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    Operation Sunrise 2: भारत और म्यांमार सेना ने उग्रवादियों के खिलाफ की बड़ी कार्रवाई

    By Dhyanendra SinghEdited By:
    Updated: Sun, 16 Jun 2019 09:29 PM (IST)

    ऑपरेशन सनराइज-2 के दौरान उग्रवादी समूहों के शिविरों को नष्ट करने के लिए दोनों देशों की सेनाओं ने एक-दूसरे का सहयोग किया है। जिनमें उग्रवादी संगठनों को ...और पढ़ें

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    Operation Sunrise 2: भारत और म्यांमार सेना ने उग्रवादियों के खिलाफ की बड़ी कार्रवाई

    नई दिल्ली, प्रेट्र। भारत और म्यांमार की सेनाओं ने 16 मई से तीन सप्ताह तक अपने सीमा क्षेत्रों में समन्वित तरीके से पूर्वोत्तर में सक्रिय उग्रवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई की। मणिपुर, नगालैंड और असम में सक्रिय विभिन्न उग्रवादी समूहों को दोनों देशों की सेना ने निशाना बनाया।

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    तीन महीने पहले भारत-म्यांमार सीमा पर 'ऑपरेशन सनराइज' चलाया गया था। इस दौरान उत्तर-पूर्व में स्थित उग्रवादी संगठनों के कई शिविर ध्वस्त किए गए थे।

    म्यांमार भारत के रणनीतिक पड़ोसी देशों में से एक है और उग्रवाद प्रभावित मणिपुर तथा नगालैंड सहित पूर्वोत्तर राज्यों से इसकी 1,640 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है। भारत सीमा रक्षा के लिए दोनों देशों की सेनाओं के बीच गहरे समन्वय पर जोर देता रहा है।

    सूत्रों ने बताया कि 'ऑपरेशन सनराइज-2' के दौरान उग्रवादी समूहों के शिविरों को नष्ट करने के लिए दोनों देशों की सेनाओं ने एक-दूसरे का सहयोग किया। जिन उग्रवादी संगठनों को निशाना बनाया गया, उनमें कामतापुर लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (केएलओ), एनएससीएन (खापलांग), उल्फा (1) और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) शामिल हैं।

    उन्होंने कहा कि अभियान के दौरान कम से कम छह दर्जन उग्रवादियों को दबोच लिया गया और उनके कई ठिकाने तबाह कर दिए गए। सूत्रों ने बताया कि दोनों देश खुफिया सूचनाओं और जमीनी स्थिति के आधार पर अभियान का तीसरा चरण भी शुरू कर सकते हैं। अभियान में भारतीय सेना के साथ ही असम राइफल्स के जवान भी शामिल थे।

    जून 2015 में भारतीय सेना, असम राइफल्स के दस्ते ने एनएससीएन (के) के उग्रवादियों के खिलाफ भारत-म्यांमार सीमा के समीप क्षेत्र में अभियान चलाया था। आपरेशन सनराइज के पहले चरण में भारतीय सेना ने म्यांमार में सक्रिय उग्रवादी संगठन अराकान आर्मी के सदस्यों को निशाना बनाया था। यह संगठन कालादान परिवहन परियोजना का विरोध कर रहा है।

    इस परियोजना को दक्षिण पूर्व एशिया में भारत के प्रवेशद्वार के रूप में देखा जाता है। भारत ने म्यांमार के साथ अप्रैल 2008 में परियोजना लागू करने के संबंध में ढांचा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस परियोजना के पूरे होने पर मिजोरम म्यांमार के रखाइन प्रांत में सिटवे बंदरगाह से जुड़ जाएगा।

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