से दूर सौरव अपने पिता को हीरो मानते हैं।  


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