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    योगी सरकार ने बनाया आउटसोर्स सेवा निगम, क्‍या अब अस्थायी कर्मचारियों के हितों का रखा जाएगा ख्‍याल; खत्म होगा शोषण?

    Updated: Wed, 17 Sep 2025 04:04 PM (IST)

    उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने अस्थायी कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम लिमिटेड का गठन किया है। यह निगम भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता लाएगा और आउटसोर्स कर्मचारियों को वेतन व सामाजिक सुरक्षा से जुड़े शोषण से बचाएगा। अकेले यूपी में 11 लाख से अधिक कर्मचारी इस व्यवस्था का सामना करते हैं। यह निगम सुनिश्चित करेगा कि इन कर्मचारियों को...

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    यूपी में आउटसोर्सिंग अस्थायी कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए बना निगम

    डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। दुनिया के किसी भी देश के लिए रोजगार एक बड़ा मुद्दा है। अनुमान है कि संविदा पर नियुक्ति या आउटसोर्स की व्यवस्था के तहत देश में सवा करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है, लेकिन मुश्किल यह है कि इनके नियमित वेतन, अवकाश और सामाजिक सुरक्षा प्रविधानों को लेकर विभिन्न राज्यों की नियमावली में कोई एकरूपता नहीं है। इससे अस्थायी किस्म की नौकरी करने वालों को कम वेतन और असुरक्षा का सामना करना पड़ता है।

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    ऐसे में हाल में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम लिमिटेड का गठन कर एक महत्वपूर्ण पहल की है। एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में संचालित होने वाली इस पब्लिक लिमिटेड कंपनी यानी आउटसोर्स सेवा निगम की मुख्य जिम्मेदारी भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना और अस्थायी कर्मचारियों के जुड़े कई मुद्दों का समाधान करना है।

    किसको मिलेगा लाभ?

    कंपनीज एक्ट-2013 के सेक्शन-8 के तहत गठित इस निगम के अस्तित्व में आने से अब उत्तर प्रदेश के सरकारी विभाग आउटसोर्सिंग एजेंसियों का चयन खुद नहीं करेंगे, बल्कि उन्हें नए बनाए गए एक पोर्टल (जेईएम) के जरिए निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया के तहत एजेंसियों का चयन करना होगा।

    यूपी सरकार का दावा है कि यह कदम उन लाखों कर्मचारियों को राहत दिलाएगा, जिन्हें एजेंसियों के जरिए मिलने वाले काम और वेतन संबंधी शोषण का सामना करना पड़ता है।

    अकेले उत्तर प्रदेश के 93 सरकारी विभागों में ऐसे 11 लाख कर्मचारी बताए जाते हैं, जिन्हें नियुक्ति देने वाली एजेंसियों से वेतन संबंधी विसंगतियों और नौकरी की असुरक्षा आदि का सामना करना पड़ता है।

    पूरे देश के स्तर पर देखें तो केंद्र और राज्य स्तर पर करीब 30-43 फीसद कार्यबल अस्थायी, संविदा या आउटसोर्स के तहत काम कर रहा है, जिसमें डाटा एंट्री, क्लर्की, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी प्रमुख सेवाएं शामिल हैं।

    प्रदेश में कितनी है अस्थायी कर्मचारियों की संख्या?

    साल 2014 के एक अध्ययन के अनुसार, कुल सरकारी कार्यबल (केंद्र-राज्य) के 43 फीसद (लगभग 1.23 करोड़) कर्मचारी अस्थायी हैं। हाल के रुझानों को देखते हुए यह संख्या वित्त वर्ष 2024-25 की समाप्ति तक डेढ़ से दो करोड़ तक पहुंच सकती है, खासकर स्वास्थ्य, शिक्षा और इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में।

    संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) इंडिया एंप्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 के अनुसार संगठित क्षेत्र में संविदा पर नियुक्ति बढ़ी है। आउटसोर्सिंग एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें कोई विभाग अपने काम किसी बाहरी एजेंसी को सौंप देता है। इस व्यवस्था में कोई कर्मचारी किसी विभाग या संस्था के एंप्लाई न होकर उस बाहरी एजेंसी का कर्मचारी होता है।

    एजेंसियां कम लागत पर कर्मचारियों को अनुबंध के जरिए भर्ती करती हैं और अनुबंध खत्म होने पर कर्मचारियों को हटा दिया जाता है या फिर उनका अनुबंध रिन्यू कर दिया जाता है। जहां तक सरकारी विभागों में आउटसोर्सिंग की बात है तो इसका मुख्य उद्देश्य लागत में कटौती करना, भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाना यानी त्वरित भर्ती और प्रशासनिक बोझ कम करना है। दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत में भी देखा जा रहा है कि स्थायी भर्तियों या यानी सरकारी नौकरियों की संख्या में कमी आ रही है।

    अस्‍थायी नौकरियों में वृद्धि, क्‍या सुरक्षित होंगे हित?

    इसके स्थान पर अस्थायी/संविदा नौकरियों में वृद्धि हो रही है। समस्या यह है कि बाह्य एजेंसियों की मार्फत नियुक्त किए जाने वाले अस्थायी, संविदा या आउटसोर्स कर्मचारियों को अक्सर सीमित वेतन, कम सामाजिक सुरक्षा और नौकरी की अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है।

    एजेंसियों पर कर्मचारियों की सैलरी रोकने और उनका शोषण करने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे अस्थायी कर्मचारियों के हितों के मद्देनजर सरकार के स्तर पर उन प्रबंधों की जरूरत लंबे समय से थी, जो कर्मचारियों के वेतन और सामाजिक सुरक्षा आदि पहलुओं की निगरानी करे और उनके हितों को सुरक्षित करे।

    दावा है कि उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम ऐसे कर्मचारियों को नियमित मानदेय, सीधे वेतन हस्तांतरण और गारंटीकृत ईपीएफ एवं ईएसआई अंशदान के साथ-साथ मातृत्व अवकाश और अंतिम संस्कार सहायता जैसे सामाजिक सुरक्षा प्रविधानों का लाभ दिलाने में मददगार साबित होगा। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाएगा कि आउटसोर्स कर्मचारियों की नियुक्ति कम से कम तीन वर्षों के लिए हो।

    इसके अलावा उन्हें हर महीने एक से पांच तारीख के बीच सीधे उनके बैंक खाते में वेतन मिले। यदि निगम के जरिए उत्तर प्रदेश सरकार अस्थायी नौकरियों से जुड़े लोगों के हितों का पोषण कर पाई और उनकी समस्याओं का हल निकाल पाई, तो यह प्रबंध रोजगार के क्षेत्र में एक नया प्रतिमान गढ़ सकेगा।