भारत के खिलाफ बड़ी साजिश की तैयारी में पाक-तुर्की की जोड़ी? कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बनाने की कोशिश
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत को असहज करने की कोशिश कर रहा है जिसमें उसे तुर्किये का सहयोग मिल रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान ने कश्मीर मुद्दे को उठाया और ओआईसी ने विशेष बैठक बुलाई। पाक पीएम शरीफ ने कश्मीर मुद्दे पर ट्रंप को धन्यवाद दिया। भारत का कहना है कि कश्मीर द्विपक्षीय मुद्दा है और किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं है।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। ऑपरेशन सिंदूर के बाद ट्रंप प्रशासन से मिल रहे दुलार ने पाकिस्तान की हिम्मत और बढ़ा दी है। इसका एक बड़ा उदाहरण संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) की बैठक के शुरुआती 48 घंटों के दौरान ही देखने को मिला है। इस दौरान पाकिस्तान सरकार भारत को असहज करने की पूरी कोशिश में जुटी है। इसमें उसे अपने पुराने सहयोगी मित्र देश तुर्किये से भी पूरा सहयोग मिल रहा है।
सार्वजनिक तौर पर राष्ट्रपति ट्रंप को धन्यवाद
एक तरफ तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यिप एर्दोगान ने यूएनजीए में कश्मीर मुद्दा उठाकर भारत की संप्रभुता पर सवाल खड़े किए, वहीं इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) ने कश्मीर पर विशेष बैठक बुलाकर पाकिस्तान का साथ दिया। इसके बाद अरब-इस्लामिक देशों के प्रमुखों के साथ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ हुई जिसमें पाक पीएम शाहबाज शरीफ ने परोक्ष तौर पर कश्मीर का मुद्दा उठाया। बाद में उन्होंने मई, 2025 में भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध समाप्त करवाने के लिए सार्वजनिक तौर पर राष्ट्रपति ट्रंप को धन्यवाद दिया।
यूएनजीए में एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा
जबकि भारत लगातार बोलता रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर को समाप्त कर सीजफायर करने में किसी भी तीसरे देश की भूमिका नहीं रही है। राष्ट्रपति एर्दोगान ने 23 सितंबर को यूएनजीए के उच्च स्तरीय सत्र में एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि कश्मीर मुद्दे का समाधान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के आधार पर संवाद से होना चाहिए, ताकि हमारे कश्मीरी भाइयों-बहनों का भला हो।
तुर्किये और पाकिस्तान के संबंध
एर्दोगान ने पूर्व में भी यूएनजीए के मंच से कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की भाषा बोली है। लेकिन वर्ष 2024 में अपने भाषण में उन्होंने जम्मू व कश्मीर की बात नहीं कही थी। तब यह माना गया था कि शायद भारत के साथ अपने संबंधों को सामान्य करने की कोशिश तुर्किये की तरफ से हो सकती है। लेकिन पहलगाम हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर के दौरान और उसके बाद तुर्किये और पाकिस्तान के बीच संबंध और मजबूत हो रहे हैं। तुर्किये सीधे तौर पर भारत के हितों के खिलाफ हो चुका है।
क्यों खबर हुए भारत-तुर्किये के संबंध?
- ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तुर्किये और अजरेबैजान ने पाकिस्तान का सीधा समर्थन किया था। तुर्किए ने तब पाकिस्तान को 'बायकार्टार टीबी2 ड्रोन' और अन्य हथियार दिए थे, जिससे भारत को रणनीतिक नुकसान पहुंचा।
- इन दोनों देशों के साथ भारत के रिश्ते लगातार खराब होते जा रहे हैं। कई विशेषज्ञ इन तीनों के गठबंधन को 'इस्लामिक नाटो' के गठन के तौर पर देखते हैं।
- यूएनजीए के दौरान ही 23 सितंबर को इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) के कश्मीर कॉन्टैक्ट ग्रुप की विशेष बैठक हुई, जिसमें पाकिस्तान, तुर्की, सऊदी अरब, अजरबैजान और नाइजर के प्रतिनिधि शामिल थे।
- बैठक में पाकिस्तान के विशेष सहायक सैयद तारिक फतेमी ने भारत पर 'मानवाधिकार उल्लंघन', 'जनसांख्यिकीय बदलाव' और 'कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार' के हनन करने का आरोप लगाया।
- यह बैठक पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय लॉबीइंग का हिस्सा है, जहां ओआईसी को कश्मीर का प्रचार मंच बनाया जा रहा है। इस तरह की बैठक पहली बार नहीं हुई है, लेकिन पाकिस्तान की कोशिश यह है कि यूएनजीए के दौरान कश्मीर का मुद्दा जैसे भी हो उठाया जाए।
कैसे सुलझेगा कश्मीर का मुद्दा?
पाकिस्तान का कहना है कि बैठक में अन्य देशों ने उसकी भूमिका की तारीफ की है और कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए मध्यस्थता करने की बात कही है। सनद रहे कि भारत कश्मीर मुद्दे को पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय मुद्दा मानता है और किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की बात को खारिज करता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान की इस अतिसक्रियता के लिए ट्रंप प्रशासन का मिला प्रोत्साहन भी कारण है। ट्रंप ने अरब व इस्लामिक देशों के प्रमुखों के साथ अलग से एक बैठक की जिसमें पाक पीएम शरीफ भी शामिल हुए। बैठक की अध्यक्षता ट्रंप ने तुर्किये के राष्ट्रपति एर्दोगान के साथ की।
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