कैप्टन कालिया के साथ हुआ व्यवहार, पाक का मूल चरित्र
धर्मशाला [नवनीत शर्मा]। पूर्व पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी भले ही बाद में अपमानजनक बुढ़ापे के बावजूद भारत के साथ युद्ध करने के तेवर दिखाते रहे हों, लेकिन जब भारतीय सेना ने उन्हें दिसंबर, 1
धर्मशाला [नवनीत शर्मा]। पूर्व पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी भले ही बाद में अपमानजनक बुढ़ापे के बावजूद भारत के साथ युद्ध करने के तेवर दिखाते रहे हों, लेकिन जब भारतीय सेना ने उन्हें दिसंबर, 1971 में करीब 92 हजार सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण को विवश कर दिया था, बतौर युद्धबंदी उनकी सुख-सुविधा का पूरा ख्याल रखा गया था।
यह मैं इसलिए कह सकता हूं क्योंकि मुझे उनके साथ बतौर गार्ड तैनात किया गया था। उनके लिए जबलपुर में ऑफिसर मेस का एक बड़ा हिस्सा खाली कराया गया था। उस ऐतिहासिक विजय के बाद भी भारतीय सेना की विनम्रता और संस्कारपूर्ण व्यवहार को याद करते हुए भारतीय सेना के सेवानिवृत्त कर्नल करतार सिंह ये बातें बड़े गर्व कहते हैं। करतार सिंह सेना में उसी साल सैनिक के रूप में भर्ती होकर शकरगढ़ सेक्टर में युद्ध के मोर्चे पर अपना दमखम दिखाया था।
उनसे बात हो रही थी पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा बर्बरतापूर्वक मारे गए कैप्टन सौरभ कालिया के बारे में हुए एक वीडियो रहस्योद्घाटन की। 31 जुलाई यू-ट्यूब पर एक वीडियो जारी हुआ, जिसमें एक पाकिस्तानी सैनिक गुल-ए-खांदन ने कैप्टन कालिया को मारने की बात कबूल की है। कांगड़ा के कोहाला गांव में रहने वाले 59 वर्षीय करतार सिंह कहते हैं, खुद पाकिस्तानी युद्धबंदी कह कर गए थे कि जितना सम्मान उन्हें भारत में बंदी होते हुए मिला, उतना तो पाकिस्तानी सैनिक होते हुए पाकिस्तान में भी नहीं मिलता। हम भले ही मांस खाते हों या नहीं, पाकिस्तानियों को ताजा मांस खिलाया गया था, उनकी सुविधाओं का ख्याल रखा गया, लेकिन सच यह है कि वे नहीं सुधरेंगे।
कर्नल करतार के मुताबिक सीमा पर हमेशा जंग नहीं होती, दुश्मन से बात भी होती है। लेकिन पाकिस्तानी इतने दगाबाज हैं कि कई बार बातचीत के लिए भारतीय सैनिक को बुलाया और गोली चला दी। पाकिस्तानी फौजी ने सौरभ कालिया के बारे में जो कहा है वह पाकिस्तान के झूठ को बेनकाब करता है। पाकिस्तान तो अपने सैनिकों के शव भी लेने से यह कहकर इन्कार कर देता है कि ये तो मुजाहिद्दीन हैं।
यही चरित्र है पाकिस्तान का :
कर्नल करतार भारतीय सैनिकों के मानवतावादी दृष्टिकोण के बारे में बताते हैं कि 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी चौकियों पर कब्जा करने के बाद एक भारतीय सैनिक को दुश्मन के अस्त्र-शस्त्रों के बीच कुछ हिलता दिखाई दिया। कुछ ही देर में अंदर से एक पाकिस्तानी कैप्टन हाथ जोड़े हुए दिखा। उसका कहना था कि उसकी शादी को चार ही दिन हुए हैं। भारतीय सैनिक ने उसका हथियार रख लिया और उसे जाने दिया। इसके विपरीत कैप्टन सौरभ कालिया की टुकड़ी के साथ वे लोग बर्बरता से पेश आए। यही चरित्र है पाकिस्तान का।
सर लौट कर मिलता हूं..
कर्नल करतार के मुताबिक, बेस कैंप में उनकी मुलाकात लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया से हुई थी और सौरभ ने कहा था, सर, कल से ऑपरेशन पर जा रहा हूं, लौट कर मिलता हूं।
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