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    एम्स में दिमाग की नसों का ब्लॉकेज खोलकर लकवे का इलाज

    By anand rajEdited By:
    Updated: Mon, 27 Oct 2014 09:10 AM (IST)

    हार्ट में ब्लॉकेज होने पर धमनियों में स्टेंट डालकर एंजियोप्लास्टी के बारे में सबने सुना है। लेकिन इस तर्ज पर अब लकवा का इलाज भी शुरू हो गया है। जाघों की नसों (धमनी) के जरिए खास तरह का स्टेंट या माइक्रो कैथेटर डालकर दिमाग की नसों में जमे खून को हटा लिया जाता है। यदि लकवा मारने के छह घंटे के

    नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। हार्ट में ब्लॉकेज होने पर धमनियों में स्टेंट डालकर एंजियोप्लास्टी के बारे में सबने सुना है। लेकिन इस तर्ज पर अब लकवा का इलाज भी शुरू हो गया है। जांघों की नसों (धमनी) के जरिए खास तरह का स्टेंट या माइक्रो कैथेटर डालकर दिमाग की नसों में जमे खून को हटा लिया जाता है। यदि लकवा मारने के छह घंटे के भीतर मरीज अस्पताल पहुंच जाए तो इस तकनीक से इलाज संभव है। इस नई तकनीक से एम्स में लकवा पीड़ितों का इलाज हो रहा है। जो मरीजों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है।

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    डॉक्टरों का कहना है कि लकवा को कभी लाइलाज बीमारी माना जाता था। अब भी इस बीमारी के इलाज के बारे में लोगों व डॉक्टरों को ज्यादा जानकारी नहीं है। इसके चलते ज्यादातर मरीजों का इलाज नहीं हो पाता। मामूली सुधार के बाद मरीज विकलांगता जैसी जीवन जीने को मजबूर होते हैं। इसके अलावा और भी दिमागी बीमारियां हैं, जिसमें नसें (धमनी) सिकुड़ (स्टेनोसिस) जाती है। जिसके कारण मस्तिष्क में खून का प्रवाह कम हो जाता है। जो बाद में लकवा का कारण बन सकता है। उन बीमारियों में भी बगैर सर्जरी किए दिमाग के नसों की सिकुड़न दूर की जा सकती है।

    मैकेनिकल थ्रौम्बेक्टोमी से लकवा का इलाज

    एम्स के न्यूरो रेडियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. शैलेश बी गायकवाड़ ने कहा कि लकवा के इलाज के लिए एक खास तरह का इंजेक्शन आता है। लकवा मारने के तीन घंटे के अंदर इंजेक्शन लगा देने पर वह ठीक हो जाता है। अन्यथा लकवा का इलाज नहीं हो पाता, क्योंकि इलाज की नई तकनीक सभी अस्पतालों में मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि तीन घंटे के भीतर इजेक्शन नहीं लग पाए तब भी मैकेनिकल थ्रौम्बेक्टोमी तकनीक से इस्कीमिक लकवा को ठीक किया जा सकता है। इस बीमारी में दिमाग की धमनी में ब्लॉकेज के चलते रक्त जमा होने से शरीर का कोई हिस्सा काम करना बंद कर देता है। जांच के पास धमनी के रास्ते स्टेंट रिटिवर डालकर दिमाग की धमनी में जमे रक्त को निकाल दिया जाता है। यह देखा गया है कि इस तकनीक से इलाज के बाद लकवा की बीमारी ठीक हो जाती है। लकवा मारने के बाद मरीज जितना जल्दी अस्पताल पहुंचते हैं इस प्रोसिजर का परिणाम बेहतर आने की उम्मीद रहती है।

    बिना सर्जरी के ठीक हो सकता है दिमाग की नसों में बना गुब्बारा

    दिमाग की नसों में कई बार सूजन आने के चलते गुब्बारे जैसा आकार बन जाता है। यह फटने पर जानलेवा हो सकता है। अचानक सिर में असहनीय दर्द होना इसका लक्षण है। इसके इलाज के लिए दिमाग की ओपन सर्जरी करनी पड़ती है, जो कि कठिन होती है। डॉ. शैलेश बी गायकवाड़ ने कहा कि इसका इलाज भी बिना सर्जरी के नसों के माध्यम से माइक्रो कैथेटर के जरिए उसे कॉयल से भर दिया जाता है। इसी तरह नसों में सिकुड़न को करोटाइड एजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग से दूर किया जा रहा है। ये नई तकनीक न्यूरो से संबंधित बीमारियों में कारगर साबित हो रही हैं। बिना सर्जरी के ठीक हो सकता है दिमाग की नसों में बना गुब्बारा दिमाग की नसों में कई बार सूजन आने के चलते गुब्बारे जैसा आकार बन जाता है। यह फटने पर जानलेवा हो सकता है। अचानक सिर में असहनीय दर्द होना इसका लक्षण है। इसके इलाज के लिए दिमाग की ओपन सर्जरी करनी पड़ती है, जो कि कठिन होती है। डॉ. शैलेश बी गायकवाड़ ने कहा कि इसका इलाज भी बिना सर्जरी के नसों के माध्यम से माइक्रो कैथेटर के जरिए उसे कॉयल से भर दिया जाता है। इसी तरह नसों में सिकुड़न को करोटाइड एजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग से दूर किया जा रहा है। ये नई तकनीक न्यूरो से संबंधित बीमारियों में कारगर साबित हो रही हैं।

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