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    Online Gaming पर केंद्र सरकार सख्त, गेमिंग के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की मांग

    Updated: Thu, 04 Sep 2025 10:30 PM (IST)

    केंद्र सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को तीन उच्च न्यायालयों - कर्नाटक दिल्ली और मध्य प्रदेश - से सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की है। सरकार का तर्क है कि एक ही मुद्दे पर अलग-अलग उच्च न्यायालयों में सुनवाई से विरोधाभासी फैसले आ सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर अगले सप्ताह सुनवाई करेगा।

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    सुप्रीम कोर्ट पहुंचा ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम मामला।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने परस्पर विरोधी फैसलों से बचने के लिए ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम, 2025 के प्रचार एवं विनियमन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को तीन उच्च न्यायालयों से सर्वोच्च न्यायालय स्थानांतरित करने की मांग की है।

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    प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कर्नाटक, दिल्ली और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों से तीन लंबित मामलों को सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने के लिए इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की याचिका को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की है।

    केंद्र सरकार ने क्या कहा?

    केंद्र सरकार के वकील ने कहा, ''केंद्र ने इस बाबत अपनी मांग को लेकर एक स्थानांतरण संबंधी याचिका दायर की है। ऑनलाइन गेमिंग विनियमन अधिनियम को तीन उच्च न्यायालयों में चुनौती दी गई है। यह कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष अंतरिम आदेशों के लिए सूचीबद्ध है।''

    याचिकाओं के स्थानांतरण की मांग के अलावा केंद्र ने स्थानांतरण संबंधी याचिका के निपटारे तक विभिन्न उच्च न्यायालयों में ''रिट याचिकाओं पर सभी कार्यवाही पर रोक'' लगाने की भी मांग की।

    केंद्र की याचिका में कहा गया है, ''विभिन्न उच्च न्यायालयों में एक ही या लगभग समान कानूनी प्रश्न से संबंधित और एक ही विवादित अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाले कई मुकदमे लंबित होने के कारण, यह आवश्यक है कि किसी भी मतभेद या कार्यवाही की बहुलता से बचने के लिए इसे इस न्यायालय या किसी अन्य उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया जाए।''

    इसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद इस अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालयों में कई याचिकाएं दायर की गईं।

    याचिका में कहा गया है, ''यह अधिनियम ऑनलाइन गेमिंग सेक्टर को बढ़ावा देने और रणनीतिक रूप से विनियमित करने के उद्देश्य से लागू किया गया है। साथ ही, नागरिकों को आनलाइन मनी गेम्स के दुष्प्रभावों से बचाने और आनलाइन गे¨मग के अन्य रूपों को प्रोत्साहित एवं विनियमित करने के लिए भी इसे लागू किया गया है।''

    याचिका में कहा गया है कि यह अधिनियम कई सवाल उठाता है, जैसे कि क्या यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19(1)(जी) (व्यवसाय करने का अधिकार) और 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है।

    क्या है ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम

    ऑनलाइन गेमिंग संवर्धन और विनियमन अधिनियम, 2025 पहला केंद्रीय कानून है जो वास्तविक धन वाले ऑनलाइन गेमिंग पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाता है। इसमें फैंटेसी स्पो‌र्ट्स जैसे लोकप्रिय प्रारूप भी शामिल हैं। यह कानून आनलाइन पैसे वाले खेलों की पेशकश या खेलने पर प्रतिबंध लगाता है और इसके उल्लंघन को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराधों के रूप में वर्गीकृत करता है।

    यह विधेयक 20 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था और दो दिनों के भीतर संसद के दोनों सदनों में ध्वनिमत से पारित हो गया और 22 अगस्त को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

    यह भी पढ़ें- ऑनलाइन मनी गेम्स बैन को मिली पहली कानूनी चुनौती, गेमिंग फर्म A23 ने दायर किया मुकदमा

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