सिर्फ मनोरंजन नहीं, आपको गुस्सा और बीमारी भी परोस रहे हैं ऑनलाइन वीडियो, ऐसे बचें
एक अध्ययन के अनुसार, ऑनलाइन वीडियो कंटेंट देखने की वैश्विक दर 6 घंटे 45 मिनट है, जबकि भारत में करीब आठ घंटे 29 मिनट।
नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। आपके घर पर बच्चे हैं। आपने अपने बच्चों को मोबाइल फोन दिया हुआ है। बच्चों के फोन पर इंटरनेट भी चल रहा है। उनके फोन में नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, हॉट-स्टार जैसे वीडियो सर्व करने वाली एप्स हैं। अगर इन सब बातों को मिक्स कर दें तो आपके घर में गुस्सा, चिड़चिड़ापन, लत और बीमारी जल्द ही दस्तक देने वाले हैं। अब भी नहीं समझे तो बता देते हैं कि ऑनलाइन वीडियो की लत के चलते हम सबके घरों में लगातार ऐसी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अगर आप नहीं चाहते हि आपके घर पर ऐसा ही हो तो यहां हम आपको कुछ उपाय भी बता रहे हैं, उन्हें अपने जीवन में उतारकर आप सपरिवार खुश रह सकते हैं।
यहां कुछ सवाल... अगर इन प्रश्नों के जवाब ईमानदारी से देंगे तो आप समझ जाएंगे कि ऑनलाइन वीडियो के जरिए आपके लिए कितनी बड़ी मुसीबत आने वाली है। क्या आप ऑनलाइन वीडियो, नेटफ्लिक्स जैसी साइट्स पर घंटों बिता रहे हैं? आपका पढ़ाई या किसी अन्य काम में मन नहीं लग रहा? जल्दी संयम खो देते हैं। बात-बात पर गुस्सा आता है?
अगर हां, तो सचेत हो जाएं। बेशक कुछ समय के लिए मजा आता हो या संतुष्टि मिलती हो, लेकिन आगे चलकर बड़ा नुकसान हो सकता है। आइए जानें ऐसा क्या करें, जिससे कि इसका समुचित आनंद भी उठा सकें और लत भी न लगे?
11वीं की स्टूडेंट शैलजा को जब भी पढ़ाई या अन्य एक्टिविटीज से थोड़ा वक्त मिलता था, तो वह नेटफ्लिक्स एवं हॉटस्टार पर अपने पसंदीदा एपिसोड्स या वेब सीरीज देखा करती थीं। लेकिन घर में किसी को इसकी खबर नहीं थी। धीरे-धीरे शैलजा ने सबसे बातें करना छोड़ दिया। गुमसुम-सी रहतीं। अपने फेवरेट सब्जेक्ट से भी मन उचटने लगा था। परीक्षा में अंक गिरने लगे थे। पैरेंट्स परेशान हो गए कि आखिर बेटी को क्या हो गया है? काउंसलर्स की सलाह ली गई, तो सच्चाई का पता चला। कई महीनों के परामर्श के बाद शैलजा को एहसास हुआ कि वह कैसे रास्ता भटक गई थी। क्षण भर की खुशी के लिए अनजाने में अपना पूरा करियर और जीवन दांव पर लगाने जा रही थी। मनोचिकित्सक पल्लवी जोशी कहती हैं, ‘लाइव स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर हिंसा से लेकर अन्य प्रकार की काफी वयस्क सामग्री होती है। इससे किशोर-युवाओं में अनेक तरह की जिज्ञासाएं उत्पन्न होने लगती हैं। वे घर में हों, कॉलेज में या फिर मेट्रो में...। इन ऑनलाइन वीडियोज में उन्हें एक तरह का कंफर्ट जोन मिल जाता है।'
ऑनलाइन वीडियो देखने में भारतीय आगे
कुछ समय पहले ही बेंगलुरु में 26 साल के एक युवक को नेटफ्लिक्स एडिक्शन के कारण अस्पताल जाना पड़ा। वह तनाव और घरवालों के दबाव से बचने के लिए सात से 10 घंटे ऑनलाइन वीडियो देखता था, जिससे उसकी एकाग्रता घट रही थी। वह दूसरों से बात नहीं करना चाहता था। मीडिया एजेंसी जेनिथ की रिपोर्ट की मानें, तो एक भारतीय प्रतिदिन औसतन 52 मिनट ऑनलाइन वीडियोज देखता है, जबकि 2012 में लोग सिर्फ दो मिनट ही ऐसा किया करते थे। यही कारण है कि नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो, हॉटस्टार, वूट एवं यूट्यूब का क्रेज आहिस्ता-आहिस्ता लत में तब्दील होते जा रहा है। विशेषज्ञों की मानें, तो ऑनलाइन स्ट्रीमिंग वेबसाइट्स के लत की एक बड़ी वजह असल ज़िंदगी की परेशानियों से ध्यान हटाना भी होती है। असल ज़िंदगी की परेशानियां, जैसे- अच्छी नौकरी, पढ़ाई में अच्छा न कर पाना या किसी और वजह से मानसिक तनाव। ऐसे में इन परेशानियों से ध्यान हटाने के लिए भी लोग अब ऑनलाइन स्ट्रीमिंग वेबसाइट्स की तरफ बढ़ रहे हैं।
काउंसिलिंग से छूटेगा इंटरनेट एडिक्शन
बेंगलुरु के निमहंस (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज) की तरह दिल्ली के एम्स स्थित बिहैवियरल एडिक्शन क्लीनिक में इंटरनेट एडिक्शन की शिकायतों की संख्या हाल के वर्षों में दोगुनी से अधिक हो गई है। स्कूल एवं कॉलेज जाने वाले स्टूडेंट्स में व्यावहारिक व मनोचिकित्सकीय समस्याएं गंभीर होती जा रही हैं। जानकारों के अनुसार, जब किशोर-युवा गेमिंग, सर्फिंग या ऑनलाइन वीडियोज देखने के लिए अनियंत्रित तरीके से इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगते हैं और उनकी रूटीन एक्टिविटीज डिस्टर्ब होने लगती हैं, तो वह एडिक्शन यानी लत बन जाता है। एम्सट, नई दिल्ली के मनोचिकित्सक डॉ. यतनपाल सिंह बलहारा कहते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सोशल मीडिया एवं वीडियो गेम एडिक्शन को पहले से ही बीमारी की श्रेणी में रखा है। बावजूद इसके, युवा एडल्ट्स ऑनलाइन वीडियोज देखने और इंटरनेट सर्फिंग करने की अपनी आदत छोड़ नहीं पा रहे हैं। ध्यान देने की बात यह है कि वे इस एडिक्शन की बात को स्वीकार भी नहीं करना चाहते। जब एकेडमिक्स में परफॉर्मेंस घटने लगती है, तो पैरेंट्स उन्हें लेकर चिकित्सक के पास जाते हैं। डॉ. बलहारा का कहना है कि टेक्नोलॉजी खराब नहीं है, बल्किा उसका गलत इस्तेलमाल उसे खराब बना देता है। जिस तरह डॉक्टरी या इंजीनियरिंग पढ़ाई जाती है या फिर ड्राइविंग सिखाई जाती है, उसी तरह बच्चों को मोबाइल और इंटरनेट का सही तरीके से इस्तेमाल करना भी सिखाया जाना चाहिए।
तलाशना होगा टीवी का विकल्प
ब्रिटेन की ग्लास्गो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा की गई एक शोध के नतीजे बताते हैं कि लंबे समय तक टीवी के सामने बैठे रहने से लोगों को स्मोकिंग, ड्रिंकिंग और गलत खानपान की लत लग जाती है। इससे हृदय रोग का खतरा खास तौर पर बढ़ जाता है। मोटापा और चिड़चिड़ापन बढ़ता है सो अलग। शोधकर्ताओं का यह भी दावा है कि लगातार ढाई घंटे या उससे ज्यादा समय तक टीवी देखने पर ‘पल्मोनरी एम्बोलिस्म’ का खतरा बढ़ जाता है यानी पैर की नसों में खून के थक्के (ब्लड क्लॉट) हो जाते हैं, जिससे फेफड़ों तक रक्त के प्रवाह में गतिरोध होने लगता है। जानकारों की राय में बच्चों, किशोरों व युवाओं की दिनचर्या एवं जीवनशैली में कुछ बदलाव लाकर उन्हें ऐसे डिस्ट्रैक्शन से रोका जा सकता है। वर्चुअल या डिजिटल वर्ल्ड में समय व्यतीत करने की बजाय बच्चे-किशोर-युवा नेचर वॉक, फोटो वॉक जैसी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं या फिर फिटनेस के लिए योग व मेडिटेशन कर सकते हैं।
फिजिकल एक्टिविटी है मददगार
‘एडुस्पोर्ट्स’ के सह-संस्थापक परमिंदर गिल के अनुसार इंटरनेट एवं सोशल मीडिया के बीच पल-पल बढ़ रहे बच्चों-किशोरों की शारीरिक तंदुरुस्ती यानी फिटनेस एक बड़ा सवाल बनकर उभरी है हमारे सामने। हमारे यहां के स्कूली बच्चों-किशोरों का स्वास्थ्य एवं फिटनेस का स्तर लगातार गिर रहा है। सुस्त जीवनशैली एवं खेलकूद में भागीदारी घटने से न सिर्फ असमय मोटापा घेर रहा है, बल्कि 4-5 वर्ष की उम्र से ही उनका शरीर मधुमेह, अस्थमा जैसी बीमारियों का घर बनता जा रहा है। ऐसे में जरूरी है कि बच्चे-किशोर रोजाना कम से कम आधे घंटे साइक्लिंग, रनिंग, जंपिंग जैसे व्यायाम करें। फिजिकल एक्टिविटी से एकाग्रता बढ़ती है और स्फूर्ति आती है। हालांकि इसके लिए अभिभावकों को आगे बढ़कर अपने बच्चों का प्रेरणास्रोत बनना होगा। साथ ही स्कूलों को भी चाहिए कि वह बच्चों को खेलकूद एवं शारीरिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करें।
पैरेंट्स के साथ समय बिताना जरूरी
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. समीर पारिख के अनुसार वर्चुअल दुनिया, टीवी या ऑनलाइन वीडियोज देखने में समय बिताने-गंवाने की बजाय किशोरों-युवाओं का परिजनों एवं दोस्तों के साथ बातें करना, अपने आइडियाज या विचार शेयर करना, खाली समय में उनके साथ घूमने जाने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। इसके लिए पैरेंट्स को खुद उदाहरण बनते हुए उन्हें प्रेरित करना होगा। परिवार के साथ रहने पर ही वे एक-दूसरे को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। इसके अलावा अपनी पसंद के कार्यों में खुद को व्यस्त करना भी अच्छा रहेगा।
सस्ते डाटा पैक से बढ़ रही लत
साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं पिछले कुछ सालों से अमेजन प्राइम वीडियो, हॉटस्टार जैसे एप की लोकप्रियता बढ़ी है। इसका सबसे बड़ा कारण रिलायंस जियो के सस्ते डाटा पैक्स हैं। जियो के लॉन्च होने के बाद से अन्य ऑपरेटर्स ने भी अपने डाटा दरों में भारी कटौती कर दी। इसके अलावा जियो, एयरटेल, वोडाफोन, आइडिया जैसी टेलीकॉम कंपनियों ने भी अपने टीवी एप के जरिये फ्री में यूजर्स को वीडियो दिखाना शुरू कर दिया है। एयरटेल अपने पोस्टपेड यूजर्स को चुनिंदा प्लान्स में अमेजन प्राइम वीडियो का एक साल का फ्री सब्सक्रिप्शन भी दे रहा है। वहीं जियो यूजर्स को हॉटस्टार का फ्री सब्सक्रिप्शन मिलता है। वोडाफोन भी नेटफ्लिक्स का सब्सक्रिप्शन कुछ चुनिंदा पोस्टपेड प्लान्स में ऑफर कर रहा है।
ऑनलाइन एडिक्शन के लक्षण
- अगर कोई स्क्रीन के सामने लंबा वक़्त बिता रहा है तो यह एक बड़ा लक्षण है।
- परफॉर्मेंस घटना
- नींद न आना
- चिड़चिड़ापन घेरना
- धैर्य न रहना, जल्दी गुस्सा आना
- अंशु सिंह
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