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    SC: अनुशासनात्मक जांच में सिर्फ संभावनाओं की अधिकता दिखाने की जरूरत, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने की अहम टिप्पणी

    Updated: Wed, 05 Feb 2025 11:30 PM (IST)

    जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने हाल ही में सरकारी कर्मचारियों से संबंधित अनुशासनात्मक कार्यवाही में आवश्यक साक्ष्य के मानकों को स्पष्ट किया है जिसमें कहा गया है कि कदाचार को केवल संभावनाओं की अधिकता के आधार पर ही दिखाया जाना चाहिए न कि आपराधिक मुकदमों में इस्तेमाल किए जाने वाले अधिक कठोर उचित संदेह से परे मानक के आधार पर।

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    अनुशासनात्मक जांच में सिर्फ संभावनाओं की अधिकता दिखाने की जरूरत- सुप्रीम कोर्ट (फोटो- एक्स)

     पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकारी नियोक्ताओं को दोषी कर्मचारी को बर्खास्त करने के लिए अनुशासनात्मक कार्यवाही के दौरान कदाचार साबित करने के लिए सिर्फ संभावनाओं की अधिकता दिखाने की जरूरत है जो आपराधिक मुकदमों से कम कठोर पैमाना है।

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    आपराधिक मुकदमों में आरोपों को संदेह से परे साबित करना होता है। जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने चार फरवरी के आदेश में कलकत्ता हाई कोर्ट की खंडपीठ के मार्च, 2012 के एक फैसले को रद कर दिया, जिसमें भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआइ) के पूर्व सहायक अभियंता (सिविल) प्रदीप कुमार बनर्जी की बर्खास्तगी के आदेश को पलट दिया गया था।

    प्रदीप कुमार की बर्खास्तगी बरकरार

    संबंधित आपराधिक मामले में बरी किए जाने के बावजूद शीर्ष अदालत ने प्रदीप कुमार की बर्खास्तगी को बरकरार रखा। जस्टिस मेहता द्वारा लिखे 28 पेज के फैसले में कहा गया है, 'कानून का स्थापित सिद्धांत है कि आपराधिक मुकदमे में अभियोजन पक्ष पर मामले को संदेह से परे साबित करने का दायित्व होता है। हालांकि, अनुशासनात्मक जांच में विभाग पर सीमित दायित्व होता है और उसे संभावनाओं की अधिकता के सिद्धांत पर अपना मामला साबित करना होता है।'

    यह फैसला सरकारी नियोक्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण हथियार साबित हो सकता है, जो अनुशासनात्मक कार्यवाही के तहत कदाचार के दोषी कर्मचारियों को बर्खास्त कर सकते हैं, फिर चाहे संबंधित आपराधिक मामलों में उन्हें बरी ही क्यों न कर दिया गया हो।

    शीर्ष अदालत ने एएआइ के पक्ष में फैसला सुनाया

    शीर्ष अदालत ने एएआइ के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रदीप कुमार के विरुद्ध की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई न्यायोचित थी। साथ ही कहा कि हाई कोर्ट की खंडपीठ ने आपराधिक मुकदमे और अनुशासनात्मक जांच के मानकों को समान मानने की गंभीर त्रुटि की।

    प्रदीप कुमार को एक ठेकेदार के प्रतिनिधि से रिश्वत लेने के आरोप में उनके एक सहकर्मी (एएआइ के एक कनिष्ठ अभियंता) के साथ गिरफ्तार किया गया था। एक विशेष अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया था और कनिष्ठ अभियंता को बरी कर दिया था।

    कलकत्ता हाई कोर्ट ने बर्खास्तगी के फैसला पलट दिया था

    दोषी ठहराए जाने पर अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने प्रदीप कुमार को 13 जुलाई, 2000 को बर्खास्त कर दिया था। एक मार्च, 2012 को कलकत्ता हाई कोर्ट ने बर्खास्तगी के फैसला पलट दिया था, जिसके खिलाफ एएआइ ने शीर्ष अदालत का रुख किया था।