मणिपुर हिंसा के पीछे अफीम की खेती बड़ी वजह, मैती समुदाय के बहाने सरकार को झुकाना चाहते हैं अलगाववादी
मणिपुर में भड़की हिंसा के लिए भले ही मैती समुदाय को एसटी का दर्जा दिये जाने के कारण अन्य जनजातियों में भड़का गुस्सा बताया जा रहा हो लेकिन इसके पीछे एक बड़ी वजह केंद्र व राज्य सरकार द्वारा अफीम की खेती के खिलाफ छेड़ा गया अभियान बताया जा रहा है।

नीलू रंजन, नई दिल्ली। मणिपुर में भड़की हिंसा के लिए भले ही मैती समुदाय को एसटी का दर्जा दिये जाने के कारण अन्य जनजातियों में भड़का गुस्सा बताया जा रहा हो, लेकिन इसके पीछे एक बड़ी वजह केंद्र व राज्य सरकार द्वारा अफीम की खेती के खिलाफ छेड़ा गया अभियान बताया जा रहा है। मणिपुर के जिन स्थानों पर हिंसा भड़की है, वहां पिछले तीन-चार महीने से हिंसक झड़पें जारी हैं और इसी कारण राज्य सरकार ने कूकी लिबरेशन आर्मी (केएलए) और जोमी रिव्यूशनरी आर्मी (जेडआरए) के साथ 15 साल पुराने शांति समझौते को रद्द कर दिया था।
देश में ड्रग्स तस्करी के खिलाफ शुरू किया गया है अभियान
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, नशा मुक्त भारत बनाने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान को देखते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में पूरे देश में ड्रग्स तस्करी के खिलाफ अभियान शुरू किया गया है। इसी अभियान के तहत मणिपुर में भी अफीम की खेती को नष्ट करने और जंगलों में इसकी खेती करने वाले किसानों को दूसरे स्थानों पर बसाने का काम शुरू हुआ।
केएलए और जेडआरए अलगाववादियों को गुजरा है नागवार
शांति समझौते की आड़ में लंबे से मणिपुर और म्यांमार सीमा के आर-पार अफीम की खेती करवाने वाले केएलए और जेडआरए अलगाववादियों को यह नागवार गुजरा और पिछले साल दिसंबर से ही इन दोनों गुटों के सदस्यों ने हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिया था। सूत्रों के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकार दोनों अलगाववादियों के दवाब की रणनीति के सामने झुकने से साफ इनकार दिया।
मैती समुदाय को एसटी का दर्जा सिर्फ बहाना
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, अलगाववादियों को साफ-साफ बता दिया गया कि 2008 के शांति समझौते में कहीं भी उन्हें अफीम की खेती की अनुमति का जिक्र नहीं है। पूर्वोत्तर से जुड़े सुरक्षा एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मैती समुदाय को एसटी का दर्जा सिर्फ बहाना है, असल में केएलए और जेडआरए हिंसा के बहाने सरकार को अफीम की खेती के खिलाफ कार्रवाई को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
अधिकांश गुटों ने शांति समझौता कर डाल दिए हैं हथियार
उन्होंने कहा कि पुराने समय में शायद ये सफल भी हो जाते, लेकिन अमित शाह के गृहमंत्री रहते हुए यह संभव नहीं है। वैसे भी पूर्वोत्तर भारत में अधिकांश गुटों ने शांति समझौता कर हथियार डाल दिये हैं। केएलए और जेडआरए जैसे छोटे अलगाववादी संगठनों के लिए लंबे समय तक टिक पाना संभव नहीं होगा।
हिंसा के लिए 2014 के पहले होने वाले शांति समझौता जिम्मेदार
एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने मौजूदा हिंसा के लिए 2014 के पहले होने वाले शांति समझौते को भी जिम्मेदार ठहराया। उनके अनुसार केएलए और जेडआरए के साथ 2008 में शांति समझौते के बावजूद उनके कैडर के हथियार सरेंडर नहीं कराए गए। यही हाल एनएससीएन (मुइवा) गुट के साथ हुए समझौते में भी रहा।
उन्होंने कहा कि हथियारबंद कैडर के साथ ये अलगाववादी संगठन किसी भी समय शांति के लिए खतरा बन सकते हैं और मणिपुर के मामले में भी यही हुआ। यही कारण गृहमंत्री अमित शाह के निर्देश पर होने वाले सभी समझौते में हथियारों के सरेंडर और कैडर के पुनर्वास पर अधिक जोर दिया जाता है। इसके साथ ही अलगावादी संगठनों के साथ सांठ-गांठ कर जबरन वसूली और र्ड्ग के कारोबार में शामिल अधिकारियों की पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई भी सुनिश्चित की जा रही है।
शाह ने संभाला मोर्चा, चुनावी सभाएं रद्द
मणिपुर के बिगड़ते हालात को काबू करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मोर्चा संभाल लिया है। उन्होंने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के अंतिम दौर में शुक्रवार को तय पांच सभाओं और रोडशो को रद्द कर दिया। गुरूवार को मणिपुर समेत सभी पड़ोसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और अन्य अधिकारियों के साथ वीडियो काफ्रेंसिंग के बैठक करने के बाद शुक्रवार भी वे पल-पल की जानकारी लेते रहे और अधिकारियों को जरूरी निर्देश देते रहे।
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